सरदार वल्‍लभभाई पटेल ! sardar vallabhbhai patel in hindi essay 

 


सरदार वल्‍लभभाई पटेल (sardar vallabhbhai patel) का बचपन-

सरदार वल्‍लभभाई पटेल का जन्‍म 30 अकटूबर 1875 में गुजरात
के करमसद नामक स्‍थान पर हुआ था। सरदार वल्‍लभभाई पटेल के जन्‍म दिवस (sardar vallabhbhai patel birthday) को भारत में राष्‍ट्रीय
एकता दिवस
(National
Unity Day) Rastriya ekta diwas
के रूप में मनाया जाता हैं। इस साल भी राष्‍ट्रीय एकता दिवस २०२१ (sardar vallabhbhai patel unity day) को बड़ी धूमधाम
से मनाया जा रहा हैं।

सरदार वल्‍लभभाई पटेल एक संभ्रान्‍त कृषक परिवार में हुआ था।
सरदार वल्‍लभभाई पटेल पिता श्री झाबेरीभाई पटेल
,  महारानी लक्ष्‍मीबाई की सेना के सैनिक रह चुके थे और पूर्ण निर्भीक, स्‍वाभिमानी, राष्‍ट्रभक्‍त थे।
पिता की निर्भीकता तथ करूणामयी मां की धाम्रिकता
, दोनों ही गुण
सरदार वल्‍लभभाई
पटेल में विद्यमान थे। सरदार वल्‍लभभाई पटेल के बड़े‍ भाई श्री विट्ठ भाई
पटेल, जिन्‍होंने स्‍वयं इंगलैण्‍ड
जाकर बैरिस्‍ट्री पढ़ी थी
, विदेश से वापस आकर अपनी वकालत बार
एट लां करने भेजा
, पूरी मेहनत से आपने इंगलेण्‍ड में रहकर अपनी
शिक्षा पूरी की और पीरक्षा में प्रथम श्रेणी लेकर स्‍वेदश वापस लौटे।
सरदार वल्‍लभभाई पटेल 
(sardar vallabhbhai patel) वकालत करने के लिए अहमदाबाद को अपना व्‍यवसाय केन्‍द्र चुना था।

श्री विट्ठलभाई
एवं श्री
सरदार वल्‍लभभाई
पटेल
दोनों में ही राष्‍ट्र के प्रति सचची श्रद्धा थी। इसलिए वे अंग्रेजी जमाने में
अपनी जमी जमाई हजारों रूपये महीनों की आमदनी छोड़कर स्‍वदेशी आंदोलन में कूद पड़े।

सरदार वल्‍लभभाई पटेल (sardar vallabhbhai patel) जीवनी biography-




भारतीय राजनीति में लौह पुरूष के नाम से प्रसिद्ध भारत
रत्‍न सरदार वल्‍लभभाई पटेल 
(sardar vallabhbhai patel) अद्वितीय महापुरूष थे, जिनकी रीति-
नीति
, प्रबंध-पटुता, प्रशासनिक
क्षमता एवं दूरदर्शिता के यदि उनके कार्यकाल के दौरान स्‍वीकार कर लिया जाता तो
शायद भारत को इतनी परेशानी न उठानी पड़ती। पाकिस्‍तानी उत्‍पात
, सीमाओं की अ‍स्थिरता, मैकमोहन लाईन का चीन द्वारा न माना
जाना
, तिब्‍बत का चीन के कब्‍जे मे फंसा होना, कश्‍मीर की दुर्दशा, आतंकवाद का फैलाव आदि ऐसी जटिलताएं
हैं जिन्‍होने भारत को चीन जैसी महाशक्ति बनने से रोका है। काश
! नेहरू जी तथा उनकी सरकार ने स्‍वतंत्रता के आरंभिक दिनों में महापुरूष पटेल
की बात मान ली होती
, तो कश्‍मीर का एक बड़ा हिस्‍सा पाकिस्‍तानी
कब्‍जे में नहोता। यह सरदार पटेल के राजनीतिक कौशल का ही नतीजा था कि लगभग 600 देशी
रियासतों को उन्‍होंने अपनी कूटनीति से भारतीय संघ में मिलाया ।

अंग्रेज भारत के
भीतर ही छोटे- छोटे स्‍वतंत्र राज्‍य बना गये थे और उनको स्‍वायत्‍तता दे दी गई थी।
कुछ अपने सिक्‍के भी चलाते थे तथा आंतरिक यातायात के साधन भी खुद जुटाते थे। ग्‍वालियर
, जयपुर, जोधपुर, बीकानेर, अलवर, ट्रावनकोर,
मैसूर आदि ऐसे ही राज्‍य थे, जिनके शासक स्‍वयं
को महाराजा लिखते थे
, और अंग्रेज भी अपने इन एजेंटो को हिज हाइनेस की पदवी से सम्‍बोधित करते थे। 15 अगस्‍त
1947 को स्‍वतंत्रता तो मिली
, किंतु रजवाड़ों की वजह से देश फिर
भी अलगाववाद के कुचक्र में फंसा हुआ था। पटेल ने बुद्धिमानी की तथा सीभी देशों नरेशों
से कहा कि वे भारत संघ में स्‍वेच्‍छा से शामिल हो जाए। यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्‍हें
प्रतिवर्ष
प्रिवीपर्स के नाम से एक
अच्‍छी धनराशि मिलती रहेगी। और यदि वे पसंद करेंगे
, तो उन्‍हें
अपने संबंधित राज्‍य का राज्‍य प्रमुख भी बनाया जायेगा। कई महाराजाओं ने इसे स्‍वेच्‍छा
से स्‍वीकार कर लिया था और सरकार ने भी उनके साथ उदारता से व्‍यवहार किया था। लेकिन
निजाम जैसे कुछ लोगों ने रजाकर आदि को संगठित करे सरकार से लोहा लेने की ठानी थी
,
जिन्‍हें दूरदर्शी, सशक्‍त, उपप्रधानमंत्री श्री
सरदार वल्‍लभभाई पटेल 
(sardar vallabhbhai patel) ने विफल कर दिया था।

सरदार वल्‍लभभाई पटेल निर्वाण-


इसे देश का दुर्भाग्‍य ही कहना चाहिए कि उप प्रधानमंत्री के
रूप में तथा एक दूरदर्शी स्‍वराष्‍ट्र मंत्री के रूप में भारत को उनकी सेवाएं लंबे
समय तक सुलभ न हो सकीं। स्‍वतंत्रता के अभी चार साल भी पूरे नहीं हुए थे कि क्रुर काल
ने  उन्‍हें हम सभी से छीन लिया । 15 दिसम्‍बर
1950
को उन्‍होंने सदा के लिए हम सबसे विदा ले ली।



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