जल उठा था
दन्तेवाड़ा जब दंतेश्वरी मंदिर में नलबली दी जाती थी। मेरिया विद्रोह Meria vidroh in dantewada
छत्तीसगढ़
के दक्षिण के स्थति सर्वाधिक धार्मिक विश्वास एवं श्रद्धा का प्रतीक वाला
क्षेत्र दन्तेवाड़ा जहां शक्ति पीठ दंतेश्वरी देवी विराजमान है। वर्तमान दौर में
दन्तेवाड़ा नक्सल हमला से चर्चित ये क्षेत्र
कभी न कभी जलता ही रहा है। कई नदियों के संगम पर बसा एवं दूर दूर पहाडी से घिरा
अत्यंत सुन्दर स्थान है। 14वीं शदी अर्थात सन् 1300 के प्रथम से ही यहां दंतेश्वरी
मंदिर निर्मित है। देवी के नाम पर इसका नाम पड़ा ।
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जैसे दन्तेवाड़ा
शांत दिखता है वैसा बिलकुल नहीं है काकातीय राजाओं एवं नाग शासकों होने के समय से ही
यह क्षेत्र अपना अस्तित्व बचाने में लगा हुआ है।
इस पोस्ट में
1842 से 1863 ई0 में हुई अत्यंत ही आक्रोश एवं अमानवीय घटना के बारे में बताया जा रहा
है।
दंतेवाड़ा में
आदिवासियों ने 1842 में अंग्रजो और मराठी शासन के खिलाफ अपनी आत्मरक्षा एवं अपनी परम्परा
और रीति रिवाजों पर होने वाले आक्रमणों के विरूद्ध विद्रोह किया था। दंतेश्वरी मंदिर
में प्रचलित नरबलि का एक जघन्य संस्कार का कार्यक्रम उस समय प्रचलित था। और यही इस
महान विद्रोह का कारण बना।
उस समय इस मानव
बली प्रथा को समाप्त करने के लिए अंग्रजी सरकार ने बस्तर के महाराजा भूपालदेव जी
को आदेश दिया। एवं नागपुर के मराठों राजा ने एक सैनिको की फौज 22 सालों के लिए दंतेवाड़ा
मंदिर में तैनात कि।
लेकिन यहां के
आदिवासियों ने इसे अपनी परम्पराओं पर बाहरी हमला समझा और विद्रोह कर दिया। उस समय
बस्तर का दीवान दलगंजन सिंह होता था । अंग्रेजों ने दीवान को हटाकर वामन राव को पोस्ट
कर दिया। दीवान वामन राव ने क्षेत्र को नियंत्रण करने हेतु रायपुर के तहसीलदार साहब
शेर खां को दन्तेवाड़ा में नियुक्त किया।
इस बात से आदिवासियों
में एक बार पुन: विद्रोह की ज्वाला भड़क गयी । इस समय आदिवासियों की हीरों हिड़मा
मांझी ने कमान संभाला था । हिड़मा दादा में सैनिक हटा लेने की मांग कि । लेकिन दीवान
वामनराव के आर्डर पर शेर खां और इसके साथियों ने आदिवासियों पर भयंकर जुल्म किए ।
अंग्रेजों ने
आदिवासियों के घरों को आग के हवाले कर दिया । उनकी महिलाओं के साथ बलात्कार किया।
इसमें अंग्रेज सफल रहे थे। यह विद्रोह मेरिया विद्रोह के नाम बदनाम है। इस विद्रोह
के कारण हमेशा के लिए आदिवासियों और अंग्रेजों के मध्य शत्रुता रही।
नरबली का अंत
हुआ इसमें आदिवासियों को बहुत बढ़ी हानि हुई। अब आप ही जरा सोचे की नरबली सही था। क्या
आदिवासियों के साथ जो जुल्म हुआ वह सही था। अगर आज भी नरबली प्रथा होती तो क्या होता।
हिड़मा मांझी का क्या हुआ होगा ।
क्या राय है
आपकी दंतेवाड़ा की मेरिया विद्रोह कहानी हमें नीचे कमेन्ट में बताऐं ।
dantewada gov site @https://dantewada.nic.in/
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