महेंद्र कर्मा का जीवन परिचय l mahendra karma jivan parichay
mahendra karma बस्तर की राजनीति में
बस्तर टाइगर के नाम जाने वाले महानेता रहे है। महेन्द्र कर्मा ने बस्तर के जनता
के प्रति उनकी समर्पण भावना आदिवासियों के उत्थान की सोच और जरूरतमंदों केलिए
हमेशा मददगार एवं सकार पक्ष की हो या विपक्ष हमेशा कार्यरथ रहे है।
[Biography] mahendra karma Bastar Tiger photo from-google images |
संक्षिप्त में जीवन क्रम life history of mahendra karma
जन्म
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5अगस्त 1950 दंतेवाड़ा (cg) के फरसपाल गांव में
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पिता का नाम
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दारा बोडा मांझी
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माता का नाम
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कोपे बाई(जन्म के तुरन्त बाद मृत्यू)
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स्कुली शिक्षा
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प्राथमिक – फरसपाल
माध्यमिक- भैरमगढ़
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स्नातक एवं वकालत
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पी0जी0कॉलेज जगदलपुर
नेहरू छात्रावास में रहकर
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प्रारंभिक राजनीति
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कम्युनिष्ट पार्टी आफ इंडिया CPI
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विवाह [
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देवती कर्मा (वर्तमान में विधायक)
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पुत्र एवं पुत्री
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4 पुत्र-दीपक, छविन्द्र,आशीष,
दिव्यराज।
5 पुत्रियां- सुलेखा,सुलोचना,तूलिका, वर्षा,आंचल।
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महान योगदान
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सलवा जुडूम अभियान के नेता
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मृत्यु [
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झीरम घाटी हमले में शहीद
25 मई 2013
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राजनीतिक सफर Political Journey-
- mahendra karma कॉलेज की पढाई के दौरान ही उनमें नेतृत्व की क्षमता
विकसित हो गई थी। उनकी क्षमता के अनुसार ही उन्होंने सीपीआई से जुड़ गये। - 1980 में 30 वर्ष की आयु में उन्होंने दंतेवाड़ा से विधायक की सीट जीता। इस चुनाव में
एनएमडीसी के मजदूर युनियन ने कर्मा का भरपुर साथ दिया। । - 1985 में उनका मुकाबला उनके ही भाई लक्ष्मण कर्मा जो कि क्रांग्रेसी
थे से हुआ, जिसमें महेन्द्र कर्मा की हार हुई। - इसी चुनाव के बाद में सीपीआई ने महेन्द्र कर्मा को पार्टी से निकाल
दिया।इससे दुखी होकर उनने क्रांग्रेस का दामन संभाला। - 1994 में दंतेवाड़ा जिला पचायत सदस्य का चुनाव लड़ा यहां जीतकर वे
जिला पचायत अध्यक्ष बने।। - जब 6वीं अनुसूची बस्तर में लागू करने की बात उठी तो उन्होंने अपनी
ही पार्टी से बगावत कर 1996 में सांसद का चुनाव निर्दलीय लड़ा। और सांसद बने। - पुन: वे गीले सिकवे दूर कर क्रांगेस में आये।
- 1998 में लोकसभा के चुनाव में कांकेर लोकसभा से लड़े। मगर चुनाव हार
गये। - विधानसभा चुनाव दंतेवाड़ा से टिकट मिलने पर एक बार फिर से जीत दर्ज
किया। इस समय वे अविभाजित मध्यप्रदेश में जेलमंत्री भी रहे। - 2000 अजीत जोगी सरकार में वाणिज्य, उद्योग, ग्रामोघोग,
और सुचना एवं जैव प्रोद्योगिकी मंत्री बने। - 2003 में चुनाव में एक बार फिर दंतेवाड़ा सीट जीता।
- 2003 से 2008 तक नेता प्रतिपक्ष रहे।
- 2008 में उन्होंने अंतिम चुनाव विधानसभा चुनाव लड़ा। जिसमें भीमा
मंडावी भाजपा ने जीत दर्ज किया।
नक्सलियों के महाविरोधी रहे महेन्द्र कर्मा
mahendra karma एक राजनेता तो थे ही साथ ही वे लोकनायक थे। उनकी एक
इसारें पर हजारों आदिवासि नक्सलियों से टकराने को तैयार हो जाते थे। इसी कारण वे नक्सलियों के लिए सिरदर्द बन गये।
नक्सलियों ने उन्हें नुकसान पहुचाने का कोई भी मौका नही छोड़ा।
जब भी मौका महेन्द्र
कर्मा पर हमला कर देते । पर उन्होने हमेशा नकसलियों का सामना किया। महेन्द्र
कर्मा कहते थे कि नक्सली बस्तर में आदिवासियों के सबसे बड़े दुश्मन है।
सलवा जुडूम अभियान salva judhum
1989 से 1991 के बीच महेन्द्र कर्मा ने बस्तर ने बिना किसी सरकारी
मदद के एक बड़ा जागरूकता अभियान चलाया था जिसमें हजारों की संख्या में आदिवासियो
ने उनका साथ दिया था। महेन्द्र कर्मा एक छोर से दूसरे छोर तक पैदल यात्रायें की
तथा आदिवासियों को अपने साथ जोड़ा।
बीजापुर और उसके आसपास के इलाको से लोगों में
जागरूकता मूहीम चलाया। नक्सलियों को गांव में प्रवेश, उनकी
दखलअंदाजी को मना करने के लिए ग्रामीणों को एकजुट किया। मगर कूछ समय बाद यह मूहीम
स्थगित होगया।
बस्तर की धरती पर नक्सल हिंसा के चलते नक्सल आतं चरम पर पहुंच
गया। मार-काट, लूटपाट से जनता में भी आक्रोश था। 2003 में कर्मा दंतेवाड़ा विधायक चने
गये थे। तब खबर आई कि बीजापुर क्षेत्र में करकेली गांव में ग्रामीणों का जनसैलाब
इकटठा हुआ है जो कि नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई चाहते थे।
यहां से mahendra karma ने अभियान का नेतृत्व किया। और इस अभियान का नाम पड़ा सलवा जुडूम यह गोण्डी
भाषा का शब्द है जिसका मतलब है शांति का कारवां।
सलवा जुडूम के तहत नक्सल पीडित ग्रामीणों के सम्मेलन हुए, जागरूकता
अभियान चलाए गए, सुरक्षा कार्यक्रम चलाए गए। सलवा जुडूम के
चलते नक्सलियों के खिलाफ आम ग्रामीणों ने हिम्मत जुटाना शूरू कर दिया था।सलावा
जुडूम को राज्य सरकार का समर्थन भी था। महेन्द्र कर्मा के नेतृत्व में ये अभियान
बस्तर में एक क्रांति बन चुका था।
झीरम हमले के प्रमुख टारगेट थे महेन्द्र कर्मा (Jhirum Ghadi)
सलवा जुडूम अभियान के नेता महेन्द्र कर्मा नक्सलियों के टारगेट में
सबसे उपर थे। महेन्द्र कर्मा ने नक्सलियों का विरोध करने की उन्हें बड़ी कीमत
भी चुकानी पड़ी। नक्सलियों ने उन पर 5 से ज्यादा बार जानलेवा हमले किए पर हर बार
वे बच निकलते थे। नक्सलियों ने उनके परिवार पर हमला करना शुरू कर दिया था।कर्मा
परिवार के दो दर्जन से ज्यादा सदस्यों की निर्मम हत्या भी नक्सलियों ने कर दिया था।
2013 में क्रांगेस की परिवर्तन यात्रा में निकली क्रांगेस का काफीला
छत्तीसगढ़ की यात्रा पर थी। 25 मई 2013 को सुकमा में एक सभा के लिए सभी दिग्गज जिनमें
तत्कालीन कांगेस प्रदेश अक्ष्यक्ष नंदकुमार पटेल, पूर्व केंद्रीय मंत्री, विद्याचरण शुक्ल, पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी,
पूर्व नेता प्रतिपक्ष महेन्द्र कर्मा समेत कई नेता शामिल थे। सभा समाप्त
होने के बाद सभी सुकमा से जगदलपुर के लिए रवाना हुए।
mahendra karma death
अनहोनी से बेखबर बस्तर घने जंगलों
से होकर नेताओं का काफिला झीरम घाटी पहूंच चुका था और तभी एक जोरदार धमाका हुआ। घात
लगाकर बैठे नक्सलियों ने काफिले पर जोरदार हमला कर दिया। इसमें नक्सली महेन्द्र कर्मा
को ही ढ़ूंढ रहे थे। नक्सलियों ने महेन्द्र कर्मा का सीना गोलियों और चाकू के बार
से छलनी कर दिया। नक्सलियों ने वहां खूनी तांडव मचाया। बस्तर टाइगर महेन्द्र कर्मा
शहीद हो गये।
महेन्द्र कर्मा के पार्थिव देह पर नकसलियों ने डांस भी किया। इस हमले
में कुल 29 लोगों की जान चली गई। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक महेन्द्र कर्मा
को 5 गोलियों मारी गई थीं। और करीब 62 बार चाकुओं से बेरहमी से गोदा गया था।
छत्तीसगढ़ शासन ने महेन्द्र कर्मा की याद में सामाजिक सुरक्षा योजना
की शुरूवात की ।
शहीद महेन्द्र कर्मा को श्रद्धांजली के तौर पर छत्तीसगढ़ शासन ने तेंदूपत्ता
संग्राहकों के लिए शुरू की गई सामाजिक सुरक्षा योजना का नामकरण भी शहीद महेन्द्र कर्मा
के नाम पर रखा है।
- दंतेवाड़ा गर्ल्स कॉलेज का नाम बदलकर अब शहीद महेंद्र कर्मा गर्ल्स
कॉलेज रखा गया है। - बस्तर विश्वविद्यालय का नामकरण भी शहीद महेन्द्र कर्मा के नाम
पर किया है।25 मई 2015 छग राजपत्र के
अनुसार बस्तर विश्वविद्यालय का नाम बदलकर शहीद महेन्द्र कर्मा विश्वविद्यालय रख
दिया गया हैं। - इस प्रकार mahendra karma रियल
बस्तर टाइगर [ Bastar Tiger] के रूप में छत्तीसगढ़ के महान
व्यकित के तौर हमेशा अमर रहेंगे।