माधव
राव सप्रे का जीवन परिचय madhav rao sapre Biodata
जयंती-19 जुन
माधव
राव सप्रे परिचय madhav rao sapre introduction –
छत्तीसगढ़
के कर्मवीर के रूप में प्रसिद्ध माधव राव सप्रे जी छत्तीसगढ़ के प्रमुख व्यक्तित्व
में से एक है 80 के दशक में जन्मे सप्रे जी छत्तीसगढ़ में साहित्य के साथ छ0ग0 स्वतंत्रताके आंदोलन में अपने प्रखर नेतृत्व से छत्तीसगढ़ का मार्गदर्शन किया । माधव राव
सप्रे का जन्म तत्कालीन मध्यप्रदेश में हुआ उनका जन्म MP के दमोह में एक छोटे से गांव पथरिया से 19 जुन
1871 को हुआ था। छत्तीसगढ़ में प्रत्रकारिता के जनक सप्रे ही थे उन्होनें की
सर्वप्रथम 1900 पर छत्तीसगढ़ की प्रथम पत्रिका का प्रकाशन किया। आपको जानकर हैरानी
होगी की वह पत्रिका जिसे छत्तीसगढ़ मित्र के नाम से जाना जाता है आज भी मासिक
प्रकाशित किया जाता है जो कि पूर्ण रूप से काव्य एवं साहित्य पर आधारित है।
छत्तीसगढ़
जो कि देश का सबसे पिछ़ड़ा क्षेत्र माना जाता था उन को अपनी साहित्य एवं
पत्रकारिता के माध्यम से अलग पहचान
दिलाई।
माधवराव
सप्रे साहित्यिक जीवन –
माधवराव
सप्रे जी का हिन्दी के क्षेत्र में विशेष
योगदान रहा वे राष्ट्रीय साहित्य कार है। माधवराव सप्रे ने हिंदी में पहली कहानी
लिखी, एवं समालोचना – लेखन की
परंपरा की नींव डाली, कई सारी निबंधों की रचना
की । हिंदी साहित्य को समृद्ध करने के लिए अन्य भाषाओं के गंथ्रो को का अनुवाद
किया एवं व्याख्या किया। कई सारी अहम
साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं का संपादन किया।
माधवराव
सप्रे को हिन्दी साहित्य का महानतम रचनाकार के रूप में सम्मान दिया जाता है।
संक्षिप्त
जीवन परिचय Short biography of madhav rao sapre
जन्म
|
19 जुन 1871
|
स्थान
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दमोह मध्यप्रदेश राज्य
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मृत्यु
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23 अप्रैल 1926
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माधवराव सप्रे के कृत्त
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अनुवादक,
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प्रमुख
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छत्तीसगढ़ पेण्ड्रा, नागपुर
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गिरफ्तारी
|
अगस्त 1908
|
प्रमुख
|
बाल गंगाधर
|
प्रमुख
|
एक टोकरी भर
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निबंध
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हिंदी
|
प्रमुख
|
छत्तीसगढ़
|
प्रसिद्ध
|
कर्मवीर ,हिन्दी
|
प्रमुख अनुवाद
|
दासे बोध ,
|
प्रमुख टाइटल-
- हिन्दी
में समालोचना पद्धति का सूत्रधार - छत्तीसगढ
में पत्रकारिता का जनक
माधवराव
सप्रे द्वारा छत्तीसगढ़ मित्र का शुरूआत । madhav rao sapre ki rachnaye
माधवराव
सप्रे जी का लगाव छत्तीसगढ़ की माटी से जुड़ा था वे छत्तीसगढ़ के लाल तो थे ही साथ
ही केन्द्रीय स्तर पर ख्याती प्राप्त किये हुये थे। सन् 1900 में बिलासपुर के
पेण्ड्रा नामक स्थान वर्तमान (गौरेला पेण्ड्रा मरवाही जिला) से एक साहित्यिक
पत्रिका का प्रकाशन प्रारंथ किया अैार उसका नाम ‘‘छत्तीसगढ़
मित्र” रखा । माधवराव सप्रे
द्वारा लिखित कहानी एक टोकरी भर मिट्टी का प्रकाशन छत्तीसगढ़ मित्र पत्रिका में
1901 को किया गया। एक टोकरी भर मिट्टी को हिन्दी की पहली मौलिक कहानी के रूप में
प्रतिष्ठा प्राप्त है। इसी पत्रिका मे उन्होंने समकालीन श्रेष्ठ हिन्दी
रचनाकारों की कृतियों की समीक्षा लिखकर हिन्दी में समालोचना पद्धति का सूत्रपात
किया। छत्तीसगढ़ मित्र में ही कामता प्रसाद गुरू के हिन्दी व्यावकरणों के सबसे
पहले निबंध प्रकाशित हुए थे जिनसे हिन्दी की व्याकरण की रूपरेखा बनी।
छत्तीसगढ़
मित्र का प्रकाशन 1902 में बंद हो गया किन्तु माधवराव सप्रे अपने लक्ष्य से तनिक
भी विचलित नहीं हुए। वे नागपुर आ गये। वहां से माधवराव सप्रे ने एक प्रकाशन संस्थान
खोला, जिसके माध्यम से उन्होंने
हिनदी ग्रंथमाला का प्रकाशन किया । काशी नागरी प्रचारिणी सभा ने विज्ञान कोश के
निर्माण का कार्य सन् 1902 में प्रारंभ किया था। इस योजना में माधवराव सप्रे जी को
अर्थशास्त्र विभाग का कार्य सौंपा गया।
माधवराव
सप्रे और बाल गंगाधर तिलक-
भारत
के राजनीतिक क्षितिज पर बाल गंगाधर तिलक जैसे राष्ट्रीय नेता का सानिध्य
था। 34 साल के माधवराव सप्रे जी लोकमान्य तिलक के संपर्क में आये और उन्होंने
नागपुर से हिन्दी केसरी प्रकाशित करने का निश्चय किया। हिन्दी केसरी का प्रकाशन
एक साप्ताहिक के रूप में सन् 1907 में शुरू किया गया। हिंदी केसरी की उत्कृष्ट
राष्ट्र भकित तथा राष्ट्र चेतना से अंग्रेजी
सरकार स्तंब्ध रह गये । और अगस्त 1908 में माधवराव सप्रे जी को राज्य
विरोधी लेख प्रकाशित करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया।
माधवराव
सप्रे का सार्वजनिक जीवन-
माधवराव
सप्रे कुछ वर्ष सार्वजनिक जीवन के अवकाश में रहें । इसी समय उन्होंने आध्यात्मिक
साधना की और मराठी संत कवि राम दास रचित दासे बोध तथा तिलक द्वारा लिखित गीता रहस्य
का हिन्दी अनुवाद किया । बाद में उन्होंने चिन्तामणी विनायक वैघ की महत्वपूर्ण
मराठी भाषा की साहित्य महाभारत मीमांसा का भी अनुवाद किया। इनके अतिरिक्त उन्होंने
विद्यार्थियों के उपयोग के लिए कुछ रचनाओं का अनुवाद किया था। उन्होंने जबलपुर से
कर्मवीर जैसी ऐतिहासिक एवं प्रसिद्ध साहित्य पत्र का प्रकाशन किया ।
माधवराव
सप्रे जी की मृत्यु-
माधवराव
सप्रे ने 1924 में देहरादून में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के 15 वें
अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। इस महत्वपूर्ण कृत ही अन्तिम साबित हुआ और 23
अप्रैल 1926 को माधवराव सप्रे जी का निधन होगया है। माधवराव सप्रे हिन्दी के सबसे
बड़े साहित्य एवं पत्रकारिता प्रमुख थे माधवराव सप्रे आज भी छत्तीसगढ के कण कण
में मौजूद है वे अमर है। वे छत्तीसगढ के साहित्यकारों के प्रेरणा स्त्रोत हैं
छत्तीसगढ़
में माधवराव सप्रे जी को योगदान एवं स्मृति में madhav rao sapre sangrahalaya, madhav rao sapre museum, madhav rao sapre ward raipur, madhav rao sapre college, madhav rao sapre school raipur, madhav rao sapre college pendra की स्थापना कि गई हैं। छत्तीसगढ़ शासन की ओर प्रति वर्ष
पत्रकारिता केक्षेत्र में किये गये कार्य के लिए सम्मान में madhav rao sapre award दिया जाता हैं। madhav rao sapre ki rachnaye की विशेष रचनाओं को सम्माल के रखा गया है।