bastar bhumkal बस्‍तर का सबसे बड़ा मूक्ति संग्राम भूमकाल विद्रोह:-

 

बस्‍तर के इतिहास में 1910 ई0
आदिवासी संग्राम का विशेष महत्‍व है प्रथम आदिवासियों ने बड़े पैमाने पर अंग्रेजों
के विरूद्ध हिंसात्‍मक विप्‍लव में भाग‍ लिया था। 1910 ई0 का आदिवासी संग्राम बस्‍तर
को
अंग्रेजों की दासता से मुक्‍त करने का महासंग्राम था।

बस्‍तर में भुमक अथवा
भूमकाल का शाब्दिक अर्थ है भूमि का कम्‍पन या भूकम्‍प
अर्थात उलट
पूलट यह संग्राम बस्‍तर बस्‍तरवासियों का है के नारे को लेकर
प्रारम्‍भ हुआ था। इस आन्‍दोलन के द्वारा आदिवासी बस्‍तर में मुरिया राज स्‍थापित
करना चाहते थे ।



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 1910 के विद्रोह के अनेक कारण थे। इन कारणों में-

  • अंग्रेजों द्वारा राजा
    रूद्रप्रतापदेव
    के हाथों सत्‍ता न सौंपना
  •  राजवंश से दीवान न बनाना
  • स्‍थानीय प्रशासन की बुराइयां
  • लाल केलेन्‍द्र सिंह और राजमाता
    सुवर्णकुंवर देवी की उपेक्षा
  • बस्‍तर के वनों को सुरक्षित वन घोषित
    करना
  • वन उपज का सही मूल्‍य न देना
  • लगान में वृद्धि करना और ठेकेदारी
    प्रथा को जारी रखना
  • घरेलू मदिरा पर पाबंदी
  • आदिवासियों को कम मजदूरी देना
  • नई शिक्षा नीति
  • बस्‍तर में बाहरी लोगों का आना और
    आदिवासियों का शोषण करना
  • बेगारी प्रथा
  • पुलिस कर्मचारियों के अत्‍याचार
  • अधिकारियों, कर्मचरियों, और शिक्षकों द्वारा आदिवासियों से मुफ्त में मुर्गा , शुद्ध घी और जंगली उपज प्राप्‍त करना
  • आदिवासियों को गुलाम समझना
  • ईसाई मिशनरियों द्वारा आदिवासियों को
    धर्म परिवर्तन के लिए बाध्‍य करना आदि।

 

bastar bhumkal बस्‍तर में भूमकाल 1910 का विद्रोह
GUNDADHUR BHUMKAL VIDROH



अक्‍टूबर 1909 के दशहरे के दिन
राजमाता स्‍वर्ण कुंवर ने लाल कालेन्‍द्र सिंह की उपस्थिति में ताड़ोकी में
आदिवासियों को अंग्रेजों के विरूद्ध सशस्त्र क्रान्ति के लिए प्ररित किया ताड़ोकी
की सभा में लाल कालेन्‍द्र सिंह ने आदिवासियों में से नेतानार ग्राम के क्रान्तिकारी
वीर गुंडाधूर को 1910 ई0 की क्रांति का नेता बनाया और प्रत्‍येक परगने से एक एक
बहादूर व्‍यक्ति को विद्रोह का संचालन करने के लिए नेता मनोनित किया । लाल कालेन्‍द्र
सिंह के मार्गदर्शन में अंग्रेजों के विरूद्ध क्रान्ति करने के लिए एक गुप्‍त
योजना बनाई गई। जनवरी 1910 ई0 को ताड़ोक में पुन- गुप्‍त सम्‍मेलन हुआ जिसमें लाल
कलेन्‍द्र सिंह के समक्ष क्रान्तिकारियों ने कसम खाई कि वे बस्‍तर की अस्मिता के
लिए जीवन व धन कुर्बान कर देंगे।

 

  • 1 फरवरी 1910 को समूचे बस्‍तर के
    क्रान्तिकारियों ने क्रान्ति की शुरूआत की । विद्रोहियां की गुप्‍त तैयारी से
    पोलिटिकल एजेण्‍ट डी ब्रेट भी बेखबर था। विद्रोहियों ने इस विद्रोह में भाग लेने
    के लिए हर गांव में प्रत्‍येक परिवार से एक सदस्‍य को सम्म्‍लित होने के लिए
    प्रेरित किया और उनके पास लाल मिर्च
    , मिट्टी के ढ़ेले, धनुष-बाण,
    भाले तथा आम की डालियां प्रतीक के स्‍वरूप भेजी ।

  • 1 फरवरी 1910 को समूचे बस्‍तर में
    विपल्‍व की शुरूआत हुई।

  • 2 फरवरी 1910  ई0 को विद्रोहियों ने पूसपाल बाजार में लूट
    मचायी थी। 4फरवरी को कूकानार के बाजार में बुंटू और सोमनाथ नामक देा विद्रोहियों
    ने एक व्‍यापारी की हत्‍या की ।
  • 5फरवरी को करंजी बाजार को लूटा गया।

  • 7 फरवरी 1910 को विद्रोहियां ने गीदम
    में गुप्‍त सभा आयेाजित कर मुरिया राज की घोषणा की।इसके बाद विद्रोहियों ने बारसूर
    , कोन्‍टा, कुटरू, कुआकोण्‍डा, गदेड,
    भोपालपटटनम जगरगुण्‍डा उसूर छोटेर डोंगर,
    कुलुल
    और बहीगांव
    पर आक्रमण किए।


  • 16 फरवरी 1910 ई0 को अंग्रेजो और
    विद्रोहियो के मध्‍य इन्‍द्रावती नदी के खड़गघाट पर भीषण संघर्ष हुआ। इस संघर्ष
    में विद्रोही परास्‍त हुए थे। खड़गघाट युद्ध में हुंगा मांझी ने अपनी वीरता का
    परिचय दिया था। 24 फरवरी 1910 को गंगामुंडा के संघर्ष में विद्रोहियों की पराजय
    हुई।

  • 25 फरवरी 1910 को डाफनगर में
    विद्रोहियों ने वीर गुंडाधूर के नेतृत्‍व में अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया।
    अबूझमाड़ छोटे डोंगर में आयतू महरा ने अंग्रेजों के साथ संघर्ष किया। छोटे डोंगर
    में विद्रोहियों ने गेयर के साथभयंकर संघर्ष किया था। सुप्रीम कमाण्‍डर गेयर ने
    पंजाबी सेना के बल पर विद्रोहियों का दमन किया।

  • अंग्रेजों ने 6 मार्च 1910 ई0 से
    विद्रोहियों का बुरी तरह से दमन किया । लाल कालेन्‍द्र सिंह और राजमाता स्‍वर्ण
    कुंवर देवी को अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया। अनेक विद्रोहियों को कठोर कारावास दिया
    गया। हजारों आदिवासियों का नि:शस्‍त्रीकरण किया गया। हजारों आदिवासियों को कोड़ा
    लगाने की कार्यवाही अंग्रेजों ने प्रारम्भ की। कोड़े लगाने की प्रक्रिया महीनों तक
    चलती रही
    । अंग्रेजो की यह एक जघन्‍य कार्यवाही थी।

 


 1910 का विद्रोह बस्‍तर में 1 फरवरी से 29
मार्च1910 तक चलता रहा
। 1910 का भूमकाल बस्‍तर के आदिवासियों के स्‍वाधीनता
संग्राम का एक महत्‍वपूर्ण अध्‍याय है। जिसने बस्‍तर में ब्रिटिश साम्राज्‍य की
नींव को हिला दिया। विद्रोह की समाप्ति के बाद ब्रिटिश शासन ने बस्‍तर में दीवान
बैजनाथ पंडा
के स्‍थान पर जेम्‍स को दीवान बनाया।

 

1910 के विद्रोह ने इस विद्रोह की
समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने आदिवासी संस्‍थाओं को सम्‍मान देते हुए आदिवासियों से
जुड़ने का प्रयास किया। यदि इस विद्रोह में बस्‍तर के राजा रूद्रप्रताप देव और
कांकेर के राजा कोमल देव क्रांतिकारियों का साथ देते तो बस्‍तर में 1910 का विप्लव
सफल होता और अंग्रेजों को बस्‍तर छोड़ना पड़ता।

 

बस्तर के विभिन्‍न विद्रोहों और आन्‍दोलनों
में बस्‍तर कांकेर के आदिवासियों ने जो बलिदान दिया वह अभुतपूर्व एवं अविस्‍मरणीय
है। बस्‍तर संभाग के आन्‍दोलन एवं क्रान्तिकारियों का छत्‍तीसगढ़ के इतिहास में
महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। 



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