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देश भक्ति गीत लिखित 2021 । देश भक्ति गीत । 15 august poem in hindi । देश भक्ति के गाने । स्वतंत्रता दिवस पर कविता, शायरी , गीत
दोस्तों इस स्वतंत्रता दिवस 2021 independence day 2021 में विशेष कविता इस पोस्ट
में प्रस्तुत किया गया है। इसके अंतर्गत देश भक्ति कविता (desh bhakti kavita) स्वतंत्रता दिवस शायरी (independence day shayri), देश भक्ति गीत लिखित 2021 देशभक्ति गाना इस पोस्ट में लिखित रूप में हैं।
independence day shayri । independence day shayari in hindi
भारत भुमि
मगल करणी संकट हरणी,
देती पुण्य पियूष सर्वदा।तेरी सेवा सदा करेंगे, कोटि
कोटि भारत भूमि।।
सिंधु की हर लहर चरण पखारती, नदियां
करती श्रृंगार।सिकंदर भागा हारा मान,धन्य
देश धन्य हिन्दुस्थान।।
भारत मां
तु शुद्ध है तु बुद्ध है तु है प्रेम का सागर।
भारत मां तेरी जय हो है कोटी नमस्कार।।
नहीं किसी के सामने हमने, शीश
झुकाया है।जो हमसे टकराने आया,
काल उसी का आया है।।तेरा वैभव सदा रहे मां, जय वन्दे
मातरम्।जय वन्दे मातरम,
जय भारत मातरम्।।
रूक न पाये तुफानों में सबसे आगे बढ़े कदम ।
जीवन पुष्प चढ़ाने निकले , माता
के चरणों में हम।।जय वन्दे मातरम्,
जय भारत मातरम।
जहां राम ने जन्म लिया, जहां
कृष्ण ने दर्श दिया।अवतारों ने जन्म लिया, हम सब
ने गर्व किया।
जाग उठे हम फिर से देखो, विजय
ध्वज फहराने।नया जोश भरकर चले है देखो, माता
के कष्ट मिटाने।।जिनके पुरखे महा यशस्वी, वे फिर
क्यों घबरायें।जिनके सुत अतुलित बलशाली, शौर्य
गगन पर छाये।
हम धूल लगाकर मस्तक पर सौगन्ध देश की खाये है,
सौगन्ध हमें आजादी की,इस
धरती पर जनमाये हैं।सौगन्ध हमें है पुरखों की, जिनके
गुण रक्त समाये हैं।
सदैव से महान जो सदैव ही महान वो,
कोटि कोटि कंठ से अखण्ड वंद गान हो,
व्यक्ति व्यकित के ह्दय समष्टि भाव को जगा,
कामना और स्वार्थ के हेय भाव को मिटा।
उपकारों का मोह नहीं जयकारों की परवाह नहीं
अहंकार से दूर रखेंगे, प्रभु
का सदा सहारा हैंभारत हो वैभव से भरी,
जीवन लक्ष्य हमारा है।
deshbhakti ka gana ।
देश भक्ति गीत लिखित 2021। देश भक्ति गीत
सुरज बदल चन्दा बदले , बदल
जाये ध्रुवतारा।
पर भारत की आन न बदले, यह
संकल्प हमारा।।
उन्नत शीश हिमालय जिसका, वह
झुकना क्या जाने।
जो श्कारि रिपु दमन विजेता, वह
डरना क्या जाने।
अब संभले वह शत्रु नराधम, जिसने
है ललकारा।।
देवा सुर संग्राम जयी हो, महाबली
जग माता।
रावण कंस असुर संहारक, सजय
धर्म निर्माता।
इस स्वदेश के हम सपूत हैं, साक्षी
है जग सारा।।
मिली चुनौती जब भी हमको, उसे
सदा स्वीकार किया ।
शीश चढ़ा कर मातृ भुमि का , नित्य
नया श्रुंगार किया ।
वही शक्ति अब भी अक्षय है बदलेंगे युग-धारा।
मांग रहा बलिदान वतन।
हो जाओ तैयार साथियों, हो जाओ
तैयार ।।
अर्पित कर दो तन मन धन मांग रहा बलिदान वतन।
अगर देश के काम न आये, तो
जीवन बेकार।
सेाचने का समय गया उठो लिखो इतिहास नया।
बंसी फेंको और उठा लो, हाथों
में तलवार ।
तूफानी गति रूके नहीं, शीश
कटे पर झुके नहीं।
उठे हुए माथे के सममुख ठहर न पाती हार।
कांप उठे धरती अम्बर, और उठा
लो उंचा स्वर।
कोटि- कोटि कंठों से गूंजे, भारत
की जयकार।
हम भारत की शान हैं
आन है शान हैं हम भारत की शान है।
पुरूषोत्तम मर्यादा धारी, द्वापर
में हम कृष्ण मुरारी।
हर युग में कर धर्म ध्वजा ले वैजयन्ति गल माल हैं।
वीर शिवा राणा अभिमानी, गुरू
गोविन्दसिंह थे, बलिदानी।
बन्दा वैरागी जैसों के तेजस्वी हम लाल हैं।
नाना तात्या रानी झांसी प्रलयंकर बन चूमी फांसी
पाण्डे मंगल कुका फड़के धधक उठे वे ज्वाला हैं।
दयानन्द अरविन्द विवेका, एक तत्व
के रूप अनेका,
दिव्य ज्योति केशव माधव की स्पन्दित हर प्राण
हैं।
हम भारत मां के प्यारे।
हम आजादी के रखवाले,
बाधाओं की परवाह नहीं।
हम भारत मां के सुत प्यारे, पद यश
की हमको चाह नहीं।
हम उस कानन के वासी हैं आजादी जिसमें खिलती है,
समरस जीवन की गंगा की, धारायें
पग-पग मिलती हैं,
हम शाश्वत पथ के राही है छल कपट हमारी राह नहीं
हम शांति प्रणेता शक्ति सुवन, सत पथ
पर निशिदिन बढ़ते हैं।
गिरी पर्वत नदी दरारों में हम निर्भय होकर चलते
हैं।
लहरों की छाती चीर चले कुछ संकट सिंधु अथाह नहीं।
मुस्काते हरदम रहते हैं मन में सुलगायें चिनगारी
आदर्शों की भीषण ज्वाला, भस्मित
करती जड़ता सारी।
पर अमृत हम छलकाते हैं फैलाते अन्तर्दाह नहीं।
जो हमसे टकराने आया
वन्दे मातरम् , वन्दे मातरम् ,
वन्दे मातरम् ।
भारत वन्दे मातरम,
जय भारत वन्दे मातरम्।
रूक न पाये तुफानों में सबके आगे बढ़े कदम।
मस्तक पर हिमराज विराजित, उन्नत
माथा माता का ।
चरण धो रहा विशाल सागर, देश
यही सुन्दरता का ।
हरियाली साडी पहने मां, गीत तुम्हारे
गाये हम ।
वन्दे मातरम्…….
नदियन की पावन धारा है मंगल माला गंगा की
कमर बंध है विंध्याद्रि का सतपुड़ा की श्रेणी की ।
सह्यद्रि का वज्रहसत है, पौरूष
को पहचानें हम।
वन्दे मातरम्…….
नहीं किसी के सामने हमने, अपना
शीश झुकाया है।
जो हमसे टकराने आया ,
काल उसी का आया है।
तेरा वैभव सदा रहे मां, विजय
ध्वजा फहरायें हम।
वन्दे मातरम्…….
प्यारा देश हमारा है-
सब देशों से न्यारा है, प्यारा
देश हमारा है
जिस धरती पर जन्म लिया, जिस पर
पलकर बड़े हुए
जननी से भी बढ़कर है प्यारा देश हमारा देश
जहां राम ने जन्म लिया, जहां
कृष्ण ने दर्श दिया।
अवतारों का जन्म स्थल, प्यारा
देश हमारा हैं।
कभी सुखी था यह भरपुर दु-ख से है अब चकनाचुर
निश्चय ही विश्व गुरू बनेगा प्यारा देश हमारा
देश।
जीवन से भी बढ़कर है प्यारा देश हमारा देश।
जननी जन्म भूमि स्वग से महान है।
जननी जन्मभूमि स्वर्ग से महान है
इसके वास्ते ये तन है मन है औ प्राण है
इसके कण कण में लिखा राम कृष्ण नाम है
हुतातमाओं के रूधिर से भूमि शस्य श्याम है।
धर्म का ये धाम है सदा इसे प्रणाम है
स्वतंत्र है यह धरा,स्वतंत्र आसमान है।
इसकी आन पे अगर जो बात कोई आ पड़े।
इसके सामने जो जुल्म के पहाड़ हो खड़े
शत्रु सब जहान हो विरूद्ध विधि विधान हो।
मुकाबला करेंगे तब तक जान में ये जान है।
इसकी गोद में हजारों गंगा यमुना झूमती
इसके पर्वतों की चोटियां गगन को चुमती भूमि ये महान
है निराली इसकी शान है
इसकी जय पताका ही स्वयं विजय निशान है1
संगठन गढ़े चलो,
संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ चलो।
भला हो जिसमें देश का वो काम सब किये चलो।
युग के साथ मिल के सब कदम बढ़ाना सीख लो।
एकता के स्वर में गीत, गुनगुनान
सीख लो।
भूल कर भी मुख में जाति पंथ की न बात हो।
भाषा, प्रान्त के लिए कभी न रक्तपात हो
फूट का भरा घड़ा है फोड़कर बढ़े चलो।
आ रही हे आज चारों ओर से यही पुकार।
हम करेंगे त्याग मातृभुमि के लिए अपार।
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम।
देश के लिए सदा जियेंगे और मरेंगे हम।
देश का ही भाग्य अपना भाग्य है यह सोच लो।
मातृभूमि
हे मातृभूमि तेरे चरणों में सर नवाऊ
मैं भक्ति भेंट अपनी तेरी शरण में लाऊ
हे मातृभूमि तेरे चरणों में सर नवाऊ
माथे पे तु हो चन्दन सीने पे तू हो माला,
जिव्हा पर गीत तू हो मैं तेरा नाम गाउ।
हे मातृभूमि तेरे चरणों में सर नवाऊ
जिससे सपूत उपजे श्री रामकृष्ण जैसे
उस तेरि धूलि को मैं निज शीश पे चढ़ाऊ
तेरे ही काम आउं तेरा ही मन्त्र गाउ।
मन औद देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाउ।
भारत देश हमारा है।
जान से प्यारा है यह भारत देश हमारा है।
भारत देश हमारा है यह जान से भी प्यारा है।।
मातृभुमि यह पितृभुमि यह जगती में अवतारी है।
स्वर्गलोक से भी बढ़कर है तीन लोक से न्यारी है।
चांद सितारों ने ऋतुओं ने इसका गात्र संवारा हैं।
रणवीरों ने माता का श्रृंगार किया ।
संतों ने मुनियों ने जग को ज्ञान दिया उपकार किया।
भारत माता की जय ऐसा यत्न हमारा है।
जान से भी प्यारा भारत देश हमारा है।
नदि से सीखा है हमने पल पल बढते जाना है।
दीपक से सीखा है हमने तिल तिल जलते जाना है।
जन जन में एकात्म जगाकर संगठन में लायें हम
परम वैभव पाने का पावन ध्येय हमारा है।
पावन ध्येय हमारा है यह जान से भी प्यारा भारत
देश हमारा है।
भारत मां तेरी पावन पूजा में, हम
केवल इतना कर पायें।
युग से युग से चरणों में तेरे, चढ़ते
आये पुष्प घनेरे।
हमने उनसे सीखा केवल,
अपना पुष्प चढ़ा पाये।
भारत मां तेरी पावन पूजा में, हम
केवल इतना कर पायें।
हम भी अपने
टुटे स्वर को उनके साथ मिला पाये।
कुछ कली चढ़ी कुछ पुष्प चढ़े, कुछ
समय से पहले फिसल पड़े
हमको दो वरदान यही भारत मां, विकसित
होकर चढ़ जायें।
भारत मां तेरी पावन पूजा में, हम
केवल इतना कर पायें।
मां तेरे पुजा पथ पर हम लड़ते लड़ते भिड़ते बढते
जायें।
अन्तिम आकांक्षा हम सबको, जब
पावन पूजा हो तेरी।
तब तनिक न पड़ असमंजस में यह जीवन पुष्प चढ़ा
जायें।
भारत मां तेरी पावन पूजा में, हम
केवल इतना कर पायें।
हो गये हैं स्वप्न सब साकार कैसे मान लें हम।
टल गया सर से व्यथा का भार कैसे मान ले हम।।
आ गया स्वतंत्रता फिर भी चेतना आने प पायी।
प्रगति के ही नाम श्रद्धा और श्रम को दी विदायी।
इस भयंकर मौज को पतवार कैसे मान लें हम।।
दश सारा घिर रहा है दैन्य के घन बादलां से।
घिर रही प्रिय मातृ भूमि है चतुर्दिक खल अरिदलों से
।
इस अमां के तिमिर को ही अरूणिमा क्या मान लें हम।
देश सारा घिरा रहा है दैन्य के घन बादलों से।
हम सभी का एक व्रत हो विश्व में मां की प्रतिष्ठा।
देश के भवितव्य को ही, अब
चुनौती मान लें हम।
एक नया विश्वास रचें हम-
एक नया इतिहास रचें हम, एक नया
इतिहास
डगर डगर सब दुनियां चलती हम बीहड़ में पन्थ
बनायें।
मंजिल चरण चुमने आये,
हम मंजिल के पास न जायें।
धारा के प्रतिकुल नाव रखें।
एक नया विश्वास रचें हम
दुर हटाकर जग के बन्धन बदलें हम जीवन की भाषा
छिन्न भिन्न करके बन्धन, बदलें
हम जीवन परिभाषा
अंगारों में फूल खिलाकर एक नया मधुमास रचें हम।
अम्बर हिले धरा डोले पर हम अपना पन्थ न छोड़़े
सागर सीमा भूले पर हम अपना ध्येय न छोंडे़।
स्नेह प्यार की वसुन्धरा पर , एक नया
आकाश रचें हम।
यह देश है हमारा।
इतिहास गा रहा है दिन रात गुण् हमारा।
दुनियां के लोगों सुन लो यह देश है हमारा।
इस पर जनम लिया है इसका पिया है पानी
माता है यह हमारी यह है पिता हमारा।
वह देवता हिमालय हमको पुकारता है
गुण गा रही है निश दिन गंगा की नील धारा।
पोरस की वीरता को झेलम तु ही बता दें
युनान का सिकंदर था तेरे तट पे हार
उज्जैन फिर सुना दे विक्रम की वह कहानी
जिसमें प्रकट हुआ था संवत नया हमारा।
आता है याद हरदम,
गुप्तों का वह जमाना।
सारे जहां पे छाया वह स्वर्ण युग हमारा।
चितौड़ रायगढ़ चमकौर फिर गरज उठ।
सदियों लड़ा निरंतर,
आजाद खून हमारा।
दी क्रांतिकारियों ने अंग्रेज का चुनौती
पल पल प्रकट हुआ था स्वतंत्रता वह हमारा।
हम इनको भूल जायें संभव नही कभी यह इनके लिए
जियेंगे यह धर्म है हमारा।
होगा भविश्य उज्जवल संसार में अनोखा
बतला रहा हमको यह संगठन हमारा
भारत मां का मान
भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने।
कदम कदम पर मिल जुल गाते वीरों के व्रत के गाने।
ऋषियों के मंत्रों की वाणी, भरती साहस
नस नस में।
चक्रवर्तियों की गाथा सुन नहीं जवानी है बस में
हर हर महादेव के स्वर से विश्व गगन का थर्राने ।
भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने
हम पर्वत को हाथ लगा कर संजीवन कर सकते हैं
मर्यादा बन कर असुरों का बलमर्दन कर सकते हैं
हिरणाक्ष का वक्ष चीर दें, नरिसंह
की दहाड़ लिये।
चक्र सुदर्शन की छाया में गीता अमृत बरसाने
भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने
जरासंघ छल बल दिखला ले अन्तिम विजय हमारी है
भीम पराक्रम प्रगटित होना, अर्जुन
का रथ हांक रहा जो उसके हम सब दीवाने
भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने
ध्येय मार्ग पर चले वीर तो पीछे अब न निहारो हिम्मत
कभी न हारो।
तुम मनुष्य हो, शक्ति तुम्हारे जीवन का संबल है
और तुम्हारा अतुलित साहस गिरि की भांति अचल है
तो साभी केवल पल भर को मोड माया बिसारो हिम्मत कभी
न हारो।
मत देखो कितनी दूरी है कितना लम्बा मग है
और न सोचो साथ तुम्हारे आज कहां तक जग है
लक्ष्य प्राप्ति की बलिवेदी पर अपना तन मन वारो
हिम्मत कभी न हारो।
आज तुम्हारे साहस पर ही मुक्ति सुधा निर्भर है
आज तुम्हारे स्वर के साथी कोटि कंठ के स्वर है
तो साथी बढ़ चलो मार्ग पर आगे सदा निहारों हिम्मत कभी
न हारो।
मातृभूमि गान से
मातृभुमि गान से गूंजता रहे गगन।
स्नेह नीर से सदा फूलतें रहे सुमन।
जन्म सिद्ध भावना स्वदेश का विचार हो
रोम रोम में रमा स्वधर्म संस्कार हो
आरती उतारते प्राण दीप हों मगन ।
स्नेह नीर से सदा फूलतें रहे सुमन।
हार के सुसूत्र में मोतियों की पंक्यिां
लक्ष्य लक्ष्य रूप से राष्ट्र हो विराट तन।
स्नेह नीर से सदा फूलतें रहे सुमन।
ऐक्य शकित देश की प्रगति में समर्थ हो
धर्म आसरा लिए मोक्ष काम अर्थ हो
पुण्य भूमि आज फिर ज्ञान का बने सदन।
स्नेह नीर से सदा फूलतें रहे सुमन।
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