बस्तर
का इतिहास history of bastar
दण्डकारण्य
क्षेत्र क्या हैं dandkaranya –
क्षेत्र क्या हैं dandkaranya –
दण्डक इक्ष्वाकु राजा के तीसरे बेटे दण्ड के नाम रखा गया हैं यह जनपद था।
दण्डकारण्य
का इतिहास History of Dandkaranya-
वाल्मीकी रामायण, महाभारत, वायुपुराण, मत्स्य पुराण, वामन
पुराण ग्रंथ के अनुसार. राजा दण्ड शुक्राचार्य के अनुपस्थिति
में उसके आश्रम में घुसकर उनकी बेटी अरजा से बलात्कार किया । शुक्राचार्य ने क्रोधीप
होकर श्राप दिया। वैभवशाली दण्डक जनपद भस्म हो जाये।इसप्रकार वह जनपद जंगल क्षेत्र
बन गया।
दण्डकारण्य
में सम्मलित क्षेत्र dandkaranya region–
भूतपूर्ण बस्तर राज्य,
जयपुर ओडिसा जमीदारी, चांदा जमीदारी गोदावरी नदी
उत्तरी आंध्रप्रदेश क्षेत्र
बस्तर
का नामकरण क्रम –
दण्डकवन > दण्डकारण्य > महाकान्तार > बस्तर
बस्तर
का नामकरण bastar ka namkaran–
1 शुरूवाती लोग बांस के तले में निवास करते
थे। बांस तल से बना बस्तर
2- विद्वानों
के अनुसार- भूभाग का बड़ा विस्तार था अत: नाम पड़ा वितार से बना बस्तर
3- दंतेश्वरी
माता (दंतेवाड़ा) कथा में उन्होंने अपना वस्त्र फैला दिया जो भूमि उनके वस्त्र के आंचल में आई वस्त्रर कहलाया इसी से बना बस्तर
।
बस्तर के राजवंश शासन, शासक bastar ruler-
10वीं
शताब्दी के पश्चात 3 वंशों का उदय हुआ।- नागवंश, बाणवंश,काकतीय राजवंश,
बस्तर
के नागवंश या बस्तर का छिंदक नागवंश-
- समय
काल- 1023 से 1324 तक - गौत्र-
कश्यप गौत्र, छिन्दक कुल - उपाधि
-भोगवतीपुरेश्वर - शासन
का क्षेत्र-चक्रकोट राजा के नाम से मशहूर (चित्रकोट क्षेत्र बस्तर)
बस्तर
का छिंदक नागवंश के शासक-
- नृपति
भूषण–
छिंदक नागवंश का प्रथम राजा - धारावर्ष
जगदेव भूषण- के सामान्त चन्द्रादित्य ने बारसुर तालाब एवं शिव मंदिर बनाया। - मुधरांतदेव-
धारावर्ष का बड़ा पुत्र - सोमेश्वरदेव
कन्हरदेव- बस्तर क्षेत्र के वेंगी, भद्रपटटन,
वज्र क्षेत्र को विजित किया । - कन्हरदेव-
सोमेश्वर का पुत्र - राजभूषण
/ सोमेश्वर 2 – - जगदेवभूषण
नरसिंहदेव- मांणिक देवी का भक्त - जयसिंह
देव - हरिशचन्द्र
देव- अंतिम राजा, वारंगल के चालूक्यों काकतीयों
ने पराजित कर चक्रकोट पर प्रभाव स्थापित।
तेलुगु
चोडवंश telugu choddhvansh-
छिंदक
राजा सोमेश्वर का सेनापति यशोराज प्रथम ने 1020 में कोसल के सोनपुत्र क्षेत्र जितकर
वहां राज्यपाल के रूप में राज्य किया।
शासक
क्रम– यशोराज प्रथम, यशोराज द्वितीय धारल्लेदव,
यशोराज तृतीय, सोमेश्वर तृतीय जो कि छिन्दक नागवंश
में शामिल हेा गया ।
आगे
चलकर छिन्दक नागवंश कल्चुरी राजा जाजल्देव के अधिन में आ गये।
काकतीय
शासन kaktiya dinesty-1324 से 1947 तक
काकतीया
शासक (वारंगल आंध्रपदेश) बस्तर में कैसें आऐ– गयासुद्दीन तुगलक 1320 से 1325 में वारंगल
के राजा प्रतापदेव पर हमला किया । प्रतापरूद्रदेव एवं सेना बस्तर की ओर भागी । बस्तर
को जिता एवं अन्तिम नागवंशी राजा हरिशचंद को हराया। दंतेवाड़ा में चक्रकोट का स्वामी
बना।
काकातीय
राजाओं की सुची kaktiya ruler –
अन्नमदेव, हमीरदेव, भैरवदेव, पुरूषोत्तमदेव,
जयसिंह देव, नरसिंह देव, प्रतापराजदेव, जगदीश राजदेव, वरीनारायण
देव वीरसिंह देव, दिक्पाल देव, राजपाल
देव,चंदेलमामा (चंदेलवंश), दलपतदेव, अजमेरसिंह।
बस्तर
में मराठा शासक(1775-1853)-
मराठा, शासकों से वार्षिक टकोली लेते थे।
दरियादेव
(1777 से 1800 )– भोंसला राजा को वार्षिक रू 4000 वार्षिक से 5000 तक दिया। हल्बा
विद्रोह में मराठों का मददगार राजा। 1795 में भोपालपट्टनम संघर्ष हुआ।
बस्तर
छत्तीसगढ़ का हिस्सा कैसे बना-
कोटपाड़
संधि 6 अप्रैल 1778 – इसी संधि से बस्तर छत्तीसगढ़ का हिस्सा बना। भोंसला , जैपुर और बस्तर राजा दरियादेव के मध्य। भोंसला को प्रतिवर्ष 59000रूपये टकोली
पत्र में हस्ताक्षर का निर्णय लिया गया। बस्तर नागपुर के अधीन रतनपुर राज्य के अन्तर्गत
शामिल हो गया।
भोसलों
के अधीन काकतीया शासक- दरियादेव, महिपालदेव, भूपालदेव
बस्तर
में अंग्रजो एवं मराठो का शासन(1819-53)-
महिपालदेव–
(1800 से 1842 ) इसके समय परलकोट विद्रोह हुआ था। महिपाल सिहावा परगना के अंतर्गत नागपुर
शासन के अधीन था।
भूपालदेव–
(1842-53)- इसके समय तारापुर विद्रोह एवं मेरिया विद्रोह हुआ।
बस्तर
में ब्रिटिश राज (1854 से 1947 तक)-
शासक–
भैरमपदेव,
रू्द्रप्रतापदेव, महारानी प्रफुल्लकुमारी देवी,
प्रवीर चन्द्र भंजदेव (1936 से 1947)
डलहौजी
हड़पनीति के कारण नागपुर रघुजी तृतीय ब्रिटिश शासन में विलय हो गया । नागपुर क्षेत्र
के साथ छत्तीसगढ़ क्षेत्र एवं बस्तर क्षेत्र में अंग्रेजी हुकुमत में मिल गया।
शासक–
- भैरमदेव–
के समय रानी चौरिस का विद्रोह हुआ। - रूद्रप्रतापदेव– घैटीपौनी स्त्री विक्रय प्रथा शुरू हुई। सेन्ट ऑफ जेरूसलम की उपाधि प्राप्त
। - प्रफुल्लकुमारी
देवी– एक मात्र महिला शासिका । जगदलपुर महारानी अस्पताल इन्ही के नाम पर ।
भारत
के ब्रिटिश मुक्त होने के बाद काकतीय वंश जो आगे चलकर भंजदेव कहलाया।
बस्तर
महाराजा–
- प्रवीरचन्द्र भंजदेव 1947 से 61,
- विजयचंद्र भंजदेव
1961 से 69, - भरतचंद्र भंजदेव 1969 से 96 ,
- कमलचंद भंजदेव 1997 से वर्तमान ।
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