पंचायती राज व्‍यवस्‍था में महिलाओं की भूमिका (panchayati raj vyavastha mein mahilaon ki bhumika)



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भारत एक ग्राम प्रधान लोकतान्त्रिक देश हैं। लोकतन्‍त्र
की निम्‍नतम इकाई ग्राम पंचायत होती है तथा स्‍थानीय स्‍वशासन में यह महत्‍वपूर्ण भूमिका
का निर्वाह करती है। सन्‍ 1959 में गठित बलवंत राव मेहता की सिफारिशों के आधार पर पंचायती
राज व्‍यवस्‍था का प्रारंभ हुआ
, परन्‍तु पंचायती राज की प्रारम्भिक व्‍यवस्‍था पूर्वत: असफल
सिद्ध हुई ।  क्‍योंकि इसका मुख्‍य कारण सत्‍ता
का पिछले वर्गों के स्‍थान पर गांव के उच्‍च एवं विशेष वर्गों के हाथों मे चले जाना
था। वास्‍तव में उस समय स्थिति ऐसी थी कि जिन वर्गों के उत्‍थान के लिए ग्राम पंचायती
राज इसमें से एक वर्ग महिलाओं का भी था। कालान्‍तर में सत्‍ता के विकेन्‍द्रीकरण करे
उपयुक्‍त अर्थो में पिछड़े वर्ग एवं महिलाओं को भागीदार बनाने का निश्‍चय किया गया।

संविधान
के 73 वें एवं 74 वें संशोधन के माध्‍यम से पंचायतों में महिलाओं के लिए एक तिहाई आरक्षण
की व्‍यवस्‍था के परिणामस्‍वरूप इस समय लगभग 20 लोख स्त्रियों त्रिस्‍तरीय ढ़ाचे में
अध्‍यक्ष और सदस्‍य पदों पर कार्यरत हैं। यह एक बड़ी संख्‍या हैं और निश्चित ही इससे
अभी तक ठहरी ग्रामीण व्‍यवस्‍था में परिवर्तन दृष्टिगोजर हाने लगा हैं। महिलाओं का
यह राजनीतिक सशक्तिकरण न केवल महिलाओं के विकास के लिए आवश्‍यक है अतिपु यह उनकी सदियों
से दबाई गई रचनात्‍मक क्षमता को भी समाज के सम्‍मुख उजागर करता है। पंचायती राज में
महिलाओं की भूमिका को लेकर पूर्व में काफी सर्वेक्षण किये जा चुके हैं।

जिनका
बुनियादी निष्‍कर्ष यह है कि महि‍लाओं की राजनीतिक कार्यक्षमता के विषय मे जो भ्रांतियां
समाज में व्‍याप्‍त थीं। उन्‍हें महिला पंचायत अध्‍यक्षों ने अपनी कार्य कुशलता एवं
कार्य शैली के आधार पर दूर कर दिया हैं। इससे पुरूष वर्ग उनकी महत्‍ता समझने लगा हैं
और प्रारम्‍भ में महिलाओं को जिस प्रतिरोध का सामना करना पड़ता था। अब वह दूर होने
लगा हैं।निर्वाचित महिलाएं अन्‍य महिलाए तथा किशोरियों के लिए आदर्श बन गई हैं। अब
अधिकांश ग्रामीण महिलाएं अपनी समस्‍याओं को समुचित निर्वाचित महिला पंचायत अध्‍यक्षों
एवं सदस्‍यों के सम्‍मुख प्रस्‍तुत करती हैं तथा महिला पंचायत अध्‍यक्ष अपने राजनीतिक
अधिकारों तथा अपने व्‍यकितगत अनुभवों के आधार 
पर उन समस्‍याओं का समुचित समाधान प्रस्‍तुत कर रही हैं। ये पंचायत अध्‍यक्ष
ग्रामीण समस्‍याओं पर तो नियन्‍त्रण कर ही रही है
, इसके साथ
ही इन्‍होने कई क्षेत्रों में समाजिक बुराइयों के विरूद्ध भी अपना अभियान चला रखा हैं।

पंचायतों
के माध्‍यम से अनेक महिलाएं जैसे फातिमा बी
, सविता बेन
गुजरात
, सुधा पटेल गुजरात, गुड़या बाई
मध्‍यप्रदेश उर्मिला यादव हरियाणा
,आदि ऐसी हजारों महिलाएं हैं जिन्‍होने पंचायतों का नेतृत्‍व
सम्‍हालने के पश्‍चात ग्रामीण विकास के अनेक सामाजिक एवं आर्थिक कार्यो को आगे बढ़ाया
है। अभी कुछ वर्ष पूर्व की उत्‍तरप्रदेश में सम्‍पन्‍न हुए पंचायत चुनावों में जिला
पंचायत के अध्‍यक्ष पद हेतु 50 प्रतिशत से अधिक महिलाओं ने चुनाव में विजयी घोषित होकर
अध्‍यक्ष पद भार ग्रहण किया था जिसका ग्रामीण विकास
, विशेषकर महिला
और बाल विकास कार्यक्रमों पर सकारात्‍मक प्रभाव स्‍पष्‍ट रूप से दिखाई पड़ रहा हैं।

वर्तमान
समय में महिलाओं की सामा‍जिक स्थिति परिवर्तित हो रही हैं। पंचायती राज व्‍यवस्‍था
में महिलाओं की सक्रिय भागीदार से उन्‍हें जो नया परिवेश मिल रहा है
, वह उनके लिए
प्रगति तथा विकास के नये आयाम तो स्‍थापित कर ही रहा है तथ इसके साथ ही पुरूष समाज
के वर्चस्‍व पर भी अंकुश लगाकर उन्‍हें यह समझाने में अपनी भूमिका का निर्वाह कर रहा
हैं कि भारत की ग्रामीण महिलाएं पुरूषों की अपेक्षा किसी भी स्‍तर पर कमजोर नहीं तथ
ग्रामीण विकास में उनकी भूमिका को किसी भी रूप में अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए।

महिलाओं
ने अवसर प्राप्‍त करते ही घर की चार दिवारी से बाहर निकलकर अपने आप को कुशल प्रशासक
के रूप में नेतृत्‍व करने की अपनी क्षमता को सिद्ध करने का सफल प्रयास किया है। इसका
सशक्‍त उदहारण- राजस्‍थान का बाड़मेर जिला है। 73 वें संविधान संशोधन से पूर्व बाड़मेर
जिलो में जितनी बार भी पंचायत चुनाव हुए कोई भी महिला सरपंच के पद पर निर्वाचित नहीं
हुई थी। परन्‍तु वर्ष 1995 में नए अधिनियम के प्रभाव में आने के पश्‍चात इस जिले में
चुनाव कराये गये जिसमें इस जिले की 360 ग्राम पंचायतों में से 129 33.99 प्रतिशत महिला
सरपंच चुनी हुई । इसी प्रकार इन 380 ग्राम पंचायतों में 41170 वार्ड पंच चुने गए जिनमें
लगभग 1390 महिलाएं थीं।

इसी
प्रकार भारत में मध्‍यप्रदेश प्रथम राज्‍य था जिसने 73 वें संविधान संशोधन के पश्‍चात
पंचायतों के चुनान करायें। मध्‍यप्रदेश के इतिहास में पहली बार अनुसूचित जाति वर्ग
में 144735 प्रतिनिधि चुने गये
, जिसमें से 48 993 स्त्रियां थीं। इसी प्रकार पिछड़ी जातियों
के 82504 प्रतिनिधि चुने गये जिनमें से 26
,735 स्त्रियां
भी इसके अतिरिक्‍त सामान्‍य वर्ग से 61
,993
स्त्रियां निर्वाचित होकर आई। यह स्त्रियों की मुकित और सशक्तिकरण
की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम था
,
जो कि समग्र विकास की एक अनिवार्य शर्त हैं। 73 वां संविधान
संशोधन पास हुए अभी तक एक दशक ही पूर्ण हुआ है किन्‍तु वर्षों से घर की चार दिवारी
के अंदर बंद महिलाओं ने बहर समाज में आकर एक कुशल प्रशासक के रूप में जिस प्रकार अपनी
उपस्थिति दर्ज करायी है वह नि:संदेह ग्रामीण समान में क्रांतिकारी परिवर्तन का कदम
हैं।

  • पंचायती राज व्‍यवस्‍था में महिलाओं की भागीदारी 

By Admin