What is
sericulture या what is silk worm farm-
रेशम पालन sericulture के अंतर्गत सिल्क
वोर्म या इल्लीयों से वैज्ञानिक एवं तकनीकी पद्धति द्वारा रेशम या सिल्क का उत्पादन किया जाता
हैं । इसके अंतर्गत रेशम कीट के जन्म से लेकर कोकून बनाने तक पूरी प्रक्रिया शामिल
होती हैं। क्यों कि रेशम कीट की प्रकृति नाजुक होती है इसमें अति सावधानी परतने की
जरूरत होती हैं।
silk worm
cultivation । silk worm cultivation in india
रेशम कीट ( silkworm ), silk worm cultivation पालन।
रेशम कीट ( silkworm ) पालन छोटे एवं मेंझोले किसान के लिये खेती के अतिरिक्त
व्यवसायों में एक लाभदायक व्यवसाय या धन्धा है। इस धन्धे या व्यवसाय को ग्रामीण महिलाएं
अपने घरों में चलाकर अतिरिक्त आय कर सकती है। आजकल कई कृषि विश्वविद्यालयों के
कृषि कीट (worm ) विज्ञान विज्ञान इस कुटीर धन्धे को संचालित
करने के लिए प्रयत्नशील हैं।
रेशम कीट (silk worm cultivation) पालन के सामान एवं उपकरण।
- लोहे अथवा लकड़ी का स्टैण्ड- ट्रे अथवा छावड़ा रखने के लिए।
- लकड़ी की ट्रे( 3 फीट x 2 फीट x 3 इंच ) अथवा छावड़ा- कीटों को रखनें के लिए।
- गंडासा / चाकु तथा बोर्ड- शहतुत पत्ती काटन के
लिए। - चन्द्रकी-कोशा बनवाने के लिए।
- शहतुत कीड़ो को खिलाने के लिए।
- फार्मलीन- निजर्मीकरण के लिए।
- बुझा चूने का पाउडर- पत्ती एवं नमी सुखाने के लिए।
- नायलान का जाल- सफाई के लिए।
- रेशम कीट ( silkworm )बीज
- पत्ती रखने के लिए लकड़ी अथवा बांस का पत्ती प्रकोष्ठ।
- रेशम कीट ( silkworm ) औषधि।
वैज्ञानिक तौर पर रेशम कीट ( silkworm ) पालन में
बाक्स में बताये गये सामान आवश्यक होते हैं। परन्तु स्थानीय परिस्थितियों एवं
किसान की आर्थिक सिथति को ध्यान में रखते हुए इनमें से कुछ सामानों के न रहने पर
भी काम चलाया जा सकता है। लकड़ी की ट्रे अथवा छावड़ा उपलब्ध न होने पर लकड़ी के
तख्त चारपाई अथवा दीवार के सहारे अस्थाई रूप से बनाये गये मचान पर इस कीट (worm ) का
पालन आसानी से किया जा सकता है।
चन्द्रीकी उपलब्ध न होने पर कोसा (Cocoon)बनवाने के लिये कीट (worm ) पालक स्थानीय स्तर पर उपलब्ध खुरदरे सतह
वाली पौधों की पत्ती सहित टहनियां, धान की पुआल
इत्यादि प्रयोग में ला सकते हैं हा इससे रेशम का थोड़ा बहुत नुकसान होता है।
नायलोन का जाल तथा पत्ती रखने का बक्सा न होने पर भी काम चलाया जा सकता है।
रेशम कीट ( silkworm ) (silkworm cultivation) पालन के लिये पूर्ण सफाई-
रेशम कीट ( silkworm ) अत्यन्त नाजुक कीट (worm) है अत: जरा सी आसावधानी अथवा गंदगी इसकी मौत्
का कारण बन जाती है इससे बचाव के लिए कुछ सावाधानी आवश्यक है। कीट (worm ) पालने का कमरा
रसोंई घर से निकलने वाला धुआं कीड़ों तक न पहूंचे। कमरा हवादार बनाकर अच्छी तरह
साफ कर लें। कमरे में 2 प्रतिशत फार्मलिन का घोल छिड़ककर कमरा 24 घंटे के लिये अच्छी
तरह से बंद से कर दें। ऐसी व्यवस्था कर लें कि कमरे में सीधी धूप चूल्हे, अथवा
मुर्गीयों न घुस पायें यदि लकड़ी के तख्त, चारपाई अथवा मचा न पर कीड़े पालना है तो इन्हें भी निजर्मीकृत कर लें। अन्य
उपकरण भी 2 प्रतिशत फार्मलीन में उपचारित करें। कीड़ों केा धूने से पहले हमेशा हाथ
साफ करें। बेहतर होग। यदि फार्मलीन के पानी में हाथ धोये तथा जूता इत्यादि कीट (worm ) पालन के कमरे से बाहर निकालें।
रेशम कीट ( silk
worm ) प्रजातियां what are the
different types of silkworms –
NB 18, NB4, D2KANB4,
SH6 इत्यादि कीट (worm ) पालन के कमरे से बाहर निकालें।
रेशम कीट ( silk
worm ) का बीज-
केन्द्र सरकार तथा प्रदेश सरकार के द्वारा अनेक जिलों में रेशम कीट ( silkworm ) बीज प्रगुणन / वितरण केन्द्र खोले गए हैं। इन केन्द्रों
द्वारा दो तरह के बीज कीट (worm ) प्रदान किये
जाते हैं । तकनीकी रूप से ऐसे जानकार किसान जो स्वयं घर पर रेशम अण्डों से इल्लियां(cetarpiller) निकाल सकेत हैं उन्हें अण्डे अन्यथा इन
अण्डों से इलिलयां निकालने इन्क्यूबेशन एंव इल्लियों की तीसरी अवस्था में आने
तक चाकी रियरिंग का कार्य एक ही केन्द्र पर इन्क्यूनेशन एंव चाकी सेन्टर
तकनीकी रूप से जानकार सरकारी कर्मचारियों के देख रेख में करके दिया जाता है। तीसरी
अवस्था की इल्लियां(cetarpiller) सभी इच्छुक किसानों को बांट दी जाती है ।
आगे कीट (worm ) पालन का कार्य कृषक स्वयं अपने घर पर करते
हैं। यहां समय समय पर आवश्यक जानकारी मिलती रहती है।
रेशम कीट ( silk
worm ) पालन की
प्रमुख क्रियाएं-
शहतूत mulberry की पत्ती देना –
शहतूत की पत्तियों रेशम कीट ( silk worm ) का भोजन
हैं जिसका इन्तजाम किसान को स्वयं करना पड़ता है अथवा स्थानीय केन्द्र पर लगे
सरकारी बाग से निश्चित रकम देकर पत्तियां ली जा सकती है अथवा स्वयं के बाग से
पत्ती ली जाती है।
अच्छी फसल के लिए अति आवश्यक-
- क्षेत्र के अनुसार शहतूत बाग लगाने की विधि, सिंचाई, खाद उर्वरक, एवं समय से कटाई छटाई।
- कीट (worm ) पालन की सभी सामान एवं सुविधाएं।
- गुणयुक्त स्वस्थ बाली रेशम कीट ( silk worm ) प्रजाति एवं सुविधाएं।
- निजर्मीकरण एवं स्वास्थकर स्थितियां।
- निश्चित एवं पर्याप्त भोजन तथा दुश्मनों से बचाव।
- कोसा (Cocoon)बनने के समय सावधानी।
चाकी केन्द्र से तीसरी अवस्था में आ चुके कीड़ों को घर लाकर निजर्मीकरण
कमरे में लगायें गये स्टेण्ड तख्त अथवा मचान पर फैला देते हैं। इन कीड़ों को
थोड़ी पुरानी चौथी/ पांचवी शहतूत की पत्ती काटकर 4 से 5 सेमी खिलाते हैं पत्ती
हमेशा पतली तह के रूप में 6 घंटे क अन्तर पर कीड़ों को सोने तक देते रहते हैं।
चौथी अवस्था में पुरानी पत्तियों को तोड़कर बिना कोटे सीधे कीड़ों के उपर डाल
देते हैं। पांचवी अवस्था में यदि श्रमिक का अभाव है तो पूरी की पूरी पत्ती सहित
टहनी दी जा सकती हैं। कम अवस्था में पुरानी पत्ती तथा पुराने उम्र के कीड़ों को
नई पत्ती नुकसान करती है। यदि पानी बरस जाय तो कभी भी नीली पत्ती कीड़ो को न
देकर पानी सूखने के बाद ही खाने को दें। कीड़ों को भूखा न रखें। सेाते समय पत्ती
कदापि न दें। यदि कुछ कीड़े जागते हैं और कुछ सो रहे हैं तो इन्तजार करके लगभग 90
प्रतिशत कीड़ों के जागने पर ही पत्ती दें।
सफाई-
पुरानी बिना खाई पत्तियां, मल विस्थापित
त्वचा इतयादि की सफाई करें। इसके लिये नायलोन के जाल को कीड़ों के उपर बिठाकर
शहतूत की पत्ती डाल दें थोड़ी देर में कीड़े उपर आ जायेंगे। उनको जाल सहित निकाल
कर दूसरे ट्रे में रख दें। पुराने ट्रे से कचरा निकाल कर दबा दें। यदि जाल उपलब्ध
ना हो तो यह कार्य हाथ से भी किया जा सकता है। कीड़ों पर पत्ती डालें जैसे ही
कीड़े उपर जायें पत्ती सहित उठाकर इन्हें दूसरे ट्रे में रख दें। ध्यान रहे इस
समय पुराना कचरा न उठाये। प्रत्येक अवस्था में कीड़ों के बीच स्थान बढ़ाते
जायें।
रेशम कीट ( silk
worm ) पालन में
विभिन्न अवस्थाओं की आवश्यक जानकारी-
जानकारी
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तृतीय अवस्था
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चतुर्थ अवस्था
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पंचम अवस्था
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तापमान
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25 से
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24 से
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24 से
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आर्द्रता
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75 से 80 प्रतिशत
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70 से 75 प्रतिशत
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70 प्रतिशत
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भोजन अन्तराल
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6 घंटे
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6 घंटे
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6 घंटे
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त्वचा विमोचन में लगा
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30 घंटे
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36 घंटे
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कोशा निर्माण
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पत्ती का आकार
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कटी हुई 4से 6 सेमी
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बिना कटी हुई पूरी पत्ती
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पूरी पत्ती अथवा पत्ती सहित टहनी
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सफाई
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दोबार
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रोज
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रोज
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अवस्था में लगा समय
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3 से 4 दिन
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2से 5 दिन
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6 से 7 दिन
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50 DFL में रेशम
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340 ग्राम
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450 ग्राम
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840 ग्राम चौथे दिन
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50 DFL के लिये शहतुत की पत्ती
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65 किलो
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104 किलो
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420 किलो
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एक अवस्था से दूसरी अवस्था में जाने के बीच में कीड़े सरणी में दर्शाए
समय तक कुछ नहीं खाते हैं तथा बिलकुल निष्क्रिय हो जाते हैं।इसे कीड़ों का सोना
कहते हैं इस समय इसका सिर मोटा एवं मुंह नुकीला हो जाता है। इस समय इनको पत्ती
नहीं देनी चाहिए। यदि अधिकतर कीड़े सोने की अवस्था में आ गये हैं तथा कुछ कीड़े
जाग रहे हैं तो इन पर बुझा चूना छिड़क कर पत्ती सुखा दें। इससे बढ़ी हुई नमी भी
कम हो जायेगी। जब लगभग 80 से 90 प्रतिशत कीड़े जग जाये त्वचा विमोचन कर लें, तो पत्ती देना शुरू करें। पत्ती देने के आधा घंटे पहले तालिका अनुसार रेशम
कीट (Silkworm ) औषधि बारीक कपड़े में बांधकर कीड़ों के उपर
बुरकाव करें। त्वचा विमोचन के बाद कीड़ों को भूखा न रखें।
कोसा (Cocoon) बनवाना ! silkworm cultivation-
cocoon |
मल त्याग देती है इनका शरीर पारदर्शी एवं पीला हो जाता है इस समय में सिर इधर उधर
हिलाकर सहारा ढूंढती हैं। ऐसी इल्लियों को उठाकर चन्द्रीकी में रख देते हैं। इस
कार्य में देरी नहीं करें। एक चन्द्रीकी में 800 -1000 कीड़े रखे जा सकते हैं।
यहां इल्लियां (cetarpiller)
कोसा (Cocoon)बनाती है जिसे लगभग 6 दिन बाद निकाल कर साफ
सफाई के बाद रेशम केन्द्र पर बेच दिया जाता है।