छत्रपति शिवाजी जयंती 2022 । Chhatrapati Shivaji Maharaj

Shivaji Maharaj jayanti 2022 । Chhatrapati shivaji maharaj Quotes & anmol vichar





सर्वप्रथम छत्रपति शिवाजी महाराज ( Shivaji Maharaj ) की जय।। किसी व्‍यक्ति के व्‍यक्त्वि
निर्माण में यों तो सारे परिवेश का महत्त्व उसके माता पिता एवं गुरू का होता है।
माता विशेष रूप से बालक रूपी पौधे को सींच कर पूर्ण्‍ मनुष्‍यरूपी वृक्ष बनाती है
और गुरू उसे छत्रछाया देने का गुण प्रदान करता है। छत्र‍पति शिवाजी ऐसे ही व्‍यक्त्त्वि
थे जिनके जीवन में उनकी माता जीजाबाई और गुरू रामदास का विशेष स्‍थान है।

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छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati shivaji maharaj)का जीवन परिचय । छत्रपति शिवाजी जयंती ( Shivaji Maharaj ) 2022 पर

शिवाजी ( Shivaji Maharaj ) का जन्‍म सन् 1627 ईसवी को पूना से लगभग 50 मील दूर
शिवनेर के पहाड़ी दुर्ग में हुआ था। छत्रपति शिवाजी के पिता का नाम शाह जी भोंसले
था
, जो बीजापुर रियासत में उच्‍च पद पर कार्यरत थे।
शिवाजी की माता का नाम जीजाबाई था। जीजाबाई धर्मनिष्‍ठ एंव उच्‍च विचारों वाली
महिला थीं। वे बहुत अधिक स्‍वाभिमानी थीं। यही कारण है कि उन्‍हें अपने पति का
बीजापुर दरबार में झुक झुककर सलाम करना पसंद न था। जीजाबाई ने छत्रपति शिवाजी का
पालन पोषण अत्‍यंत ध्‍यान से किया । वे अपने पुत्र को वीर पराक्रमी बनाने के साथ
स्‍वाभिमानी तथा अचछे चरित्र वाला व्‍यकित भी बनाना चाहती थीं। जीजाबाई ने अपने
पुत्र में यह सभी गुण बचपन से कुट कुट कर भरे। वे शिवाजी को बड़े-बड़े वीरों की
,
साधु संतों की गाथाएं सुनाती थी। रामायण और महाभारत की कहानियां
सुनाती थीं। साथ ही उन्‍हें राजनीति भी समझाती थीं । माता से अत्‍यधिक प्रेरित
होने के कारण छत्रपति शिवाजी बचपन से ही मल्‍लयुद्ध सीखना शुरू कर दिया था। मेधावी
होने के कारण थोड़े ही समय में वे युद्ध कला में निपुण हो गये।

वह युग मंगोल शासकों का युग था और समूचे भारत में अधिकांश राज्‍य
मंगोल शासकों के अधीन थे। शिवाजी 
(Chhatrapati shivaji maharaj)के पिता शाहजी चाहते थे कि वे बादशाहत में कोई
उंचा पद प्राप्‍त कर लें।लेकिन शिवाजी 
( Shivaji Maharaj ) 
 ने स्‍वतंत्र रहना अधिक अच्‍छा समझा। यह स्‍वतंत्रप्रियता
उन्‍हें अपनी माता से मिली थी। शिवाजी की माता जीजाबाई बचपन से ही शिवाजी को लेकर
अपने पिता के घर आ गई थीं।शिवाजी का पालन पोषण वहीं हुआ था। उसके बाद शिवाजी अपने
दादाजी कोणदेव की जागीर के प्रबंधक नियुक्‍त हुए। दादाजी कोणदेव का जागीर पूना में
थी।यहां रहते हुए उन्‍होंने शासन प्रबन्‍ध सीखा और दादाजी कोण देव की मृत्‍यु के
बाद जागीर का प्रबन्‍ध शिवाजी ने अपने हाथों में ले लिया। 19 वर्ष की आयु में ही
उन्‍होंने मराठों को एकत्र करके संगठित सेना बनायी और सर्वप्रथम शिवाजी ने बीजापुर
के कई दुर्गों पर अपना अधिकार जमा लिया। उनक उत्‍साह एवं साहस निरंतर बढ़ता ही जा
रहा था और आत्‍मविश्‍वास की उनमें कमी न थी
, इसीलिए उन्‍होंने मन ही मन मंगोल सेना से भी सामना करने की ठान ली। शिवाजी
की निरंतर विजय से नाराज बीजापुर के शासक ने उनके पिता शाहजी को कारागार भेज दिया।
शिवाजीने जब यह सुना तो अपनी बुद्धिमत्ता और कूटनीति से अपने पिता को कैद से मुक्‍त
करवाया। शिवाजी का युद्ध करने का तरीका बहुत भिन्‍न था। वे जिस ढंग से आक्रमण करते
थे उसे बाद में इतिहासकारों ने गुरिल्‍ला वार का नाम दिया और अंग्रेजों ने उन्‍हें
पहाड़ी चूहा तक कहकर सम्‍बोधित किया । अपनी थोड़ी सी सेना लेकर भी शिवाजी बड़ी
बड़ी शक्तियों का मुकाबला इसीलिए कर पाते थे क्‍योंकि उनकी योजना और युद्ध करने का
तरीका सर्वथा भिन्‍न था।




बीजापुर के शासक ने अपने सेनापति अफजल खां को एक भारी सेना के
साथ शिवाजी 
( Shivaji Maharaj ) 
 को परास्‍त करने को भेजा। अफजल खां शिवाजी के पराक्रम से परिचित था
इसलिए अफजल खां ने शिवाजी पर सीधा हमला नहीं किया
, बल्कि पीछे से आक्रमण करना अधिक उचित समझा। वे शिवाजी को धोखा देकर छलावे
से उन्‍हें समाप्‍त करना चाहते थे। अफजल खां ने शिवाजी का एकांत स्‍थान पर मिलने
का निमंत्रण दिया । निश्चित समय पर जब शिवाजी अफजल खां से मिलने के लिए तो अफजल
खां ने शिवाजी पर अपनी तलवार से वार किया लेकिन उसी पल शिवाजी ने अपने बघनख से
अफजल खां का पेट चीर डाला। उनकी शक्ति बढ़ती देखकर 1663 में औरंजेब ने मामा शइस्‍ता
खां के नेतृत्‍व में एक बड़ी सेना भेजी। शाइस्‍तांखां ने कई मराठा प्रदेशों को
रौंद डाला। इसके बाद वह पूना पहूंचा। छत्रपति शिवाजी अपने सैनिकों को रात के समय
एक बारात में छिपाकर पूना पहूंच गये। वहां उन्‍होंने आक्रमण कर दिया। शिवाजी
द्वज्ञरा हुए अचानक इस आक्रमण से शइस्‍तांखां डरकर भाग गया
, उसका
बेटा मारा गया। उसके बाद छत्रपति शिवाजी ने 1664 वे 1670 में सूरत पर हमला किया।
करोड़ो की सम्पत्ति लूटकर अपनी राजधानी को मजबूत किया । छत्रपति शिवाजी की यह विजय
औरंगजेब के स्‍वाभिमान पर भयंकर चोट थी।

औरंगजेब शिवाजी (Chhatrapati shivaji maharaj) को पराजित करने के लिए बेचैन हो गया और उसने
राजा जयसिंह को युद्ध के लिए भेजा। जयसिंह ने वीरता और चालाकी से कई किले जीते।
दोनों ओर से युद्ध में हिन्‍दू सैनिक मारे जा रहे थे अत: अंत में 1665 में पुरंदर
की संधि हुई। राजा जयंसिंह के विशेष आग्रह पर छत्रपति शिवाजी 
( Shivaji Maharaj ) 
औरंगजेब के आगरा
दरबार में उपस्थित हो गये। उनके साथ जो व्‍यवहार होना सुनिश्चित था वहीं हुआ । वे आपमानित
होकर बंदी बना लिये गये। औरंगजेब चाहता था कि छत्रपति उनके सामने झुककर सलाम करें
, माफी मांगे लेकीन शिवाजी को यह हरगिज मंजूर न था।
इसीलिए औरंगजेब की उन्‍हें बंदी बनाना पड़ा। बंदी बने किंतु उनके जैसा व्‍यक्ति अधिक
दिन तक बंदी नहीं रह सकता था। अपनी होशियारी और कुशाग्र बुद्धि का उन्‍होंने सहारा
लिया। वे बीमारी का बहाना कर मिठाई और फलों के टोकरे गीरबों में बंटवाने के लिए बाहर
भेजने लगे और एक दिन टोकरे में बैठकर कैद से भाग निकले। यहां से मुक्ति पाने के बार
उन्‍होंने मुसलमानों के किलों पर आक्रमण किया और कई किलों को जीता। इन किलों के अधिकारियों
से वे चौथ्‍ लेते थे। इसी बीच  उन्‍होने अपन
मुंडन कराया ओर काशी
, जगन्‍नाथपुरी तीर्थ स्‍थानों की यात्रा
की। 6 जून 1874 को शिवाजी का रायगढ़ के किले में राज्‍याभिषेक S
hivaji Maharaj Sinhasan शिवराज्याभिषेक किया गया। उनके बाद शक्ति
काविस्‍तार करके कई और मुगलों को परास्‍त किया। शिवाजी का निधन 53 वर्ष की आयु में
हुआ किन्‍तु मुगल साम्राज्‍य के लिए वे मराठों की ऐसी शक्ति छोड़ गये थे जिसका मुकाबला
करते करते औरंगजेब को 20 वर्ष तक दक्षिण में ही पड़ा रहा।

छत्रपति शिवाजी (Chhatrapati shivaji maharaj)के चरित्र की प्रमुख विशेषता उनकी धार्मिक सहिष्‍णुता
की भावना थी। उन्‍होंने अपनी सेना में मुसलामानों को उंचे पदों पर नियुक्‍त किया। कोइ
स्‍त्री यदि युद्ध में उनकी सेना में हाथ लग जाती थी तो उसे वे ससम्‍मान लौटा देते
थे। कुरान इत्‍यादि धार्मिक ग्रंथों को अपने मुस्लिम साथियों को पढ़ने के लिएदे देते
थे।खफी खां जैसा इसतिहासकार भी उनकी सहिष्‍णुता की तारीफ करता है। शिवाजी 
( Shivaji Maharaj ) जैसा चतुर
हिन्‍दू राजा भारतीय इतिहास में अन्‍य कोई नहीं दिखता जिसने विकट परिस्थितियों में
एक साधारण स्‍तर में उठकर एक विशाल साम्राज्‍य का निर्माा अपने बलबूते पर किया हो।
वहीं मृतवत मराठा जाति और हिन्‍दूओं में लड़ने का जोश भरने में उनका योगदान चिरस्‍मरीणीय
है।




Chhatrapati Shivaji
Maharaj Jayanti Quotes In English

  • Never bend your
    head, always hold it high.” – Chhatrapati Shivaji Maharaj Quotes
  • Freedom is a boon,
    which everyone has the right to receive-Chhatrapati Shivaji Maharaj Quotes
  • Do not think of the
    enemy as weak, but do not also overestimate their strength-Chhatrapati Shivaji
    Maharaj Quotes

Chhatrapati Shivaji
Maharaj Jayanti Quotes In Hindi

  • कभी भी
    अपना सिर न झुकाएं
    , हमेशा इसे ऊंचा रखें -(छत्रपति शिवाजी महाराज अनमोल
    वचन )
  • स्वतंत्रता
    एक वरदान है
    , जिसे
    प्राप्त करने का अधिकार हर किसी को है-(छत्रपति शिवाजी महाराज अनमोल वचन )
  • दुश्मन
    को कमजोर न समझें
    , लेकिन उनकी ताकत को भी अधिक महत्व न दें।-(छत्रपति
    शिवाजी महाराज अनमोल वचन )

Chhatrapati Shivaji
Maharaj Jayanti anmol vichar hindi me

  • kabhi bhi apana sir
    na jhukaaen, hamesha ise uncha rakhen- (chhatrapati shivaji maharaj Quotes)
  • swatantrata ek
    vardan hai, jise prapt karne ka adhikar har kisi ko hai-(chhatrapati shivaji
    maharaj Quotes)
  • dushman ko kamjor
    na samajhen, lekin unki takat ko bhi adhik mahatv na den-(chhatrapati shivaji
    maharaj Quotes)
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