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कृष्‍ण जन्‍माष्‍ठमी 2023 ! कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी मंत्र एवं पूजा विधि

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janmashtami par puja kaise kare ! कुष्‍ण जन्‍माष्‍टमी पर पूजा कैंंसे 

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन श्रीकृष्‍ण जन्‍म स्‍थान जो कि मथुरा है में विशेष पूजा एवं कार्यक्रम होता हैं। इस दिन महाराष्‍ट्र के हर हिस्‍से में दही हांडी (dahi handi)  प्रतियोगित किया जाता है एवं पुरस्‍कार दिया जाता हैं। यह विशाल एवं भव्‍य कार्यक्रम होता हैं।

krishna janmashtami  कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी का विशेष महत्‍व –

इस दिन श्रीकृष्‍ण ने रोहिणी नक्षत्र में आधीरात को मथुरा में देवकी माता के कोख से जन्‍म लिया था। इसके उपरांत श्रीकृष्‍ण ने मामा कंस और दूसरे अन्य राक्षसों का वध किया । कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी को जो भी उपवास या व्रत रखता है उसके सारे पाप समाप्‍त हो जाते हैं ऐसी मान्‍यता हैं।

krishna janmashtami puja vidhi कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी मंत्र एवं पूजा विधि-

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी को सुबह स्‍नान कर व्रत या उपवास की तैयारी करने होती है। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी मंत्र के रूप में हिन्‍दी में संकल्‍प करना चाहिए कि – मैं श्रीकृष्‍ण भगवान की भक्ति के लिए  अपने सभी पापों को नाश के लिए प्रसन्‍नतापूर्वक जन्‍माष्‍टमी के दिन व्रत रखकर पूर्ण करूंगी। और अधीरात्रि में पूजन करने के पश्‍चात दूसरे दिन भोजन करूंगी।

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी व्रत उपवास  विधि-

कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी के दिन यम नियमों का सही से पालन करने के लिए आप व्रत रखें । इसमें बिना पानी पिये ही व्रत रखें। कृष्‍ण जन्‍माष्‍टमी घरों और मंदिरों में कृष्‍ण के भजनकीर्तन एवं उनकी लीलाओं का प्रदर्शन किया जाता है। साम में झुला झुलाया जाता है। आरती के बाद मक्‍खनदहीपंजीरीजिसमें सूखे मेवे मिलाकर प्रसाद बनाकर वितरण किया जाता हैं। अगले दिन ब्राह्मण को भोजन कराना अच्‍छा होता हैं।

भक्ति एवं प्रेम आस्‍था का प्रतीक श्री कृष्‍ण भगवान का जन्‍म दिवस इस वर्ष 30 अगस्त 2021 को भाद्रपद मास में विशेष संयोग से आया हैं। इस विशेष पर्व पर कृष्ण जन्माष्टमी के दिन कृष्‍ण भक्‍त  पूरा दिन उपवास करते हैं. रात के 12 बजे तक भगवान श्री कृष्ण जी पूजा का कार्यक्रम शुरू कीया जाता हैं। पूजा का शुभ मुहूर्त 30 अगस्त की रात को 11 बजकर 59 मिनट से 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा  इस वर्ष कृष्ण भगवान का 5247वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। 

श्रीकृष्‍ण का जन्‍म कारावास में हुआ। कृष्‍ण के जन्‍म के बाद तुरंत ही पिता वसुदेव नवजात पुत्र को चोरी छिपे मथुरा से गोकुल ले गए। कृष्‍ण का जन्‍म जुलाई एवं अगस्‍त माह के मध्‍य में 3156 ई,पूमें हुआ था। यह समय द्वापर युग कहलाता था।कृष्‍ण 126 वर्ष 5 माह जीवित रहे। उनकी मृत्‍यु के बाद ही पूर्ण कलियुग का प्रारम्‍भ 18 फरवरी 3031 ईपू दोपहर 2 बजकर 27 मिनट 30 सेकण्‍ड से प्रारम्‍भ हुआ।

 

श्रीकृष्‍ण के संबंधित विशेष तथ्‍य-

  • श्रीकृष्‍ण का जन्‍म जुलाई 3156 को हुआ।
  • दुर्योधन के पास शान्ति प्रस्‍ताव लेकर कृष्‍ण का जाना- 26 सितम्‍बर 3061 ई0पू0।
  • श्रीकृष्‍ण का हस्तिनापुर पहूंचना- 28 सितम्‍बर 3067 ई0पू0 को।
  • महाभारत युद्ध का प्रारंभ- 22 नवम्‍बर 3067 ई0पू0 ।
  • महाभारत युद्ध कुल 18 दिनों तक चला।
  • अठारवें दिन युद्ध की समाप्ति- 8 दिसम्‍बर 3067 ईपू।
  • भीष्‍म पितामह का निधन- 17 जनवरी 3066 ई0पू0।
  • महाभारत के बाद कृष्‍ण मात्र 36 साल ही और जीवित रहे ।
  • द्वरिका नगरी कृष्‍ण के निर्वाण के 7 दिनों बाद भी भयंकर समुद्री तूफान में लगभग नष्‍ट होकर समुद्री में डुब गया।
  • कलियुग का प्रारम्‍भ- 17 से 18 फरवरी 3102 ई0पू
  • कृष्‍ण की मृत्‍यु- जरा नामक बहेलिया (शिकारी) के द्वारा श्रीकृष्‍ण के पैर पर विष युक्‍त तीर के प्रहार के कारण।
  • श्रीकृष्‍ण के अंतिम वाक्‍य-  न डरोन दुखी होयह तो प्रारब्‍ध है।
  • श्रीकृष्‍ण का अंतिम संस्‍कार उनके शिष्‍य अर्जनु के हाथों हुआ।

 

श्रीकृष्‍ण की बाललीला ।  श्रीकृष्ण की कहानी

श्रीकृष्‍ण बचपन में सुबह उठकर माता यशोदा और बाबा नन्‍द के पैर स्‍पर्श्‍ करते थे। तो आशीर्वाद देते हुए उन लोगों की जिव्‍हा थकती नहीं थी। मां उन्‍हें नहला धुलाकर तैयार करतीफिर वे पास के शिव मन्दिर में जाकर पूजा करके आते तो मां उन्‍हें मक्खनदूध और फल का नाश्‍ता कराती थी। श्रीकृष्‍ण बचपत में बहुत शरारती थें। उनकी मां बहुत मेहनत से उनके लिए दूध से दही और मक्‍खन तैयार करती थीं और वे चोरी से उसे अपने मित्रों को बांट देते थे। इसक कार्य में कई बार दही या मक्‍खन की मटकी फूट जाया करती थीं। मां को उनकी इस शरारत पर हसी तो आती ही थी वे परेशान भी हो जाया करती थीं। एक बार जब मक्‍खन से भरी मटकी फोड़ने के दण्‍डस्‍वरूप मां ने उन्‍हे ओखल में बांध दिया तो कृष्‍ण ने आस पास लग अर्जुन के दो वृक्षों के बीच ओखल फंसाकर रस्‍सी तोडने की चेष्‍टा की किन्‍तु उनकी इस चेष्‍टा से अर्जुन के दोनों वृक्ष जड़ से उखड़कर गिर पड़े। मां यशोदा जानती थीं कि उनका लाल कोई साधारण बालक नहीं है। कृष्‍ण के इस कार्य पर  उन्‍हें हंसी भी आई और उन पर गर्व भी हुआ। मां ने उसे पहले तो उन्‍हें डांटाफिर एक मोरपंख उठाकर उनके बालों में सजाया उनके सिर पर हाथ फेरा और माथा चुमा।तब से मां का आर्शीवाद समझकर उन्‍होंने मोरपंख सदैव अपने मस्‍तक के केशों में लगाकर रखते थे। यह उन्‍हें सज्‍जनता एवं बुराई का दमन की प्रेरणा देते थें।

श्रीकृष्‍ण के बाललीला का वर्णन हर समय किया जाता है। इस बाललीलला में रासलीला एवं कालिय नाग का मर्दन और गोवर्धन पर्वत धारण करने की घटनाए शामिल है। पूतना वधधेनुकासुर,प्रलंब दैत्‍यअघासुर,तृणासुर आदि के नाश श्रीकृष्‍ण ने किया हैं।

आगे चलकर कृष्‍ण बड़े हो गये । गोकूल छूट गया। मां और नन्‍द बाबा भी दूर हो गयेकिन्‍तु वे उनकी बचपन की घटना को भूल नहीं पाये । उनकी मां के जीवन में सदैव बसन्‍त बना रहे इसलिए उन्‍होने अपने लिए किसी और रंग के वस्‍त्रों की अपेक्षा पीले रंग के कपड़ों को इतनी अधिक प्रमुखता दी कि उनका नाम ही पीताम्‍बरधारी हो गया।

श्रीकृष्ण की मृत्यु कैसे हुई ! श्री कृष्ण की मृत्यु कैसे हुई थी

श्रीकृष्‍ण के पुर्व जन्‍म का ऋण ही उनकी मृत्‍यु का कारण ।

जरा नामक बहेलिया रोज पशु पक्षियों का शिकार करता था और उनके मांस को बेचकर अपने परिवार का जीवन यापन करता था। मगर एक दिन उसने अपने परिवार के कहने पर अंतिम बार शिकार में जाने का निर्णय लिया और आखरी शिकार एक हिरन का करने का बनाया। मगर गलती से भूलवस हिरन के शिकार करते हुए उसका तीर भगवान कृष्‍ण के वाटिका में विचरण करते वक्‍त श्रीकृष्‍ण के पैर में लग गया। तीर पूर्वत: विष लगा हुआ था। इस प्रकार श्रीकृष्‍ण को इन दूनिया से हमेशा के लिए जाना पड़ा।

पूर्व जन्‍म में श्री राम के रूप में बालि को छुपकर तीर मारा था। इस जन्‍म में उनने ऋण चुकता किया। बालि का जरा नामक बहेलिये के रूप में पुनर्जन्‍म हो चुका था। श्रीकृष्‍ण ने निश्‍चय किया यही बहेलियां जानवरों को धोखे से मारने की अपनी प्रवृत्ति के अनुरूप ही तीर चलाएगाऔर उसी तीर से घायल होकर वे यह शरीर छोड़ देंगे। अपने निर्वाण का यह तरीका उन्‍हें अपनाया। और बालि के ऋण से मुक्‍त होने का सुजोग पाया।  

भारत के सर्वाधिक प्रिय और प्रतिष्ठित व्‍यकितश्रीकृष्‍ण एक वास्‍तविक और ऐतिहासिक व्‍यकित थेजो आज से 5000 वर्ष पूर्व लगभग 3200 से 3100 ई0 पू0 में इस पृथ्‍वी ग्रह पर लगभग 125 वर्ष तक रहे ।



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