छत्तीसगढ़ी नाचा ! Chhattigarhi Nacha    




छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा (Nacha) को global community Oscar award के अंतर्गत organization of the year” अर्वाड से सम्‍मानित किया
गया हैं। नाचा क्‍या हैं नाचा की पूरी जानकारी एवं छग के नाचा कालाकारों के बारे में
विस्‍तार से इस पोस्‍ट में बताया जा रहा हैं।

chhattigarhi nacha ! छत्तीसगढ़ी नाचा (Nacha)

भारत के सभी क्षेत्र में लोकनाट्य का आयोजन होता
हैं। लोकनाट्य का अर्थ स्‍थानीय स्‍तर पर नाटक से हैं। क्षेत्र के अनुसार इसके अलग
अलग नाम हैं जैसे- जात्रा
, तमासा,नाचा,माच, स्‍वांग, गम्‍मत, ख्‍याल,विदेशिया, हडिगकों,भगत ,नौटंकी, यक्षगान,रासलीला,रामलीला, करियाला, आदि ।लोकनाट्य अपने आप में सम्‍मपन्‍न कला हैं। इसके अंतर्गत
पारंपरिक संगीत
, नाच,अभिनय, और कथा से मिलकर लोकनाट्य का निर्माण होता है।

नाचा (Nacha) क्‍या हैं –

छत्तीसगढ़
में नाटक की कला को ही नाचा 
(Nacha) 
 कहा जाता हैं। छत्तीसगढी बोली में ही यह कला का प्रदर्शन
होता है।  नाचा में सामाजिक कुरीतियों में समाज
में व्‍याप्‍त विषमताओं राजनैतिक चित्रण
, आडम्‍बरों
का सचित्र प्रदर्शन होता है। इसमें जोकर की अहम भूमिका होती हैं। ये कलाकार अपने चेहरे
व हाथों का अधिक प्रयोग करते है। नाचा विवाह
, गणेशोत्‍सव, ज्‍वार मंडई
उत्‍सव व खुशी के किसी भी अवसर पर किया जा सकता है। नाचा में विशेष प्रकार की तैयारी
की जरूरत नहीं होती है। मंच साधारण सा होता है। वेशभुषा भी वही सामान्‍य सी है। चेहरे
की सजावट हरताल जैसेी वस्‍तुओं से ही की जती है। जीवन के किसी भी मार्मिक प्रसंग को
गीतों और संवादों के माध्‍यम से प्रस्‍तुत किया जाता है। इसमें ग्रामीण वाद्यों के
अलावा मोहर
, डफड़ा, डमरू, निसान एवं मंजीरे का प्रयोग किया जाता है।

नाचा
विवाह
, मड़ई, गणेशोत्‍सव,
दुर्गोत्‍सव,
जवांरा तथा खुशी के किसी भी अवसर पर नाचा के प्रति लोगों
में उत्‍साह आश्‍चर्यजनक होता हैं।

नाचा (Nacha) का स्‍वरूप –

नाचा
में मंच गांव की चौपाल में बनाया जाता हैं। नाचा छत्तीसगढ़ का पारम्‍परिक लोक नाट्य
रूप है। जहां गावं के दर्शक सहजतासे इकट्ठा होते हैं। नाचा की तासीर व्‍यंग्‍यात्‍मक
है
, प्रहसन उनका सहज स्‍वभाव है। नाचा में विदूषक की भूमिका सबसे
महत्‍वपूर्ण्‍ होती है। नाचा शुद्ध मनोरंजन के साथ समाज की दुखती नस को भी टटोलती है।
अभ्न्यि और लोक संगीत की दृष्टि से छतीसगढी नाचा ने भारत के लाक नाट्य में सर्वोपरि
स्‍थान बना लिया हैं। नाचा सम्‍पूर्ण छत्तीगसढ़ में आयोजित होती है। आज नाचा की पहचान
विश्‍व स्‍तर पर हो गई हैं। क्‍यों कि नाचा के कलाकार और नाचा छत्तीसगढ़ी ग्रामीण समाज
के मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन है।

नाचा (Nacha)  में किसी भी घटना को तुरन्‍त प्रस्‍तु‍त किया जाता है। सामाजिक, राजनीतिक
आर्थीक सभी स्‍तर पर लोकमानस जिस बात को स्‍वीकार नहीं कर पाता उसका मखौल नाचा दवारा
होता हैं।

नाचा
दुर्ग राजनांदगांव जिलों में अधिक प्रचलित हैं। नाचा का मंच‍ किसी भी स्‍थान पर बनाया
जा सकता हैं। सामान्‍यत- हारमोनियम
, मंजीरा, बेंजो, तबला और ढोलक आदि वाद्यों का उपयोग किया जाता हैं। नाचा में
नर्तक गीत गाते हुए नृत्‍य करता हैं। ये लोक शैली में गाए जाते है।




नाचा (Nacha)  का प्रभाव-

लाक
में हंसी मजाक
, व्‍यंग एवं उलाहना देने की प्रथा मनुष्‍यों में प्रारंभ से
चली आ रही है खासकर जब मनुष्‍य ने संकेत और उससे आगे भाषा के स्‍तर को प्राप्‍त किया
लोक में वाचिक कला परम्‍परा का सूत्रपात हुआ। इसमें नृत्‍य और नाट् मनोंरंजन के सबसे
प्राचीन समग्र और सशक्‍त माध्‍यम रहे हैं। नृत्‍य के दैहिक और आत्मिक उल्‍लास का नाम
और नाट्य मन और मस्तिक की मौन का नाम नाचा है। नाच और नाट्य लोक जीवन की जातीय चेतना
से उपजी सबसे सहज उपलब्‍ध विधाएं हैं। विश्‍व के किसी अंचल का कोई कोना ऐसा नहीं होगा
जहां लाकनाट्य की पारम्‍परिक विधाओं की उपस्थिति न हो।

नाचा (Nacha) के भीष्‍म पितामह- दुलार सिंह मदाराजी को नाचा के भीष्‍म पितामह कहते हैं। दुलार सिंह(1 अर्प्रेल
1910
24 सितम्‍बर 1984)ने अपना जीवन नाचा को समर्पित किया। इनकी
प्रेरणा से नये कालाकार जैसे फागूदास
,
फिदाबाई, जयंती बुलवा,
आगे चलकर प्रसिद्ध कलाकार बनें।

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