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भारत की भौगौलिक विशेषता ! भारत का अपवाह तंत्र 




अपवाह तंत्र परिचय apwah tantra parichay

अपवाह का
अभिप्राय जल धाराओ तथा नदियों द्वारा जल के धरातलीय प्रवाह से है। किसी भी नदी
तंत्र द्वारा अपने सहायक नदियों  के साथ
अपवाहित क्षेत्र को अपवाह द्रोणी/बेसिन के नाम से जाना जाता है। एक अपवाह द्रोणी
को दूसरे अपवाह द्रोणी से अलग करने वाली सीमा को जल विभाजक कहते है। भारतीय अपवाह
तंत्र के कुल अपवाह क्षेत्र
का लगभग
77
प्रतिशत बंगाल की खाड़ी
में जल विसर्जित करती है जबकि अरब सागर में जल
23 प्रतिशत जल का विसर्जन करती है।

भारत में 4 हजार से भी अधिक नदियां है जो दो वर्गो में विभक्त है-

हिमालय अपवाह
तन्त्र
– इसे तीन भागो (सिंधु नदी तंत्र
, गंगा
नदी तंत्र व बह्मपुत्र नदी तंत्र) में विभाजित किया गया है।

प्रायद्वीपीय
अपवाह तन्त्र
– इसे अरब सागर व बंगाल की खाड़ी नामक दो भागो मे विभाजित किया गया
है।


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हिमालय अपवाह
तन्त्र himalaya apwah tantra

हिमालय की उत्पति
से पूर्व तिब्बत के मानसरोवर झील के पास से निकलने वाली सिंधु
,
सतलज एवं ब्रह्मपुत्र नदी टेथिस नामक भूसन्नति में गिरती थी,
तथा प्रायद्वीपीय पठार की नदियां जैसे चम्बल, बेंतवा,
केन,
सोन आदि भी उतर की ओर प्रवाहित होते हुए

टेथिस भूसन्नति
में गिरती थी। टेथिस के मलबे पर भारतीय प्लेट के दबाव से वृहद हिमालय की उत्पति हुई
जिसका उत्थान धीरे धीरे हुआ। परिणामस्वरूप सिंधु
, सतलज
तथा ब्रह्मपुत्र ने मार्ग मे उठने वाले हिमालय वृहद् हिमालय को काटकर अपनी दिशा
पूव.र्वत् बनाये रखा जिसके फलस्वरूप इन्हे पूर्ववर्ती नदी कहा जाता है।

 इन तीन
नदियों ने वृहद् हिमालय को काटकर खड़े कगार वाले खड्डो का निर्माण किया है जिन्हे
गार्ज कहा जाता है। सिंधु गार्ज जम्मु कश्मीर में
, शिपकिला
गार्ज हिमाचल में सतलज नदी द्वारा तथा कोरबा गार्ज अरूणाचल प्रदेश में ब्रह्मपुत्र
नदी द्वारा बनाया जाता है।
 

शिवालिक की उत्पति के समय ही अरावली दिल्ली
कटक उपर उठा जिससे इण्डो-ब्रह्म नदी का मार्ग अवरूद्ध हो गया। दिल्ली अरावली कटक
के पश्चिम में इसकी घाटी सुख गई जिसे परित्यक्त घाटी कहते है
,
आज यह सरस्वती या घग्घर के नाम से जानी जाती है। दिल्ली कटक के उपर

उठने से
इण्डो-ब्रह्म नदी तीन नदी तंत्रो मे बंट गई जो निम्न है-

सिंधु नदी तंत्र sindu nadi tantra

इसका उद्गम
तिब्बत के चेमायुंगडुंग ग्लेशियर
, बोखर चू नामक हिमानी,
कैलाश पर्वत से होता है। भारत में यह दमचौक नामक स्थान से प्रवेश
करती है। चिल्लास नामक स्थान से यह पाकिस्तान में प्रवेश करती है। 

भारत मे इसकी
कुल लम्बाई
1114 किमी है,जबकि इसकी कुल
लम्बाई
2880 किमी. है। नंगा 
पर्वत के उतर में बुंजी नामक स्थान पर यह एक
5181 मी.
गहरे गड्ढे का निर्माण करती है। यह विश्व का सबसे गहरा नदी गर्त है। सिंधु नदी
घाटी समझौता
1960 में हुआ। इसके तहत सिंधु, झेलम व चेनाब का 80 प्रतिशत जल पाकिस्तान को दिया
गया व रावी
, सतलज तथा व्यास का 80
प्रतिशत
जल भारत को 
दिया गया। 

सिंधु
की दायीं ओर
से मिलने वाली नदियों में श्योक
, काबुल,
कुर्रम, तोची,
गोमल व
गिलगित
प्रमुख है। जबकि जास्कर
, सोहन, स्यांग,
शिगार बायीं ओर से मिलने वाली नदियां है। श्योक नदी को मध्य एशिया
में यारकण्डी तथा काराकोरम क्षेत्र में मृत्यु की नदी कहा जाता है।


भारत की तरफ से
बहने वाली सिंधु की सहायक नदी

झेलम नदी jhelum nadi- 

यह
जम्मु कश्मीर में पीरपंजाल पर्वत की पदस्थली में स्थित वेरीनाग झरने के समीप शेषनाग
झील
से निकलकर श्रीनगर के निकट वुलर झील में मिलती है। 

इसका प्राचीन नाम वितस्ता
नदी था। मुजफराबाद से मंगला तक भारत पाक सीमा पर बहती है। पाकिस्तान में झूंग नामक
स्थान पर यह चिनाब में मिल जाती है। इस पर उरी व तुलबुल नामक परियोजनाएं चालित है। 

किशनगंगा इसकी सहायक नदी है जो पाकिस्तान से इसमे मिलती है।

चिनाब cinab nadi– 

यह बडा़
लाचा ला दर्रे के दोनो तरफ बहने वाली चन्द्रा व भागा नामक दो जल धाराओं से नदी के
रूप में बनती है। इसकी कुल लम्बाई
1180 किमी
है। 

हिमाचल के तण्डी नामक स्थान से इसका उद्गम होता है। प्राचीन काल में इसे
अश्किनी के नाम से जाना जाता था। इस नदी पर सलाल
, बगलीहर व दूलहस्ती
नामक परियोजनाएं
भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही है।

रावी नदी ravi nadi- 

यह
हिमाचल मे कांगडा़ जिले में रोहतांग दर्रे के समीप से निकलती है। इसे प्राचीन काल
मे परूष्णी नदी के नाम से जाना जाता है। दसराज युद्ध इसके किनारे लड़ा गया। इस पर
थीन परियोजना व चमेरा परियोजना संचालित है।

 हड़प्पा नामक सभ्यता स्थल इसके किनारे
पर है। यह पंजाब में बहने वाली सबसे छोटी सिंधु की सहायक नदी है।

सतलज नदी satlaj nadi-

 यह
तिब्बत की मानसरोवर झील के पास राक्षसताल से निकलती है तथा शिपकी ला दर्रे से भारत
मे प्रवेश करती है। इसकी कुल लम्बाई
1500 किमी
है तथा भारत में यह
1050 किमी लम्बी है। इसे प्राचीन काल में
शतुद्री नाम से जाना जाता था।

 इस पर भाखडा़ नांगल बां ध, नाथपा
झाकरी परियोजना व इंदिरा गांधी नहर परियोजना बनी है

भाखड़ा नांगल bhakhda nadi- 

भाखड़ा हिमाचल में तथा नागल पंजाब
में है। नागल में जल विद्युत का उत्पादन होता है। भाखडा़ में गोविन्दसागर नामक
कृत्रिम झील
स्थित है
, जो भारत की सबसे बड़ी
कृत्रिम झील है। ज्वाहर लाल नेहरू ने इसके उद्घाटन 
के समय इसे आधुनिक
भारत के मंदिर की संज्ञा दी थी।

व्यास नदी vyash nadi-

यह
व्यास कुण्ड नामक स्थान
, हिमाचल से निकलती है।
प्राचीन काल में इसे विपाशा के नाम से जाना जाता था।

सिंधु नदी तत्रं
में भारत की पांचो नदियों को पंचनद कहा जाता है तथा इनके द्वारा बनाया गया मैदान पंजाब
का मैदान
कहलाता है। इसके विभिन्न भागो को निम्न नामो से जाना जाता है-

  1. बिस्ट – सतलज व
    व्यास के मध्य का क्षेत्र
  2. बारी – व्यास व
    रावी के मध्य का क्षेत्र
  3. रचना – चिनाब व
    रावी के मध्य का क्षेत्र
  4. छाज – झेलम व
    चेनाब के मध्य का क्षेत्र



गंगा नदी तंत्र ganga nadi tantra

इसका उद्गम गंगोत्री
ग्लेशियर
,
उतरकाशी,
उतराखण्ड से होता है। गौ मुख तक यह
जानवी नदी के नाम से जाना जाता है। गौ मुख के बाद यह भागीरथी के नाम से जानी जाती
है। गोविन्द प्रयाग नामक स्थान पर इसमे भिलांगना नदी आकर मिलती
है।

गोंविन्द प्रयाग में टिहरी बांध स्थित है। 1973 में सुन्दरलाल
बहुगुणा के नेतृत्व में चिपको आन्दोलन
हुआ था। जिसमें इस बांध के निर्माण के विरोध
में लोगो ने पेड़ो से चिपक कर विरोध किया था।

सतोपंत ग्लेशियर
से एक धारा विष्णु गंगा व मिलाम ग्लेशियर से एक धारा धौलीगंगा विष्णु प्रयाग नामक स्थान
पर मिलकर अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई। इसमें नंदकी नदी जिस स्थान पर मिलती है
उसे नंद प्रयाग कहा जाता है। अलकनंदा में कर्ण प्रयाग नमक स्थान पर पिण्डार नदी
मिलती है व रूद्र प्रयाग नामक स्थान पर मंदाकिनी नदी इसमें मिलती है। 

अलकनंदा नदी
देवप्रयाग
नामक स्थान पर भागीरथी में आकर मिलती है तथा यहां से यह गंगा के नाम
से जानी जाती है।
बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे स्थित
है
,
जबकि केदारनाथ मंदाकिनी नदी के किनारे स्थित है। बद्रीनाथ को
अलकनंदा नदी का उद्गम माना जाता है। गंगा का उद्गम देवप्रयाग को भी माना जाता है
,

क्योकि इस स्थान
के बाद ही गंगा को इस नाम से जाना जाता है।

इसके प्रवाह
क्षेत्र में ऋषिकेश
, हरिद्वार (उतराखण्ड),
बिजनौर, कनौज, प्रयागराज,
वाराणसी (उतर प्रदेश), बक्सर, पटना व भागलपुर (बिहार),
झारखण्ड व पबंगाल आता है।
भागलपुर में स्थित विक्रमशिला अभ्यारण्य है जो गांगेय डाल्फिन के लिए प्रसिद्ध है
जो भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव (5 अक्टुबर 2009) है जो जन्मांध होता है तथा सदैव
स्वच्छ जल में रहता है।

गंगा की सहायक
नदियां ganga ki sahayak nadiya

बांई ओर से गंगा
में मिलने वाली नदियां

रामगंगा नदी – यह
नैनीताल
,
हिमाचल से निकलतीहै। कनौज, उतर प्रदेश में मिल
जाती है।

गोमती नदी – यह
बनारस में आकर गंगा में मिल जाती है। इसके किनारे लखनउ स्थित है।

घाघरा नदी – यह
बिहार के बक्सर नामक स्थान पर गंगा में मिलती है। इसे नेपाल में करनाली कहा जाता
है। यह शारदा व सरयू उपनाम से जानी जाती है।

गण्डक नदी – यह
बिहार के पटना नामक स्थान पर गंगा में मिलती है। इसके किनारे सोनपुर पशुमेला आयोजित
होता है

कोसी नदी kosi nadi-

यह
कटिहार नामक स्थान पर गंगा में मिलती है। यह घोसाई नाथ की पहाड़ी
,
तिब्बत से निकलती है तथा यहां इसे अरूण नदी के नाम से जाना जाता है।
नेपाल में यह सात धाराओं में चलती है। यह नदी बिहार का शोक कहलाती है।

महानंदा नदी mahananda nadi- 

यह
बाई ओर से गंगा में मिलने वाली अंतिम नदी है। यह सिक्किम से निकलती है। इसके बाद
गंगा हुगली व भागीरथी नामक दो धाराओं में विभाजित हो जाती है। इस स्थान पर फरक्का परियोजना
संचालित होती है। 

हुगली के किनारे कोलकता स्थित है।
भागीरथी आगे बांग्लादेश में चली
जाती है जहां यह पदमा के
नाम से जानी जाती है।गोलुण्डो के निकट जमुना नदी (ब्रह्मपुत्र) पद्मा में मिलती
है। इसके बाद बांग्लादेश में ही चांदपुर के निकट पद्मा
,
जमुना व बराक नदियां मिलकर मेघना नामक धारा का निर्माण करती है,
जो बंगाल की खाड़ी में गिरती है। पदमा व हुगली के बीच का क्षेत्र
सुन्दरवन डेल्टा
स्थित है। यहां मेंग्रोव/अनूप वनस्पति पाई जाती है जिसका मुख्य
वृक्ष सुन्दरी है। इसी वृक्ष के नाम पर इसे सुन्दरवन डेल्टा कहा जाता है। पृथ्वी
का गुर्दा//किडनी मेंग्रोव वनस्पति
को कहा जाता है।

दांई ओर से गंगा
में मिलने वाली नदियां

यमुना नदी yamuna nadi-

 यह
गंगा की सबसे लम्बी सहायक नदी है
। यह बंदरपुंछ
, उतरकाशी
के यमुनोत्री
नामक स्थान से निकलती है तथा प्रयागराज में आकर गंगा में मिलती है।
चम्बल
, सिंध, बैतवा व केन यमुना की सहायक
नदियां है। कुरूक्षेत्र
, दिल्ली, मथुरा,
आगरा व इटावा इसके किनारे बसे प्रमुख शहर है।

सोन नदी son nadi- 

माता
टीला परियोजेजना इसके किनारे पर स्थित है। यह तीन राज्यों (यू.पी.
,
बिहार व मध्य प्रदेश) की संयुक्त परियोजना है।

दामोदर नदी damodar nadi- 

यह
बंगाल का शोक
कहलाती है। इसे भारत की कोयला नदी कहा जाता है। यह हुगली नदी में मिल
जाती है। स्वतंत्र भारत की पहली नदी घाटी परियोजना दामोदर नदी घाटी परियोजना (1948)
है। जो अमेरिका के टेनेसी नदी माडल पर आधारित है। इससे एडन नहर निकाली गई है।

हुगली नदी hugli nadi –

 इसके
किनारे पर कोलकता शहर तथा हल्दिया बंदरगाह (पूर्व का लन्दन) स्थित है। यह नदी लौह
अयस्क क्षेत्रो को जल आपूर्ति करती है। यह गंगा की वितरिका है। जो फरक्का परियोजना
(पबंगाल) से गंगा से अलग होती है। इसे विश्व की
सबसे अधिक
विश्वासघाती नदी कहा जाता है।

मयरूक्षी नदी mayurakshi nadi-

यह पश्चिम बंगाल में बहने वाली हुगली की दुसरी सहायक नदी है। इस पर कनाडा बांध
बनाया गया है।

ब्रह्मपुत्र नदी
तंंत्र brahmaputra nadi tantra

इसका बेसिन चार
देशो (चीन
, भारत, भूटान व
बांग्लादेश)
में विस्तृत है। अपवाह क्षेत्र में यह भारत की सबसे बड़ी नदी है। गंगा
के साथ संयुक्त रूप से यह मेघना
कहलाती हैं। इसका उद्गम मानसरोवर झील के निकट जिमा
यॉन्‍गजॉन ग्‍लेशियर / चेमायुंगडुंग ग्‍लेशियर
 से होता है।

 इसे यार लांग साग्‍पो भी कहा जाता
है। तिब्बत में यह सांग्‍पो / यरलूंग जंगबो के नाम से प्रसिद्ध है। नामचा बरवा
पर्वत
के पास से अरूणाचल प्रदेश में यह भारत में प्रवेश करती है।

अरूणाचल में इसे
देहांग
कहा जाता है। असम में यह नदी माजुली नदी द्वीप बनाती है
,
जो दूनियां का सबसे बड़ा नदी द्वीप है। माजुली जिला भारत का पहला नदी
जिला है। अरूणाचल में इसमें देबांग व लोहित नदी मिलती है
, इसके
बाद ही यह ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।

 असम मे यह ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी
जाती है। सादिया व धुबरी/थुबरी के मध्य यह नदी ब्रह्मपुत्र के मैदान का निर्माण
करती है। सादिया से धुबरी/थुबरी के मध्य राष्ट्रीय जलमार्ग – 2 स्थित है। धुबरी
शहर के बाद गारो पहाड़ी से मुड़कर यह नदी बांग्लादेश में प्रवेश करती है
, जहां इसमे तीस्ता नदी आकर मिलती है। 

सुबनसिरी (ब्रह्मपुत्र की सबसे बड़ी
सहायक नदी)
, जिया भरेली, धनसिरी
(काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान से गुजरती है)
, पुथीमारी,
संकोश (भूटान मे इस पर भारत 
की सहायता से
सबसे बड़ी जल विद्युत परियोजना संचालित) पगलादिया
, कपिली
और मानस
(भूटान की सबसे बड़ी नदी प्रणाली
, असम में मानस
अभ्यारण्य) इसकी अन्य सहायक नदिया है।

तीस्ता नदी tista nadi:-

 इसका उद्गम सिक्किम की चोलामू  झील से होता
है
,
जो भारत की सबसे उंचाई पर स्थित झील है। इसकी सहायक नदी रंगीत है।

बराक नदी barak nadi:-

 इसका
उद्गम मणिपुर की पहाडी़ यों से होता है तथा यह बांग्लादेश में भैरव बाजार के निकट पद्मा
व जमुना
मे मिल जाती है।

प्रायद्वीपीय नदी
तंत्र praydwipiy nadi tantra

प्रायद्वीप की
नदियां हिमालय की तुलना में अधिक पुरानी है तथा अपनी प्रौढावस्था को प्राप्त कर
चुकी है अर्थात आधार तल को प्राप्त कर चुकी है जिससे उनकी ढाल प्रवणता अत्यंत मंद
है। इनके मार्ग लगभग निश्चित है। यहां की मुख्य नदियां दो भागो में 
विभक्त है-

  1.  बंगाल की खाड़ी
    में गिरने वाली नदियां
  2.  अरब सागर मे
    गिरने वाली नदियां

बंगाल की खाडी
नदी तंंत्र bengal ki khadi nadi tantra

इसमे उतर से
दक्षिण में बहने वाली नदियों का क्रम– स्वर्णरेखा – वतैरणी – ब्राह्मणी – महानदी –
गोदावरी – कृष्णा – पेन्नार – पलार – कावेरी – वैंगाई – ताम्रपर्णी
प्रमुख
नदियां –

स्वर्णरेखा नदी sarnarekha nadi- 

इसका उद्गम छोटा नागपुर के पठार से होता है। इसके किनारे पर जमशेदपुर शहरबसा हुआ
है। इसे भारत का पिट्सबर्ग
, इस्पात नगरी/स्टील सिटी
कहा जाता है। स्वर्णरेखा व दामोदर को संयुक्त रूप से जैविक मरूस्थल नदी के 
नाम से जाना जाता
है। रांची के निकट यह नदी हुण्डरू जलप्रपात का निर्माण करती है।

वैतरणी नदी vetarani nadi- 

यह
उडीसा के क्योंझर पठार से निकलती है।

ब्राह्मणी bramhadi nadi- 

कोयल व शंख नामक दो जलधाराओ के मिलने से बनती है। ब्राह्मणी व महानदी को उडी सा का
शोक कहा जाता है। इसका उदगम छोटा नागपुर के पठार से होता है।

महानदी mahanadi- 

इसका
उद्गम अमरकंटक(दण्डकारण्य) के दक्षिण में स्थित सिंहावा पहाड़ी
,
छतीसगढ से होता है।

उड़ीसा में इस नदी
पर स्थित हीराकुण्ड बांध भारत
का सबसे लम्बा बांध है।
इसकी लम्बाई 4.8 किमी/4800 मीटर है। यह नदी बंगाल की खाड़ी में गिरने से पहले उडी़
सा में उत्कल का मैदान
बनाती है। 

उत्कल का मैदान उतरी सरकार तट का सबसे बड़ा तट है। कटक
के पास यह अपना डेल्टा बनाती है। कटक में भारतीय चावल अनुसंधान केन्द्र स्थित है।

टिकरापार व नराज
इस नदी पर संचालित अन्य प्रमुख बहुउद्देशीय परियोजनाएं है। जोंक
,
तेल, शिवनाथ, हंसदो,
मंड आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां है।

गोदावरी godavari – 

इसका
उद्गम नासिक जिले में त्रयंबक की पहाड़ी
, महाराष्ट्र
से होता है। इसकी कुल लम्बाई 1465 किमी है। यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी
है। इसे दक्षिण की गंगा/बुढी गंगा/वृद्ध गंगा उपनाम से जाना जाता है। यह तेलंगाना
के पठार को दो भागो में बांट देती है। 

आन्ध्र प्रदेश में रामगुण्डम परियोजना व
पोचमपाद परियोजना इस नदी पर स्थित 
है। राजमुंद्री,
आन्ध्रप्रदेश में यह अपाना डेल्टा बनाती है
, जहां
भारत का तम्बाकु अनुसंधान केन्द्र है।

मंजरा,
दुधना, पूर्णा, प्राणहिता,
पेनगंगा,
इंद्रावती आदि इसकी सहायक नदियां है।
मंजरा/मंजिरा इसकी दाईं ओर से मिलने वाली एकमात्र नदी है। पेनगंगा इसकी सबसे लम्बी
सहायक नदी है।




कृष्णा krisna-

 इसका उद्गम महाबलेश्वर पहाड़ी,
महाराष्ट्र से होता है। इसकी कुल 1400 लम्बाई किमी है, जो दक्षिण भारत की दूसरी सबसे लम्बी नदी है। इस नदी पर अलमाटी परियोजना
(कर्नाटक)
, नागार्जुन सागर परियोजना श्री सेलम परियोजना
(आन्ध्र प्रदेश) मे
स्थित है। विजयवाड़ा,
आन्ध्रप्रदेश में यह अपना डेल्टा बनाती है।

भीमा,
कोयना, मुसी, घाटप्रभा,
पंचगंगा,दुधगंगा,
मालप्रभा
व तुंगभद्रा इसकी सहायक नदियां है
मुसी के किनारे तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद स्थित
है। कोयना नदी पर ओरंगाबाद स्थित है जंहा पर अंजता व ऐलोरा की गुफाएं है।
तुंगभद्रा इसकी
सबसे लम्बी सहायक
नदी है।

कावेरी kaweri- 

इसका
उद्गम ब्रह्मगिरी की पहाडी़
, कुर्ग जिला, कर्नाटक से होता है। इसकी कुल लम्बाई 825 किमी है।
इसे दक्षिणी गंगा व दक्षिण भारत की गंगा कहा जाता है। यह भारत की एकमात्र ऐसी नदी
है जो दोनो मानसुनो से वर्षा जल प्राप्त करती है।

तमिलनाडू इस नदी
पर शिवसमुद्रम परियोजनामैटरू परियोजना संचालित की जा रही है। इन परियोजनाओ
के कारण केरल व तमिलनाडू के मध्य जल के बंटवारे के लिए विवाद बना हुआ है। शिवसमुद्रम
जलप्रपात भी तमिलनाडु में है। 

भारत की प्राचीनतम नदी घाटी परियोजना शिवसमुद्रम है,
जो 1902 में बनाई गई। कावेरी कोलार व
गोलकुण्डा नामक हीरो की खानो के कारण हीरा नदी कहलाती है।

पेन्नार pennar- 

इन
दोनो नदियों का उद्गम नंदीगढ
/नंदीदूर्ग की
पहाड़ीयां
, कोलार जिला,
कर्नाटक से होता
है। इसका अपवाह क्षेत्र कृष्णा व कावेरी के मध्य स्थित है। जयमंगली
, कुन्देरू, सागीलेरू, चित्रावती
आदि इसकी सहायक नदियां
है।

पलार palar- 

उद्गम
कर्नाटक राज्य के कोलार जिले से होता है। यह आन्ध्र प्रदेश के चितूर तथा तमिलनाडु
के अर्काट जिले से प्रवाहित होती हुई 
बंगाल की खाड़ी
में गिर जाती है।

वैंगाई vengai- 

इसका
उद्गम वरशानंद की पहाड़ी
, पुरूषपुर, तमिलनाडू से होता है। यह अपना जल पाक स्ट्रेट में गिराती है। इसके किनारे
मदूरै शहर है
, जिसे मंदिरो व त्यौहारो की नगरी कहा जाता है।
यहां मीनाक्षी मंदिर स्थित है। यह रामेश्वरम में अपना डेल्टा बनाती है।

ताम्रपर्णी tamrparni-

इसका उदगम अगस्त्यमलाई पहाड़ी, तमिलनाडु से होता है
तथा इस पर तमिलनाडु में पापनाशम परियोजना संचालित की जा रही है। यह अपना जल मन्नार
की खाड़ी
में गिराती है। सेतुसमुन्द्रम परियोजना पाक जलसंधि को जोड़ती है।

अरब सागरीय नदी तंंत्र arab sagariya nadi tantra

इसमे उतर से
दक्षिण में बहने वाली नदियों का क्रम –

भादर – शतरंजी –
नर्मदा – ताप्ती – काली -माण्डवी – जुआरी – शरावती – पेरियार – भरतपुंझा

प्रमुख नदियां –

भादर bhadar- 

यह
प्रायद्वीपीय भारत की अरब सागर में गिरने वाली पहली नदी है। इसका उद्गम जसदान गुजरात
से होता है।

शतरंजी satrangi-

 यह गिर
की पहाडी़
, धार जिला गुजरात से निकलती है।

नर्मदा narmada- 

इसका
उदगम अमरकंटक की पहाड़ी के नर्मदा कुण्ड से होता है। इसे मध्य प्रदेश की जीवन रेखा
कहा जाता है। इसके बाद यह सतपुड़ा व विंध्यांचल पर्वत के बीच यह भ्रंश घाटी के मध्य
चलती है।

 इसके बाद यह पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है। मध्यप्रदेश में
जबलपुर के समीप यह कपिलधारा व कन्दरा/धुआंधर नामक जलप्रपात का निर्माण करती है।

 गुजरात में इस पर स्थित सरदार सरोवर परियोजना के तहत इसमें से एक नहर (नर्मदा नहर)
निकाली गई है। इस नहर से सिंचाई हेतु इजराइली/टपकन/ बुंद/फव्वारा पद्धति का प्रावधान
है। इसके किनारे पर ही स्टेच्यु आफ यूनीटी निर्मित है। 

यह अरब सागर में गिरने वाली
प्रायद्वीपीय भारत की सबसे लम्बी नदी है।
ओरिसन,
दुधी, शक्कर, हिरन,
बरना आदि इसकी सहायक नदियां है।
ताप्ती – इसका
उदगम मध्यप्रदेश में बैतुल जिले
के मुल्ताई से होता है। 

यह सतपुड़ा व अजंता की पहाड़ीयो के मध्य
भ्रंश घाटी में बहती है। महाराष्ट्र का एक प्रमुख शहर सुरत इसके किनारे स्थित है।
इस नदी पर काकरापार व उकाई परियोजना संचालित की जा रही है। पूर्णा इसकी प्रमुख
सहायक नदी है।

काली kali- 

यह कर्नाटक
में डिग्गी नामक स्थान से निकलती है।

 

माण्डवी mandavi- 

इसका
उद्गम कर्नाटक से होता है। इसे गोआ की जीवन रेखा कहा जाता है। पणजी शहर माण्डवी के
किनारे स्थित है। इस पर दुधसागर व वज्रपोहा जलप्रपात स्थित है।

जुआरी नदी juari nadi- 

इसका
उद्गम हेमद बार्शम से होता है। यह गोआ की सबसे लम्बी नदी है। इस नदी के मुहाने
मार्मागांव बंदरगाह स्थित है।

शरावती saravati nadi-

 इसका
उदगम शिमोगा
, कर्नाटक से होता है। कर्नाटक में इस
नदी पर भारत का सबसे बड़ा जलप्रपात जोग गरसप्पा/महात्मा गांधी जलप्रपात स्थित है।

नोट – भारत का
सबसे उंचा झरना कुंचीकल (वराह नदी) पर स्थित है। जो 455 मी. उंचा है।
 

पेरियार periyar- 

इसका उदगम अन्नामलाई की पहाड़ियों से होता है। यह केरल की जीवन रेखा कहलाती है।

इस पर इडुक्की
परियोजना
संचालित है। यह केरल की सबसे लम्बी नदी है।

भरतपुझां baratpuncha- 

इसका
उदगम अन्नामलाई की पहाड़ियों से होता है। यह केरल की दूसरी सबसे लम्बी नदी है।




अन्य नदियां –

लूणी luni – 

यह अरावली
की नाग पहाडी़
से निकलती है। बालोतरा नामक स्थान पर यह खारी हो जाती है। यह
राजस्थान के बाद गुजरात में कच्छ के रण में विलीन हो जाती है। सरस्वती
,
जवाई, सूखड़ी, लीलड़ी,
मीठड़ी आदि इसकी प्रमुख सहायक नदियां है।

सरस्वती नदी का
उद्गम पुष्कर झील से होता है।

साबरमती sabarmati-

 यह
राजस्थान में अरावली की जयसमंद/ढेबर झील (उदयपुर) से निकलती है।

इसके किनारे पर
अहमदाबाद
,
गांधीनगर व गांधी आश्रम स्थित है। यह अपना जल खम्भात की खाड़ी में अपना
जल गिराती
है।

नोट:- खम्भात की
खाडी़ में गिरने वाली नदियां (समानता) साबरमती
, माही,
नर्मदा व ताप्ती है।

माही mahi- 

इसका
उद्गम मध्य प्रदेश के धार जिला के मिण्डा ग्राम की मेहद झील से होता है। यह कर्क
रेखा
को दो बार काटती है। सोम व जाखम इसकी प्रमुख सहायक नदियां है।

नोट:- भूमध्य
रेखा को कांगो नदी तथा मकर रेखा को लिम्पोपो नदी दो बार काटती है।

 

FAQ-

BENGAL KI GHATI NADI TANTRA

स्वर्णरेखा – वतैरणी – ब्राह्मणी – महानदी – गोदावरी – कृष्णा – पेन्नार – पलार – कावेरी – वैंगाई – ताम्रपर्णी 
ARAB SAGAR GHATI NADI TANTRA
भादर – शतरंजी – नर्मदा – ताप्ती – काली -माण्डवी – जुआरी – शरावती – पेरियार – भरतपुंझा


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