सामंती राज Feudatory States in chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में सामंती राज की पृष्ठभूमि
छत्तीसगढ़ की स्थिति भारत के केन्द्र में होने के कारण विभिन्न राजतंत्र व्यवस्था से प्रेरित रहा है। छत्तीसगढ़ में प्राचीन समय से लेकर 1850 के आस पास तक 19वीं सदी के मध्य तक समान्तवाद की नीतियों निश्चित रूप प्रभावित थी।
छत्तीसगढ़ में मुगलों के आक्रामण एवं प्रशासनिक
नितियो का कोई खास असर नहीं था। यहां की स्थानीय राजवंश द्वारा इस क्षेत्र में
सामंतीराज जैसी व्यवस्था देखने को मिलती है। सामंती राज को दो प्रकार से विभाजित
किया जा सकता है–जागीरदार/ सामंत एवं जमींदार में। छत्तीसगढ़ में सामान्य जमींदारों का काफी
प्रभाव रहा हैं। क्योंकि यहां का शासन वृहत स्तर पर न होकर एक छोटे से क्षेत्र
विशेष या परगने में व्याप्त था।
सामंती
व्यवस्था क्या है:-
भारत वर्ष में 800ई. से 1200ई. के बीच गुप्तोत्तर
काल में सामंती राज व्यवस्था का विकास हुआ। सामंती राज की नींव हर्ष के शासनकाल
से शुरू हुई। सामंत प्रथा में लोगों का समूह भूमि से जीविकोपार्जन करता था। यह
प्रथा भूमिदान की प्रथा आरंभ होने के साथ शुरू हुआ। ब्राम्हणों को कर रहित भूमि
दान में दि जाती थी। राजा द्वारा बाद में उन्हें अन्य भूमियों से कर वसुलने का
अधिकार दिया गया। धीरे–धीरे उन्हें
संबंधित क्षेत्र में शासन व्यवस्था का अधिकार दिया। सामंत व्यवस्था के पहले प्रकार में राज्य के
सरकारी अधिकारी एवं दूसरे प्रकार में स्थानीय सरदार, गुलाम राजा एवं उनके समर्थक होते
थे। सामंतो के पास कर वसूली के साथ स्थायी सेना भी होती थी जो राज्य के राजा को
जरूरत के समय मदद करते थे।
छत्तीसगढ़
में सामंतीय राज
जब तत्कालिन समय में भारत में सामंतवादी राज स्थापित
था उस समय छत्तीसगढ़ में सामंतवादी का अवशेष के जमींदारी प्रथा का उद्भव हुआ। सन्
1818 ई. में छत्तीसगढ़
में जमींदारों की संख्या थी उस समय यह क्षेत्र अंग्रजो के आधिपथ्य में था। इन
जमींदारों की संख्या राजनैतिक, एवं प्रशासनिक कारणों से कम
ज्यादा होती रहती थी। सन् 1826 में सम्बलपुर और सरगुजा की जमींदारियां छत्तीसगढ़
से अलग कर दी गई।
सामंतीय
राज पर अंग्रजों का हस्तक्षेप
प्राचीन समय से जमींदारियों के कर का अपना नियम
था लेकिन 1818 के बाद अग्रंजो ने हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया इससे आगे चलकर दोनों
के मध्य कई संधियां एवं समझौते होते रहे। ब्रिटिशकाल में अंग्रेज छत्तीसगढ़ के जमीदारों
के साथ संबंध बनाने मे इन बातों पर ध्यान दिया जाने लगा।
1:- जमींदारो को नियंत्रित एंव वफादार बनाये रखा जाये
2:-केन्द्रीय शक्ति और जमींदारों के मध्य उचित
सामंजस्य बनाये
3:-राजस्व एवं भूमि नितियां पर जमींदारों की ज्यादती
पर रोक बनाए रखना
जेनकिन्स की रिर्पोट
जेनकिन्स की रिर्पोट से पता चलता है कि
जमींदारों के न्याय संबंधी अधिकारों में भी बस्तर के राजा को छोड़कर बाकीयों में
कटौती की गई। उन्हें बड़ी सजायें देने से रोका गया और यह भी निर्देश दिया गया कि
यदि कोई व्यक्ति उनके निर्णय से असंतुष्ठ तो वह अपील कर सकता है। इस प्रकार
जमींदार यात्री कर एवं सायर वसूल करने से वंचित हो गये।
1827 में जमींदारों के अधिकारों का नवीनीकरण किया
गया इसमें उन्हें केवल 6 माह तक की सजा देने का अधिकार दिया गया। आगे अंग्रेजो के
प्रशासनिक सिंद्धांत के कारण जमींदारों के अधिकार एवं कर लाभांश में काफी कमी कर दिया
गया।
भोंसला
शासन में सामंतीय राज
1830 के बाद नागपुर राज्य में अंग्रेजों का नियंत्रण
समाप्त होने वाला था क्योकि रघुजी तृतीय भोंसला शासक वयस्क होने के पश्चात वह शासन
की बागडोर संभालने वाले थे। अब राजा रघुजी तृतीय के राजा बनते ही छत्तीसगढ़ भोंसला
शासन के अंतर्गत आ गया। राजा ने जमींदारों को अधिक से अधिक कर वसुलने का जोर डाला।
जमींदारों ने असंतुष्ठ होकर अंग्रेज रेजीडेण्टरों से राजा की निति की शिकायत की।
कवर्धा , राजनांदगांव,
आदि जमींदारियों में जमकर आक्रोश उभरा। अंग्रेजो के हस्तक्षेत से रघुजी
तृतीय के विरूद्ध फैसला हुआ।
सामंतीय
राज पर अंग्रेजो का पूर्ण नियंत्रण
1854 में लार्ड डलहौजी की हड़प निति का शिकार नागपुर
राज्य भी हुआ और यह क्षेत्र पुन: ब्रिटिश अधिराज्य में मिला दिय गया।अंग्रजों ने
जमीदारियों में प्रचलित अनेक करों को जैसे, सायर, कलाली आदि जो पहले से चले
आ रहे थे , जमीदारों के हाथों से लेकर उन पर अपना अधिकार कायम
किया। इसके अतिरिक्त आयात कर, निर्यात कर, यात्री कर, जैसे करों को खत्म कर जनता को कर भार से
राहत देने की कोशिश की।
छत्तीसगढ़ में सामंती राज के अंतर्गत जमींदारी का
सिंद्धांत अनेक वर्षों से चला आ रहा था। इन्हें जमींदार या छोटे सरकार के नाम से संबोधित
किया जाता था।
1865 में छत्तीसगढ़ के 14 जमींदारों को रियासत प्रमुख
के रूप में मान्यता दी गई और शेष साधारण जमींदार कहलाये। छत्तीसगढ़ की इन 14 रियासतों
में कालाहाण्डी, पटना,
रायसोल, बांबरा, तथा सोनपुर
आदि पांच उडि़या भाषी थीं एवं शेष रियासतें- बस्तर ,कांकेर, राजनांदगांव, खैरागढ़,
छुईखदान, कवर्धा, शक्ति ,
रायगढ़, सारंगढ़ , आदि
9 हिन्दी भाषी थीं। 1905 में उडि़या भाषी रियासतें संबलपुर जिलें के साथ बंगाल प्रान्त
में सम्मिलित कर दी गई और बंगाल के छोटा नागपुर से सरगुजा, उदयपुर, जशपुर, कोरिया और चांगभखार
को मध्यप्रान्त के छत्तीसगढ़ संभाग में मिला दिया गया।
इस प्रकार परिवर्तन के बाद कुल 14 रियासतें बनी रहीं।
जिन पुरानी जमींदारियों को रियासत का दर्जा नहीं मिला
वे साधारण जमींदार रह गए तथा उन्हें केवल जंगल एवं लगान का अधिकार प्राप्त था।
छत्तीसगढ़ की जमींदारियां
जिला
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जमींदारियां
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रायपुर
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कटंगी, भटगांव, बिलाईगांव,
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बिलासपुर
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पेंड्रा, मातिन, लाफा,
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रायगढ़
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तारापुर, रायकेरा, मुंगड़या, झगरपुर, लैलूंगा,
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सरगुजा
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खड़गवा, पटना, किलहारी,
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दुर्ग
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बैरिया, भोंदा, रेंगाखार,
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बस्तर
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अंतागढ़, सुकमा, कटक,
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- भारत की भौगौलिक संरचना ।। चट्टानें ।। दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार ।। उत्तर की पर्वत मालाएं ।। उत्तर का विशाल मैदान ।।