कलचुरी एवं उनका प्रशासन व्यवस्था
कलचुरी वंश का प्रशासन
राजतंत्रीय शासन पद्धति प्रचलित थी, कलचुरि राजा धर्मपालक,
प्रजावत्सल
एवं लोकहितकारी शासक होते थे ।शासन प्रबन्ध हेतु राजा मंत्रियों व अन्य
अधिकारियों की नियुक्ति करता था, कलचुरि अभिलेखों से ज्ञात होता है कि राज्य अनेक
प्रशासनिक इकाइयों – राष्ट्र संभाग, विषय जिला,
देश
या जनपद वर्तमान तहसीलों की तरह व मंडल वर्तमान खण्ड की तरह में विभक्त
था।
विषय का उल्लेख रत्नदेव द्वितीय के शिवरीनारायण ताम्रपत्र में केवल 1 बार
देश का पृथ्वीदेव द्वितीय के शिलालेख में 7 देशों जनपदों मध्यप्रदेश ,
बडहर
भटटविल भ्रमरवद्र काकरय तमनाल व विटटरादेश का तथा मंडलों का उल्लेख जैसे अपर मंडल,
एवंडि,
कोमो,
जैपुर,
तलहारि
मध्य व सामंत मंडल आदि विभिन्न कलचुरि अभिलेखों मे मिला है किन्तु इन सभी
प्रशासनिक इकाइयों के सम्बन्ध में निश्चित तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि ये
सीधे कलचुरियों के प्रशासनिक नियन्त्रण में थे या अधिसत्ता मात्र स्वीकार करते
थे । मडल का अधिकारी मांडलिक तथा उससे बडा महामंडलेश्वर एक लाख ग्रामों का स्वामी
कहलाता था। इसके आलावा इनके करद समातों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही थी।
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कलचुरी एवं उनका प्रशासन व्यवस्था Kalchuris and their Administration |
कलचुरि कालीन शासन व्यवस्था का विश्लेषण करने से पता
चलता है कि सम्पूर्ण राज्य प्रशासनिक सुविधा के लिए गढ़ों में वैसे 84 ग्रामों
का एक गढ़ होता था किन्तु संख्या अधिक होती थी तथा गढ़ तालुकों या बरहों बारह
ग्रामों का समुह मे विभाजित होता था शासन की न्यूनतम इकाई ग्राम थी। गढ़ाधिपति को
दीवान तालुकाधिपति को दाऊ तथा ग्राम प्रमुख को गौटिया कहा जाता था प्रत्येक
अधिकारी अपने अधिकार क्षेत्र में स्वतन्त्रतापूर्वक कार्य करते थे।
राजा के अधिकारी गण–
राज्य के
कार्यों के संचालन हेतु राजा को योग्य एंव विश्क्त सलाहकारों एवं अधिकारियों की
आवश्यकता होती थी, नियुक्तियां योक्यतानुसार होती थी किन्तु छोटे पदों
जैसे लेखक ताम्रपट लिखने वाले आदि की नियुक्तियां वंश परम्परानुसार होती थीं।
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मंत्री मण्डल
इसमें युवराज महामंत्री ,महामात्या,
महासंधिविग्रहक
(विदेश मंत्री) महापुरोहित (राजगुरू) जमाबंदी का मंत्री (राजस्व
मंत्री)महाप्रतिहार, महासामंत और महाप्रमातृ आदि प्रमुख थे।
कलचुरी एवं उनके प्रशासन अधिकारी
इसमें अमात्य एंव विभिन्न विभगों के अध्यक्ष
प्रमुख होते थे महाध्यक्ष नामक अधिकारी सचिवालय का मुख्य अधिकारी होता था,
महासेनापति
अथवा सेनाध्यक्ष सैन्य प्रशासन का व दण्डपाषिक अथवा दण्डनायक आरक्षी पुलिस
विभाग का प्रमुख , महाभांडागारिक, महाकोटटपाल (दुर्ग या किले
कीरक्षा करने वाला) आदि अन्य विभागाध्यक्ष होते थे। अमात्य शक्तिशाली होते थे।
कलचुरी एवं उनके राज्य कर्मचारी
प्राय: सभी ताम्रपत्रों में चाट,
भाट,
पिशुन,
वेत्रिक
आदि राजाकमचारियों का उल्लेख मिलता है जो राज्य के ग्रामों में दौरा कर सम्बन्धित
दायित्वों का निर्वहन करते थे।
कलचुरी एवं उनके राजस्व प्रबन्ध
विभाग का मुख्य अधिकारी महाप्रमातृ
होता था जो भूमि की माप करवाकर लगान निर्धारित कराता था।
कलचुरी न्याय व्यवस्था
प्राचीन कलचुरिकालीन न्याय व्यवस्था
से सम्बन्धित अधिक जानकारी शिलालेखों से प्राप्त नहीं होती दांडिक नामक एक
अधिकारी सम्भवत: न्याय अधिकारी होता था।
कलचुरी युद्ध एवं प्रतिरक्षा प्रबन्ध
हाथी,
घोडे़
रथ पैदल चतुरंगी सेना का संगठन अलग अलग अधिकारी के हाथ में रहता था। महावतों का
बहुत महत्व था। सर्वोच्च सेनापति राजा होता था जबकि सेना का सर्वोच्च अधिकारी
सेनापति या साधनिक या महासेनापति कहलाता था। हस्तिसेना प्रमुख महापीलुपति तथा अश्वसेना
प्रमुख महाश्वसाधानिक कहलाता था। बाह्य शत्रुओं से रक्षा हेतु राज्य में पुर
अर्थात नगर दुर्ग का निर्माण किया गया था। जैसे तुम्माण , रतनपुर,
जाजल्लपुर,
मल्लालपत्तन
आदि, । 15वीं सदी में तो रतनपुर नरेश बाहरसाय ने सुरक्षा की
दृष्टि से कोसगई गढ़ (छुरी) में अपना कोषागार बनवाया था।
कलचुरी पुलिस व्यवस्था
कानून एवं शान्ति व्यवस्था सथापना
हेतु पुलिस अधिकारी – दण्ड पाशिक, चोरों को पकड़नें वाला अधिकारी दुष्ट साधक ,
सम्पत्ति
रक्षा के निमित्त पुलिस और नगरों में सैनिक नियुक्त होते थे। दान दिये गये गावां
में इनका प्रवेश वर्जित था। राजद्रोह आदि के मामले में ये बेधड़क कहीं भी आ जा सकते
थे।
कलचुरी अन्य राष्ट्र प्रबन्ध
विदेश विभाग का नाम संधि
विग्रहाधिकरण था। संधि सुकत विग्रह इस विभाग के प्रमुख कार्य थे इसक मुख्य
अधिकारी को महासंधिविग्रहक कहा जाता था।
कलचुरी स्थानीय प्रशासन
स्थानीय कामकाज के संचालन हेतु नगरों
और गांवों में पंचकुल नामक संस्था होती थी जिसमें पांच सदस्य होते थे कहीं कहीं
इनकी संख्या 10 तक भी होती थी प्रत्येक विभाग के लिए एक पंचकुल या कमेटी होती थी
जिसकी व्यवस्था और निर्णयों के क्रियावयन हेतु राजकीय अधिकारी होते थे। इनमें
प्रमुख 6 अधिकारी मुख्य पुलिस अधिकारी पटेल तहसीलदार लेखक या करणिक शुल्क ग्राह
अर्थात छोटे मोटे करों को उगाहने वाला तथा प्रतिहारि अर्थात सिपाही होते थे।
नगर के प्रमुख अधिकारी को पुरप्रधान ग्राम प्रमुख को
ग्राम कुट या ग्राम भौगिक कर वसूर करनेवाले को शोल्किक, जुर्माना दण्डपाशिक
के द्वारा वसूला जाता था गांव जमीन आदि की कर वसूली का अधिकार पांच सदस्यों की एक
कमेटी को था। इस कमेटी या पंचकुल को न्याय करने का भी अधिकार था जुर्माने का राशि
निर्धारित थी ताकि मनमानी न की जा सके। पंचकुल के निर्णय के विरूद्ध अपील सुनने का
अधिकार राजा को था पंचकुल के सदस्य महत्तर कहलाते थे। इनका चुनाव नगर व गांव की
जनता द्वारा होता था इसका प्रमुख सदस्य महत्तम कहलाता था। ग्राम प्रशासन न्यायपूर्वक
चला करता था। उस समय ग्राम दान की परम्परा के बावजूद ग्राम पंचायत और ग्रामीण
मुख्यिों की महत्ता बनी रही ।शायद इसी कारण भी कलचुरी दीर्घावधि तक शान्तिर्पूर्ण
शासन करते रहे । 14वीं सदी में कलचुरी साम्राज्य के विभाजन के बाद भी दोनों शाखाओं
रतनपुर एवं रायपुर के शासन व्यवस्था में कोई परिवर्तन परिलक्षित नहीं हुआ।
परवर्ती कलचुरि शासकों के निष्क्रिय व विवेक शून्य होने
के कारण पदाधिकारी स्थायी और पद लोलुप हो गए और राज्य का अध:पतन प्रारम्भ हो गया,
केन्द्रीय
शक्ति की जड़ कमजोर हुई और शासन के खिलाफ असन्तोष पनपने लगा,
जिसका
लाभ मराठों को मिला।
कलचुरी यातायात प्रबन्ध
यातायात अधिकारी गमागमिक कहलाता था जो
गांव अथवा नगर से आवागमन पर नजर रखता था अवैध सामग्री एवं हथियारों को जब्त करता
था।
कलचुरी कालीन आय के स्त्रोत
राजकीय आयक स्त्रोत थे । गांव के उत्पादन पर निर्यात
कर और बाहर की सामग्री पर आयात कर लगता था जिस पर शासन का अधिकार होता था।नदी के पार करने पर तथा नाव आदि पर कर लगया जाता था।इनके अतिरिक्त मण्डीपिका अथवा मण्डी में बिक्री के लिए आई हुई सब्जियों
।सामग्रियों पर कर हाथी ,घोड़े आदि जानवरों पर बिक्री कर लगाया जाता था । प्रत्येक घोडे़
के लिए 2 पौर (चांदी का छोटा सिक्का ) और हाथी के लिए 4 पौर कर लगाया जाता था। मण्डी में सब्जी बेचने के लिए युगा नामक परवाना परिमिट लेना पड़ता था जो दिन भर के लिए होता था। 2युगाओं
के लिए एक पौर दिया जाता था।
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