छत्तीसगढ़ी भाषा (Chhhattisgarhi language)
28 नवम्बर 2007 को छत्तीसगढ़ की विधानसभा के छत्तीसगढ़ राजभाषा संशोधन विधेयक 2007 पारित किया । इसके साथ ही छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) को राजभाषा का दर्जा मिल गया । आपको बता दें कि छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) को भारतीय भाषाओं की 8वीं अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है एवं पूर्वी हिन्दी की समर्थ विभाषा माना गया । छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi) बोली का विकास अर्धमागधी अपभ्रंश से हुआ है। प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ को दक्षिण कोसल के नाम से जाना जाता था एवं यहां बोली जाने वाली भाषा ”कोसली” कहलाती थी। इसका प्राचीनतम साक्ष्य दंतेवाड़ा के शिलालेख में मिलता है।
छत्तीसगढ़ी के संबंध में विद्वान के मत-
डॉं क्रांतिकुमार जैन – अपनी पुस्तक में छत्तीसगढी बोली, व्याकरण और कोश में छत्तीसगढ़ी को भौगोलिक आधार पर तीन भागों में विभाजित किया है।
- बस्तर के पठार में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
- छत्तीसगढ़ के मैदान में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
- सतपुड़ा की उच्च समभूमि में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी (Chhhattisgarhi)।
डॉ नरेन्द्र देव वर्मा – अपने शोध ग्रंथ में छत्तीसगढ़ी के 10 बोलीगत विभेदों का उल्लेख निम्नानुसार किया है-
- छत्तीसगढ़ी, रायपुरी, बिलासपुरी,
- खल्टाही
- लरिया
- सरगुजिहा
- सदरी कोरवा
- बैगानी
- बिंझवारी
- कलंगा
- भुलिया
- बस्तरी या हल्बा
डॉ रमेशचन्द्र महरोत्रा ने छत्तीसगढ़ी की उपबोलियों पर शोध कर भौगोलिक आधार पर 5 क्षेत्रीय रूप में वर्गीकृत किया है–
- केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी या मूल छत्तीसगढ़ी– बिलासपुरी, रायपुरी, बैगानी,कवर्धाई, कांकेरी,खैरागढ़ी, देवरिया।
- पश्चिमी छत्तीसगढ़ी– खल्टाही, कमारी, मरारी,
- पूर्वी छत्तीसगढ़ी– लरिया, बिंझवारी, कलंगा, भुलिया
- उत्तरी छत्तीसगढ़ी– सरगुजिहा, सदरी कोरवा (नागपुरिया), पंडो, नागवंशी।
- दक्षिणी छत्तीसगढ़ी- हल्बी (बस्तरी), धाकड़, मिरगानी
डॉ रमेशचन्द्र महरोत्रा ने छत्तीसगढ़ी के विभिन्न उपबोलियों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया गया है।
- तथ्य– भाषायी जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ में मूल छत्तीसगढ़ी बोलने वालों की जनसंख्या 1,58,12,522 है।
1- केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी Central Chhattisgarhi-
यह परिनिष्ठित छत्तीसगढ़ी बिलासपुर, रायपुर एवं दुर्ग संभाग में सर्वाधिक बोली जाती है।
इसमें मुख्य रूप से– बिलासपुर, मुंगेली,जांजगीर – चांपा, रायगढ़, कवर्धा, राजनांदगांव, दुर्ग, बेमेतरा, रायपुर,बलौदा बाजार और धमतरी जिले शामिल है। इसके साथ बस्तर संभाग में कांकेर जिला में भी केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी का क्षेत्र है।
रायपुर दुर्ग के आसपास एवं बिलासपुर, जांजगीर चांपा के आसपास बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी में कुछ भिन्नताएं है जैसे –
- रायगढ़– मोर नॉव दुकालू ए।
- रायपुर– मोर नॉव दुकालू हवै ।
- बिलासपुर-मोर नॉव दुकालू हय। ।
- जांजगीर चांपा– मोर नॉव दुकालू हावै ।
केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी में बोली जाने वाली बोली-
- बिलासपुरी– बिलासपुर, रायपुरी, जांजगीर चांपा वं रायगढ़ जिलो में बोली जाती है।
- रायपुरी- रायपुर, धमतरी, बलौदाबाजार, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा, राजनांदगाव जिलों में बोजी जाने वाली छत्तीसगढ़ी रायपुरी है।
- बैगानी– बैगा जनजाति द्वारा बोली जाती है यह बोली कबीरधाम, बिलासपुर, एंव राजनांदगाव जिले में बैंगा जनजाति द्वारा बोजी जाती है। इस बोली पर मराठी, बुंदेली और गोंडी का प्रभाव स्पष्ट परिलक्षित होता है। बैगानी बोली का विधि वत अध्ययन वेरियर एल्विन 1989 ने द बैगा The Baiga पुस्तक में किया है।
- कवर्धाई- कबीरधाम जिले की बोली है।
- कांकेरी– यह कांकेर जिले में बोली जाती है। कांकेरी बोली पर हल्बी और भतरी का प्रभाव है।
- खैरागढ़ी– राजनांदगांव जिला में खैरागढ़ के आसपास बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ की खैरागढ़ी कहा जाता है।
- देवरिया– यह देवार जाति द्वारा बोली जाती है। ये लोग रायपुर, धमतरी और महासमुंद जिले में रहते हैं।
2- पश्चिमी छत्तीसगढ़ी Western Chhattisgarhi-
छत्तीसगढ के पश्चिम दिशा में बोली जाने वाली भाषा है इसमें बिलासपुर, मुंगेली, कबीरधाम ,एवं राजनांदगाव जिले का पश्चिमी सीमांत क्षेत्र शामिल है जो मध्यप्रदेश के बालाघाट से मिलती है।
प्रमुख बोलियां-
- खल्टाही(Khaltahi)– इसमें बिलासपुर, मुंगेली, कबीरधाम, राजनांदगांव जिले के पश्चिमी सीमांत क्षेत्र शामिल है खल्टाही बोली मे मराठी और बुंदेली का प्रभाव है। यह पश्चिमी छत्तीसगढ़ी की सबसे प्रमुख बोली है।
- कमारी(Kamari)– कमार जनजाति द्वारा बोली जाने वाली कमारी कहलाती है। महासमुन्द्र गरियाबंद, धमतरी जिलें के जंगलों के आसपास निवासरत है। कमारी में हल्बी और ओडि़या के तत्व घुले- मिले हैं।कमारी बोली का अध्ययन श्यामाचरण दूबे 1951 ने द कमार नामक पुस्तक में किया है।
- मरारी(Marari)– मरार जाति के द्वारा बोली जाती है। मरार जाति के लोग छत्तीसगढ़ के पश्चिमी सीमांत क्षेत्रों में निवासरत है। इस बोली पर बुंदेली और मराठी का प्रभाव है।
3-उत्तरी छत्तीसगढ़ी Nortern chhattisagrhi-
छत्तीसगढ़ के उत्तरी क्षेत्र सतपुड़ा पर्वत् श्रृंखला की उच्च समभूमि में बोली जाती है। इसमें कोरिया, सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर,जशपुर,रायगढ़ जिले का धरमजयगढ़ एंव कोरबा जिले का उत्तरी सीमांत क्षेत्र शामिल है।
प्रमुख बोलिया– सरगुजिहा, सदरी-कोरवा (नागपुरिहा), पंडो।
- सरगुजिहा(Sargujiya)– सरगुजा रियासत में उपयोग कि जाती है। मुख्य रूप से कोरिया, सूरजपुर, सरगुजा, बलरामपुर,एवं जशपुर, जिलामें बोली जाती है। सरगुजा क्षेत्र के उत्तर में उत्तरप्रदेश, उत्तर पश्चिम में मध्यप्रदेश, उत्तर पूर्व में झारखण्ड से जुड़ा हुआ है इस कारण सरगुजिहा पर अवधी, भोजपुरी, बघेली बोलियों का प्रभाव है। इसके साथ ही द्रविड़ भाषा की बोली कुडुख उरांव बोलि का भी प्रयोग किया जाता है।
- जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में सरगुजिहा बोलने वालों की कुल जनसंख्या 17,37,224 है।
- सदरी कोरवा (नागपुरिहा)Nagpuriya-यहा कोरवा जनजाति के द्वारा बोला जाता है। झारखंड के छोटा नागपुर के पठारी क्षेत्र में भोजपुरी एवं छत्तीसगढ़ी की मिश्रित उपबोली का प्रचलन है इसे सदरी कोरवा बोली के नाम से जाना जाता है। इसे बोली को बोलने वाले लोग जशपुर, सरगुजा, रायगढ़, एवं कोरबा जिले में रहते हैं। इस बोली की सरगुजिहा से काफी समानता है। भाषायी जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ में सदरी बोलने वालों की कुल जनसंख्या 6,47,154 है।
- पंडो(Pando)– यह बोली पंडो जनजाति द्वारा बोली जाती है इसके बोलने वाले सरगुजा, सूरजपुर, बलरामपुर, और रायगढ़ जिले में निवासरत हैं।
- नागवंशी(Nagvanshi)– यह बोली सरगुजा एंव रायगढ़ जिले में बोली जाती है।
4- पूर्वी छत्तीसगढ़ी Eastern Chhhattisgarhi-
रायगढ़ महासमुन्द एवं गरियाबंद जिले में बोली जाने वाली छत्तीसगढ़ी को पूर्वी छत्तीसगढ़ी के नाम से जानते हैं। बलौदाबाजार एवं रायपुर जिला मे भी पूर्वी छत्तीसगढ़ी का स्पष्ट प्रभाव है। इस बोलि में उड़ीया राज्य स्थित होने के कारण पूर्वी छत्तीसगढ़ी में उडि़या का प्रभाव है।
पूर्वी छत्तीसगढ़ी की प्रमुख बोलिया– लरिया, बिंझवारी, कलंगा, भूलिया।
- लरिया(Laria)– महासमुन्द् , गरियाबंद एवं रायगढ़ जिले में बोली जाती है इसमें उडि़या भाषा का प्रभाव है।
- बिंझवारी(Bhinjhvari)– रायपुर, बलौदाबाजार एव रायगढ़ जिले के सारंगढ़ के आसपास के क्षेत्रों में बोली जाती है। यह बिंझवार जनजाति द्वारा बोली जाती है और इसमें उडि़या भाषा का प्रभाव है।
- कलंगा(kalanga)– रायपुर जिले के पूर्वी भाग और रायगढ़ जिले के दक्षिणी भाग में यह बोली बोली जाती है। इस पर उडि़या भाषा का पर्याप्त प्रभाव है।
- भूलिया(Bhulia)– उड़ीसा से लगे पूर्वी छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले में यह बोली जाती है। इसमें उडि़या का प्रभाव देखने को मिलता है।
5- दक्षिणी छत्तीसगढ़ी Southern chhattisagrhi-
बस्तर संभाग के सभी सातों जिलों कांकेर, कोंडागांव, बस्तर, सुकमा, दंतेवाड़ा, बीजापुर एवं नारायणपुर में दक्षिणी छत्तीसगढ़ी की बोलिया उपयोग कि जाती है। ये बोलिया पश्चिम में मराठी, पूर्व में उडि़या और दक्षिण में गोंडी से प्रभावित हैं।
इसके अंतर्गत्आने वाली बोलिया-
हल्बी – बस्तरी, धाकड़, मिरगानी।
- हल्बी(Halbi)– यह हल्बा जनजाति की प्रमुख बोली है । हल्बी बस्तरी बस्तर संभाग की संपर्क भाषा है हल्बी को बस्तर संभाग का लिंग्वाफ्रेंका कहा जाता है। इसको बोलने वाले जिले में नारायणपुर, बीजापुर, दंतेवाड़ा, सुकमा, बस्तर, कोंडागांव, कांकेर शामिल है। हल्बी में ओडि़या , मराठी और केन्द्रीय छत्तीसगढ़ी का मिश्रण है। यह बोली आर्य भाषा परिवार की बोली हे किन्तु इसमें द्रविड़ भाषा के भी शब्द पाये जाते हैं। भाषायी जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ हल्बी बोलने वालों की कुल जनसंख्या 7,06,304 है।
- धाकड़(Dhakadh)– यह जगदलपुर क्षेत्रों में धाकड़ जनजाति द्वारा बोली जाती है।
- मिरगानी(Mirgami)– यह बस्तर, कोंडागांव, एवं सुकमा जिले के पूर्वी भाग में उड़ीसा से लगे क्षेत्रों में मिरगान जाति द्वारा बोली जाती है।
जनजातिय बोली हल्बी और गाड़ी में प्रकाशित होने वाला प्रदेश का एकमात्र साप्ताहिक अखबार ”बस्तरिया” जगदलपुर से प्रकाशित होता है।
स्त्रोत / संदर्भ ग्रंथ-
- डॉ विनय कुमार पाठक,एवं डॉ विनोद कुमार वर्मा – छ्तीसगढ़ का सम्पूर्ण व्याकरण
- छत्तीसगढ़ राज्य हिन्दी ग्रंथ अकादमी , रायपुर
- राज्य शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद, रायपुर- छत्तीसगढ़ी शब्दकोश।