cgpsc mains notes paper 6 part 03

छत्तीसगढ़ के संत ! sants of Chhattisgarh

major sants of chhattisgarh ! छत्तीसगढ़ के प्रमुख संत रामानंद-कबीर दास-गुरु घासीदास-मत्‍स्‍येन्‍द्रनाथ गोरखनाथ वल्लभाचार्य गहिरा गुरू-महर्षि महेश योगी


पृष्‍ठभुमि

छत्तीसगढ़ की राजधानी श्रीपुर हुआ करती थी जहां संस्कृत
के विद्वानों का केंद्र था छत्तीसगढ़ में कई संत हुए हैं जिनका जन्म छत्तीसगढ़ में
हुआ है एवं कुछ अन्य संत हुए जिनका जन्म छत्तीसगढ़ से बाहर अन्य राज्यों में हुआ
है पर उन्होंने अपने ज्ञान और विद्या का विस्तार छत्तीसगढ़ में किया है
 छत्तीसगढ़ के प्रमुख संत [major sants of chhattisgarh] की व्‍याख्‍या विस्‍तृत जानकारी दी जा रही है।

रामानंद

रामानंद ने
रामानंदी आंदोलन की शुरुआत की । रामानंद जी ने वैष्णव धर्म का प्रसार छत्तीसगढ़
में किया । स्त्रियों और ब्राह्ममणोत्तरो को वैष्णवी दीक्षा दी।  रामानंद ने वैरागी नामक विरक्त समाज की स्थापना
की।
 

उनका स्लोगन है जाती
पाती पूछे नहीं कोई हरि को भजे सो हरि का होई

उनके शिष्य कबीरदास बने राजनांदगांव और छुई खदान के
राजाओं ने रामानंदी आंदोलन से प्रभावित होकर बैरागी समाज में जुड़कर बैरागी कहलाए ।
रामानंद के दो प्रमुख मठ गरीब दास जी मठ रायपुर एवं शिवरीनारायण मठ है।




कबीर दास

कबीर दास  ने कबीर
पंथी की स्‍थापना किया। कबीर दास जी के प्रमुख शिष्य धर्मदास जी हुए वे प्रथम महंत
कहलाए।

गुरु घासीदास

 गुरु घासीदास ने
सतनामी पंथ की स्थापना की ।छाता पहाड़ में तेंदू वृक्ष के नीचे सत्यनाम ज्ञान
प्राप्त कर गुरु घासीदास ने अनेक संदेश लोगों तक पहुंचाएं

गुरु घासीदास की जीवनी-

ऐसे महान संत गुरु घासीदास का जन्म 18 दिसम्‍बर 1756 को रायपुर के बलौदा बाजार तहसील के ग्राम विरोध में हुआ था उनके पिता महंगू …. पूरा पढ़े

मत्‍स्‍येन्‍द्रनाथ

 मत्‍स्‍येन्‍द्रनाथ आदिनाथ संप्रदाय  के अंतर्गत आते है। मत्‍स्‍येन्‍द्रनाथ के गुरु
श्री दत्त थे उससे उन्होंने ज्ञान की प्राप्ति किया। साबरी तंत्र के ज्ञाता हुए
जिन्होंने योगी और भोगी दोनों ही ज्ञान का प्रयोग किया

गोरखनाथ

गोरखनाथ के गुरु का नाम महेंद्र नाथ था । गोरखनाथ कौलाचार
शिव भक्त थे । उन्होंने अद्वैतवादी मत दिया । गोरखनाथ को छत्तीसगढ़ी गीतों में
मछंदर नाथ की उपाधि दी गई है

major sants of Chhattisgarh ! छत्तीसगढ़ के प्रमुख संत 

वल्लभाचार्य

वल्लभाचार्य भक्ति मार्गी वल्लभाचार्य का जन्म रायपुर के चंपाझर (चंपारणमें हुआ वे कृष्ण के अनुयायी थे उनका मत शुद्धादैत है। अर्थात ब्रह्म नितांत शुद्ध है का । वल्लभाचार्य पुष्टि मार्ग में ईश्‍वर की कृपा एवं अनुभव की व्‍याख्‍या की है। इनके अनुसार भक्ति बिना किसी उद्येश्‍य या बिना किसी फल की आकांक्षा किये जाना चाहिए। वल्लभाचार्य ने रूद्र संप्रदाय की स्‍थापना की।

वल्‍लभाचार्य जीवन परिचय- 




वल्‍लाभाचार्य वैष्‍णवधर्म के कृष्‍णमार्गी शाखा के सन्‍त थे। इनका जन्‍म चंपारण्‍य रायपुर में 1479 ई में हुआ। चंपारण्‍य को महाप्रभु की 84 बैठकों में से महत्‍वपूर्ण बैठक माना जाता है इसलिए इन्‍हे महाप्रभु कहा जाता है। आगे चलकर वे वृन्‍दावन में स्‍थायी रूप से रहने लगे जहां से इन्‍होंने कृष्‍णभक्ति का उपदेश दिया। वे विवाहित जीवन को आध्‍यात्मिक पालन करने में बाधक नहीं माना।

 वे संस्‍कृत और ब्रजभाषा में अनेक विशेष कृतियों का लेखन किया। वल्‍लाभाचार्य संत विष्‍णु स्‍वामी के शुद्धाद्वैतवाद के अनुयायी बने। शुद्धाद्वैतवाद दर्शन में प्रेममयी ईश्‍वर एवं व्‍यक्ति विशेष ईश्‍वर की अवधारणा केन्द्रित थी। शुद्धाद्वैतवाद को वल्‍लाभाचार्य ने पुष्टि मार्ग कहा। पुष्टि मार्ग में पुष्टि कृपा और भक्ति निष्‍ठा के पथ पर विश्‍वास करते थे।

वल्‍लभाचार्य ने श्रीकृष्‍ण को ब्रहपुरूषोत्तम और परमानंद के रूप में देखा। उन्‍होंने ईश्‍वर की अनुभूति करने के लिए भक्ति का निरंतर अभ्‍यास करने से प्राप्‍त किया जा सकता है बताया । वल्‍लभाचार्य ने रूद्र संप्रदाय की स्‍थापना भी की। चंपारण्‍य रायपुर में माघ पूर्णिमा पर वार्षिक भव्‍य मेला का आयोजन होता है। चंपारण्‍य वैष्‍णव तीर्थ स्‍थल है। 

गहिरा गुरू-

आदिवासी समाज में सुधार , आदिवासियों
को शोषण
, भ्रष्‍टाचार से मुक्‍त करान का प्रयाग छत्तीसगढ़ में गहिरा
गुरू ने किया।

गहिरा गुरू जीवन परिचय- 




गहिरा गुरू का जन्‍म रायगढ़ जिले
के घरघोड़ा तहसील में लैलूंगा के निकट गहिरा ग्राम में हुआ था। सन् 1905 में श्रावण
मास की अमावस्‍या में बुड़गी कंवर के घर उनका जन्‍म हुआ इनका बचपन का नाम रामेश्‍वर
था। बड़े होकर अपने व्‍यवहार और निष्‍कपट प्रवृत्ति के कारण आसपास के क्षेत्र में वे
गुरू नाम से  प्रसिद्ध हुऐ हुए और अन्‍त: उन्‍हें
गहिरा गुरू के नाम से पहचाना जाने लगा। गहिरा गुरू ने सनातन संस्‍कृति के अनुरूप सत्‍य
, शांति, दया , क्षमा
धारण करने तथा चोरी हत्‍या
, मिथ्‍या, त्‍याग करने का उपदेश दिया।

गुरू गांधी जी के अहिंसात्‍मक आंदोलन से काफी प्रभावित थे।
वे कइ बार गांधी जी से मिलने साबरमती आश्रम गये। 
गांधी जी ने उन्‍हे सेवा धर्म के पालन करने का उपदेश दिया था तभी से गुरू ने
अपना जीवन आदिवासियों के जीवन में सुधार लाने हेतु लगा दिया था। तत्‍कालिन परिस्थ्‍ितियों
के कारण गुरू  वे भी स्‍वतंत्रता आंदोलन में
कूद पड़े। गुरू की मृत्‍यु 21 नवम्‍बर 1996 को गुरू का निधन हो गया। उनकी देश प्रेम
, कर्मठता
ईमानदारी एवं सेवाधर्म के कारण वे हमेशा के लिए अमर हो गए

महर्षि महेश योगी- 

महेश योगी विश्‍व प्रसिद्ध समाज सेवी, शिक्षाविद़
एवं अध्‍यात्मिक गुरू हैं। इनके 5 लाख से अधिक अनुयायी हैं। वर्तमान में उनके नाम पर
आध्‍यात्मिक केन्‍द्र
, योग साधना केन्‍द्र एवं आयुर्विज्ञान शिक्षा संस्‍थान  वाशिंगटन, भारत  स्विट्रजरलैण्‍ड, लंदन न्‍यूयार्क
एवं हॉलेण्‍ड में स्थित हैं।

महेश योगी का जन्‍म 12 जनवरी को 1917 को पांडुका, रायपुर
में हुआ था। भारत में महर्षि विद्यामंदिर इन्‍ही की प्रेरणा से संचालित किऐ जाते है।
महेश योगी की वर्तमान संस्‍था
, द्वारा जबलपुर मध्‍यप्रदेश में विश्‍व की सबसे उंची मंदिर
2222 फुट की का निर्माण करवाया जा रहा है। 


इसाप्रकार इस पोस्‍ट में छत्तीसगढ़ के प्रमुख संत  की पूरी जानकारी दी गई है।



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By Admin