प्रात: स्‍मरणम् Pratah smaran sloka

प्रात: स्‍मरणम् श्‍लोक pratah smaran sloka





कराग्रे वसते लक्ष्‍मी: करमध्‍ये सरस्‍वती ।

कर मूले तु गोविंद : प्रभाते कर दर्शनम् ।।
1 ।।

karagre waste laxmih karmadhye sarswati

kar mule tu govindah prabhate kar darshanam


हाथ के अग्रभाग में लक्ष्‍मी,
मध्‍य में सरस्‍वती तथा मूल में गोविंद
(परमात्‍मा) का वास होता है। प्रात: काल में (पुरूषार्थ के प्रतीक) हाथों का दर्शन
करें

hath ke agrabhag me
laxmi, madhya me sarswati avam mul me govind ka vash hota hai. pratah kal me
hatho ka darshan kare.


समुद्रवसने देवि !
पर्वतस्‍तनमण्‍डले ।

विष्‍णुपत्नि ! नमस्‍तुभ्‍यं
पादस्‍पर्श क्षमस्‍व में ।। 2 ।।

samudravasane devi !
parvatstanmandale|

vishnupatni !
namastubhayam padsparsh chamsaw me ||


हे सागर रूपी वस्‍त्र पहनी हुई देवी,
पर्वत जिसके स्‍तनमण्‍डल हैं,
ऐसी विष्‍णु की पत्‍नी (पृथ्‍वी),
मै तुझे नमस्‍कार करता हूं। पैरो से छूने के
दोष के लिए आप मुझे क्षमा करें

he ! sagar rupi vastra
pahni hui devi, parvat jiske stanmandal hai,aishi vishu ki patni(prithvi), main
tujhe namaskar karta hu| pairo se chune ke dosh ke liye aap mujhe chama kare.


ब्रम्‍हा मुरारिस्त्रिपुरान्‍तकारी

भानु: शशी भूमिसुती बुधश्‍च ।

गुरूश्‍च शुक्र : शनि – राहू-केतव:

कुर्वन्‍तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।। 3 ।।

bramha
muraristripurantakari

bhanu sashi bhumisuthi
bhudhsch

gurusch sukra shani rahu
ketuva

kurvantu sarve mam
suprabhatam


ब्रम्‍हा,
मुरारि (विष्‍णु)
त्रिपुरासुर – नाशक (शंकर) एवं सुर्य चंद्र
,
मंगल,
बुध,
गुरू,
शुक्र,
शनि,
राहु और केतु,
ये नवग्रह मेरे प्रभात को शुभ करें


सनत्‍कुमार: सनक: सनन्‍दन:

सनातनोप्‍यासुरिपिंगलौ
च ।

सप्‍त स्‍वरा: सप्‍त रसातलानि

कुर्वन्‍तु सर्व्‍ेा मम सुप्रभातम्।। 4 ।।

sanatkumar sanak sanandan

sanatanoampyasuripingalo c

sapta swara sapta
rasatalani

kurvantu sarve mam
shuprabhatam


(ब्रम्‍हा के मानस पुत्र ) सनत्‍कुमार,
सनक,
सनन्‍दन एवं सनातन सांख्‍य दर्शन के
प्रवर्तक कपिल के शिष्‍य आसुरि
, छन्‍दशास्‍त्र-प्रवर्तक,
पिंगल एवं षट्ज,
ऋषभ,
गंधार,
मध्‍यम,
पंचम,
धैवत निषाद ये सात स्‍वर तथा अतल,
वितल,सुतल,धरातल,
रसातल,महातल
और पाताल ये सात तल मेरे लिए प्रभात मंगलमय करे


सप्‍तार्णवा : सप्‍त कुलाचलाश्‍च

सप्‍तषयो द्वीपवनानि सप्‍त ।

भूरादिकृत्‍वा भुवनानि सप्‍त

कुर्वन्‍तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।। 5 ।।

saptarnava sapt
kulachlasach

saptsayo dwipavanani
sapta

bhuradikritva bhuvnanai
sapt

kurvantu sarve mam
shuprabhatam

 

सात समुद्र (लवाणाब्धि,
इक्षुसागर,
सुरावण,आज्‍यसागर,दधिसमुद्र,क्षरीसागर
और स्‍वादुजल)
, सात
पर्वत (महेन्‍द्र
, मलय,
सह्य,
शुक्तिमान,
ऋक्षनैमस ,
बंध्‍य,
पारियात्र) सप्‍तर्षि (कश्‍यप,
अत्रि,
भारद्वाज,
विश्‍वामित्र,
गौतम,वशिष्‍ठ,
जमदग्रि),
सात द्वीप (जम्‍बु प्‍लक्ष,
शाल्‍मल,
कुश,
क्रेच,
शाक,
पुष्‍कर ) सात वन (दण्‍डक,
खण्‍ड,
चम्‍पक,
वेद,
नैमिष,
धर्मअरण्‍य ) और सात भुवन (भु:,भुव:,
स्‍व:,
जन,
मह:,
तप: सप्‍तम्)
मेरे लिए प्रभात कलयाणकारी करें ।


पृथ्‍वी सगन्‍धा सरसास्‍तथाप:

स्‍पर्शी च वायुर्ज्‍वलनं च तेज: ।

नभ: सशब्‍दं महता सहैव

कुर्वन्‍तु सर्वे मम सुप्रभातम् ।। 6 ।।



 

prithvi sagandha
sarsasththapah

sparshi c vasujlvalan c
tejah

nabhah ssabdam mahta
sahaiv

kurvantu sarve mam
shuprabhatam

 

गंधवती पृथ्‍वी,
रसयुक्‍त जल,
स्‍पर्शगुणयुक्‍त वायु प्रज्‍वलित तेज और
शब्‍दगुणयुक्‍त आकाश ये पंचमहाभूत महत तत्‍व के साथ मेरा प्रभात सुमंगल करे।


प्रात: स्‍मरणमेत द्यो

विदित्‍वा∙∙दरत:
पठेत ।

स सम्‍यग् धर्मनिष्‍ठ: स्‍यात्

संस्‍मृताअखण्‍ड
भारत: ।। 7 ।।

pratah smaranmev dyo

viditvaaadaratah pathet

sa samyag dharmnistham
syat

sansmritaakand bharatah


इस  प्रात: स्‍मरणम् pratah smaran sloka को जो
भली भांती समझकर आदरपूर्वक विधिवत पाठ करेगा। वह सम्‍यक रूपेण धर्मनिष्‍ठ होगाऔर
उसके मन में अखण्‍ड भारत का सदा स्‍मरण रहेगा।



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