मुहर्रम का महत्व (muharram)। मुहर्रम कब हैं । muharram 2021
मुहर्रम (muharram) क्या है –
मुहर्रम इस्लामी साल का पहला
महीना है अत: इसे नववर्ष के रूप में मनाया जाता है। वास्वतिक रूप से मुहर्रम की पहचान
एक शोक पर्व के रूप में की जाती है। मुहर्रम एक शोक अवसर होता है। शिया और सुन्नी
दोनो संप्रदाय के लोग इसे मनाते हैं। शिया मुसनलमानों में इसकी विशेष मान्यता है।
मुहर्रम (muharram) क्यों मनाया जाता हैं-
हजरत मोहम्मद पैगंबर के नाती
हज़रत इमाम हुसैन एवं उनके साथियों की शहादत की स्मृति में मुहर्रम मनाया जाता है।
मुहर्रम की दसवीं तारीख को इस्लाम में अत्यंत महत्व प्राप्त है। कारण बहुत से पवित्र
कार्य मुहर्रम की दसवीं तारीख को संपन्न हुए। हजरत मोहम्मद ने मुसलमानों को मुहर्रम (muharram) की दसवीं तारीख को रोजा रखन की शिक्षा दी। मुहर्रम की दसवीं को आशुरा कहते हैं।आशुरा
का अर्थ है दस। यह दिन इस्लाम में इसलिए स्मरणीय है क्योंकि इसी दिन हजरत आदम को
उनकी नाफरमानी पर अल्लाहताला ने माफ कर दिया। हजरत नुह को तूफान से बचा लिया। हजरत
इब्राहिम को जब धधकती आग में फेंका गया तब वह सही सलामत आग से बाहर निकाले गए। हजरत
मुसा और उनके अनुयायियों कों जो शहादत हासिल हुई वह मुहर्रम की दसवीं तारिख ही थीं।
शिया संप्रदाय के लोग मुहर्रम (muharram) के पहले दस दिन उन्हीं के रस्मों रिवाज के मुताबिक दुख वियोग के साथ मनाते हैं। सुन्नी
मुसलमान तकरीर,
दानधर्म आदि
के माध्यम से शोक व्यक्त करते हैं।कहीं स्थान पर प्रतीकात्मक ताबूत बिठाएं जाते
हैं, सवारी आदि निकालकर शरबत
बांटकर मुहर्रम मनाया जाता है।
मुहर्रम (muharram) का महत्व-
मुस्लिम समुदाय मुहर्रम
माह को दस दिन हजरत इमाम की शहादत की याद में तथा उनके प्रति शोक प्रकट करने में
व्यतीत करते हैं। जिस तरह इमाम हुसैन को दस दिनों तक अन्न जल से भेंट नहीं हुई
थी, ठीक उसी तरह अब भी
लोग 10 दिनों तक उपवास करते हैं।
ऐसी दु-खद घटना के शोक में
यह पर्व मुस्लिम समुदाय में मनाया जाता है । इस अवसर पर देश में जगह जगह ताजिये
निकाले जाते हैं। ये ताजिए हजरत हमाम हुसैन के मकबरे के प्रतीक के रूप में माने
जाते हैं। इस जलूस में इमाम हुसैन के सैन्यबल के रूप में कुछ लोग अनेक विधि शस्त्रों
के साथ कलाबाजियों प्रदर्शित करते है। मुहर्रम (muharram)जलूस में लोग इमाम हुसैन के प्रति
अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक ध्वनि बजाते हैं और शोकगीत गाते हैं
तथा विलाफ करते हुए हाय हुसैन हायु हुसैन कहते हैं।
प्राचीन काल में मुहर्रम (muharram) में ताजिए नहीं बनाये जाते थे और इस त्यौहार को सादगी से शोक के रूप में मनाया
जाता है। बाहर के देशों के लोग अब भी ताजिए नहीं बनाते हैं।कुछ लोगों का मानना है
कि तैमूरलंग ने ही हिन्दुस्तान में ताजिया की पद्धति चलाई।