अंतरराष्ट्रीय
वृद्धजन दिवस 2021-theme, history, essay ।international day of older persons 2021
1 October को world elders day, international day of older persons, Old Age
Day, International Day for the Elderly ,पूरी दुनिया में वृद्धजनों का संरक्षण
के लिए मनाया जाता हैं। इस दिन को हिन्दी में अंतरराष्ट्रीय
वृद्ध दिवस, विश्व वृद्ध दिवस आदि नामों से मनाया
जाता हैं।
- World elders day 2021 कब है– 1 October 2021
- विश्व वृद्ध दिवस कब मनाया जाता है– 1 October 2021
- वृद्धजनों का संरक्षण दिवस– 1 October 2021
- Old Age Day-1 October
- International Day for the Elderly-1
October
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस क्यों
मनाया जाता है-
- वरिष्ठ नागरिको और वृद्धजनों का सम्मान
किया जाना । - वरिष्ठों वृद्धजनों के हित के लिए
प्रयास एवं मंथन करने के लिए । - वृद्धजनो का और वरिष्ठ नागरिको के प्रति
सम्मान प्रदर्शित करने के लिए इस दिवस को मनाया जाता है।
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस का इतिहास (
कब से शुरू हुआ )-
14 दिसंबर, 1990 को
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1
October को
वृद्ध नागरीकों के लिए अंतर्राष्ट्रीय वृद्धजन दिवस के
रूप में मनाने के लिए सहमती दी ।
international day of old persons theme 2021-
अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 2021 theme-
- international day of old persons
theme 2018- Celebrating Older Human Rights
champions
- international day of old persons
theme 2019- The Journey to Age Equality
- international day of old persons
theme 2020- Pandemics: Do They Change How We
Address Age and Ageing?
theme 2018- Celebrating Older Human Rights
champions
theme 2019- The Journey to Age Equality
theme 2020- Pandemics: Do They Change How We
Address Age and Ageing?
अंतरराष्ट्रीय
वृद्धजन दिवस पर वृद्धजन
एवं उनकी समस्याओं पर निबंध [ antarrashtriya vridhjan divas 2021]
प्रत्येक
मनुष्य का जीवन बाल्यावस्था, किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था से होता हुआ वृद्धावस्था
में प्रवेश करता है। इस अवस्था में व्यक्ति अपने शारीरिक, मानसिक, सामाजिक
तथा बौद्धिक स्तर पर शिथिल पड़ जाता है। उसके शरीर की क्रियाऐं धीमी हो जाती है
अर्थात् उसके रक्त संचार, मल मूत्र्ा बर्हिगमन एवं पाचनशक्ति आदि
की क्रियाएँ अशक्त हो जाती है। इस अवस्था में प्रजनन की क्षमता भी लगभग समाप्त हो
जाती है। वृद्ध जिद्द और मानसिक प्रतिरक्षाओं के प्रयोग की ओर झुक जाता है। उसमें
सुरक्षा एवं आत्मविश्वास की भावना धीरे-धीरे समाप्त होने लगती है। इन सब कारणों से
वह आर्थिक क्रिया-कलापों में अक्षम हो जाता है। इस प्रकार आर्थोपार्जन के लिए
वरिष्ठजन अपेक्षित शक्ति के अभाव में निरन्तर आर्थिक समस्याओं का शिकार हो जाते
है। वृद्धों की अनेक प्रकार की व्यक्तिगत अक्षमताएँ सामाजिक क्षेत्र में उन्हें
अनुत्साही तथा हीन दशा में पहुँचा देती हैं जिससे वह स्वयं को उपेक्षित महसूस करते
है।
वृद्ध
एवं वृद्धावस्था क्या है –
आमतौर
पर वृद्ध शब्द एक पृथक श्रेणी के रूप में माना जाता है और यह प्रत्येक व्यक्ति के
जीवन में आने वाली निरन्तर प्रक्रिया है। मनुष्य में वृद्धावस्था की धारणा, उद्देश्य व दृष्टिकोण के साथ बदलती रहती
है और साथ ही साथ लिंग, आवास व वातावरण आदि पर निर्भर करती है
डोनाल्डसन के अनुसार वृद्धावस्था में निरन्तर सजातीय योग्यता में कमी
होती जाती है। गोरे(1997) के अनुसार वृद्धावस्था एक जैविक व प्राकृतिक प्रक्रिया
है। वार्ड (1974) के अनुसार, वृद्धों को सामाजिक आधार पर बिना किसी
काम का बेकार माना जाने लगता है, वहीं वीरेन (1980) ने वृद्धावस्था में वृद्धों के मानसिक व शारीरिक क्षमता में ह्रास होना बताया है।
हेज
(1987) ने अपने कथन में वृद्धावस्था की स्थिति में शारीरिक स्थान को उल्लेखित किया
है। वहीं फ्रैकेनबर्ग (1988) ने वृद्धावस्था को दो चरण में विस्तारित किया है-
तृतीय चरण एवं चतृर्थ चरण, जिसमें तृतीय चरण में वृद्ध
सेवानिवृत्ति के उपरान्त पूर्ण रूप से दूसरों पर आश्रित हो जाता है तथा चतुर्थ चरण
में व्यक्ति की निर्भरता मृत्यृ तक रहती है।
वर्तमान
समय में लोगों का प्रायः ऐसा मानना है कि रोजगार और नौकरी से सेवा निवृत्ति होना
एक वृ़द्ध होने का प्रमाण है परन्तु उनसे परिवार तथा समाज की अपेक्षायें बढ़ जाती
हैं। जैसे – संतानों का विवाह, नये पीढ़ी का जन्म, परिवार के मुखिया होने के कारण
आवश्यकताओं की पूर्ती की अपेक्षा करना तथा शारीरिक रूप से अक्षम होने के बावजूद भी
सभी कार्य को करने के लिये परिवार के सदस्यों द्वारा उम्मीद रखना इत्यादि कुछ ऐसे
कारण हैं जिनसे वृद्ध जन अनायाश ही स्वयं को वृद्ध एवं असहाय मान लेते हैं। अतः इन
सभी बिन्दुओं का अध्ययन हम समाज में करते हैं। वृद्धजन शारीरिक व आर्थिक रूप से
अनुत्पादक व असहाय होते हैं, इसलिए इन पर निवेश करना फिजूलखर्ची माना
जाता है, इसलिए वृद्धों के विषय में यह जानना
आवश्यक है कि कोई वृद्ध प्राकृतिक रूप से अस्वस्थ, अशिक्षित
व बेरोजगार नहीं होता यदि समाज के इन वर्ग को सम्मान व स्वयं का जीवन जीने का अवसर
प्रदान किया जाये तो यही वृद्ध समाज में सार्थक योगदान करने की अन्तः शक्ति रखते
हैं।
सभ्य
समाज एवं संस्कृतियों में वृद्धों को ज्ञान, अनुभव, संस्कार, निर्णय
लेने की क्षमता का असीमित भण्डार माना जाता है। इसलिए इस वर्ग के लोगों को समाज
में अन्य लोगों की अपेक्षा विशेष अधिकार एवं सम्मान प्रदान किया जाता है, क्योंकि उनके अनुभव व ज्ञान के माध्यम
से समाज में एक नया आयाम प्रतिपादित किया जा सकता है। वृद्धावस्था एक प्राकृतिक
प्रक्रिया है, जो मानव विकास के साथ-साथ चलती रहती है।
इस
प्रकार वृद्धावस्था को पूर्णरूप से समझने के लिए विभिन्न आयामों द्वारा समझा जा
सकता है, क्याेंकि वृद्धावस्था को विस्तार से
समझने के लिए प्रत्येक आयामों पर गहरायी से प्रकाश डालना चाहिए। इसलिए इसको तीन
बिन्दुओं के माध्यम से हम समझने का प्रयास करते हैं।
- जैविकीय
- मानसिक
- सामाजिक
जैविकीय
प्रकार के वृद्धावस्था से आशय वृद्धों के शरीर में बाहरी व आंतरिक परिवर्तन से है।
जब जीवन प्रारम्भ होता है तो दिन-प्रतिदिन शारीरिक एवं मानसिक क्षमता का विकास व
सक्रियता बढ़ती जाती है एवं इसके ठीक विपरीत वृद्धावस्था में होता है, दिन-प्रतिदिन शारीरिक व मानसिक क्षमता
में कमी व हृास होता है। यह प्रक्रिया जीवन के प्रारम्भ होने से शुरू होती है और
मृत्युपर्यन्त तक चलती है। वृद्धावस्था को जीवन के
अंतिम पड़ाव पर व उन अंतिम समय के उन परिवर्तनों के रूप में जाना जाता है, जब व्यक्ति की शारीरिक व मानसिक स्थिति
का हृास होने लगता है। जबकि गोरे (1997) ने अपने लेखों में वृद्धावस्था को जैविक व
प्राकृतिक प्रक्रिया माना है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि इस अवस्था में शरीर की
प्रतिरोधक क्षमता में दिन- प्रतिदिन कमी आती है, जिसके
कारण शरीर की मांसपेशियाँ स्थूल होती चली जाती हैं और उनके शारीरिक व मानसिक
क्रिया का भी हृास होता चला जाता है।
उम्र के निरंतर बढ़ने के साथ-साथ व्यक्ति में शारीरिक क्षमता में कमी होने लगती है, जिसके फलस्वरूप बहुत सारी बीमारियों से
वृद्ध ग्रसित हो जाते हैं। शरीर की सभी मांसपेशियाँ कार्य करना बन्द कर देती हैं।
तथा वृद्धों को अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका दैनिक जीवन भी प्रभावित होता
है।
मानसिक
व्यक्ति
के शरीर का मुख्य भाग मस्तिष्क होता है। यह पूरे शरीर को नियंत्रित करता है तथा
शरीर को सुचारु ढ़ंग से चलाने में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है इसलिए इसका ध्यान
रखना अति आवश्यक है जीवन के प्रारम्भ व मध्यान्तर आयु में मस्तिष्क का विकास व दिन
प्रतिदिन तीव्रता से कार्य करना स्वाभाविक होता है, लेकिन
मस्तिष्क द्वारा कार्य करने की यह क्षमता वृद्धावस्था तक आते आते कम होने लगती है
व्यक्ति की केन्द्रीय तंत्रिका व स्मरण शक्ति की कमी होने लगती है, अर्थात् स्मरण शक्ति का भी क्षय होने
लगता है।
एण्डरसन
(1984) ने अपने लेख में इसका समर्थन किया है। वृद्धावस्था एक बहुत ही संवदेनशील
स्थिति वाली आयु है, जिसमें व्यक्तियों द्वारा उनके साथ किये
जाने वाले व्यवहार के प्रति वृद्धों की भावनाएं जुड़ी रहती हैं। तथा साथ-साथ उनका
अपने जीवन व्यवहार व संसार के प्रति सामान्य नजरिया जिसमें उनका स्थान जो वो
प्राप्त किया रहता है, वह सब सम्मिलित है। वृद्धावस्था में
वृद्धों का अपना एक विचार तथा सोच होता है, जिसके
कारण वह समाज से भी यही उम्मीद करते हैं कि समाज भी उनके अनुसार व्यवहार व कार्य
करे। यह सभी मानसिक वृद्धावस्था के मुख्य कारक है वृद्धावस्था में बहुत सी परेशानी
व तनाव होते हैं, जिसके कारण जीवन पर दबाव भी बढ़ता है। इस
वजह से वृद्धावस्था की गति में भी वृद्धि होती है।
सामाजिक
वृद्धावस्था
में समाज का एक महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्यांेकि
व्यक्ति जब अपने उम्र के इस पड़ाव पर पहुँचता है, तब
समाज में रहने वाले सभी व्यक्तियों
का
व्यवहार वृद्धों के प्रति परिवर्तित होता चला जाता है। वह वृद्धों को दिन प्रतिदिन
नजर अंदाज करते चले जाते हैं तथा वृद्धों के बातों को भी टालना प्रारम्भ कर देते
हैं। और दूसरी तरफ वृद्धों में भी कुछ स्वाभाविक परिवर्तन होना संभव होता है, क्योंकि व्यक्ति जब वृद्ध होता है, तब वह समाज के प्रति कुछ जिम्मेदारी से
मुक्त व दूसरे समूह की तरफ विस्थापित होता है, जिसके
कारण वह समाज से निरन्तर अलग होता चला जाता है, अर्थात्
वृद्धों का अपना साथ व अपना कार्य करने का तरीका (शैली) होता है। वह अपने जैसे
लोगों के साथ रहना पसन्द करते हैं।
अर्थात्
वृद्ध अपने जिम्मेदारियों से मुक्त होकर अपने आने वाली पीढ़ी को अपनी जिम्मेदारी व
समाज के विभिन्न आयामों जैसे रीति-रिवाज, परम्परा, मूल्य, मान-सम्मान, आदर-भाव आदि का अपने आने वाले नयी पीढ़ी
को अवगत कराते हैं, जिससे परिवार में संस्कार व समाज में
रहने के सभी आवश्यक कारकों का नई पीढ़ी को पूर्ण रूप से जानकारी हो सके। जैसे ही
व्यक्ति एक आयु वर्ग से दूसरे आयु वर्ग में प्रवेश करता है उसे नयी-नयी जिम्मेदारी
का व नयी भूमिका का अधिकार प्राप्त हो जाता है। उसके ऊपर परिवार के साथ-साथ समाज
की भी नयी जिम्मेदारी का बोझ सम्भालना पड़ता है।
अतः
इस प्रकार आयु के अनुरूप परिवार के प्रत्येक सदस्य को उनके अधिकारों परिवार व समाज
में भूमिका तथा समाज व परिवार की अपेक्षा से अवगत कराया जाता है ताकि वह अपनी
भूमिका को सही ढंग से समाज व परिवार में निभा सके। समय तथा आयु के साथ-साथ एक
व्यक्ति के जीवन में बहुत से सामाजिक विकास होते हैं।
इस
विकास के साथ जब व्यक्ति अपने जीवन के वृद्धावस्था में पहुँचता है, तो उसको समाज के प्रति लगाव होने लगता
है, जिसके कारण कुछ सामाजिक परिवर्तन होना
भी एक स्वाभाविक है। वृद्धावस्था में सबसे पहले रोजगार व नौकरी से सेवानिवृत्त
होना एक वृद्ध होने का प्रमाण मिल जाता है, जिसके
साथ-साथ अपने संतानों का समाज में स्थायी होना व उनका विवाह तथा अपने नये पीढ़ी का
जन्म, व्यक्तियों का उनके प्रति व्यवहार में
परिवर्तन परिवार के सभी सदस्यों का, परिवार
का मुखिया होने के वास्ते आवश्यकताओं की पूर्ति की अपेक्षा करना तथा वृद्धों
द्वारा सदस्यों से अपने जरूरतों को पूरा करने की उम्मीद रखना व शारीरिक रूप से
अक्षम होने पर सभी कार्य को करने में सदस्यों की अहयोग की अपेक्षा रखना इत्यादि।
ये
बात सच है कि किसी भी देश का विकास युवाओं से होता है उनकी सोच, शक्ति, कार्यक्षमता
आधुनिक होती है परन्तु युवाओं के साथ साथ देश के विकास में वृद्धों की भी उतनी ही
महत्वपूर्ण भूमिका है। इनका सोच तथा अनुभव ही किसी भी कार्य को मार्गदर्शित करती
है। अतः वृद्धजनों का ख्याल रखना अति आवश्यक है। वृद्धों के स्वास्थ्य, आर्थिक व मानसिक स्थिति का ध्यान रखना
तथा उन्हें समाज में एक नया स्थान देना चाहिए, क्योंकि
प्रत्येक व्यक्ति को वृद्धावस्था से होकर गुजरना है। इस बात से हम सभी को अवगत
होना चाहिए।
वृद्धजन
की समस्याएँ
उदारीकरण, निजीकरण
एवं वैश्वीकरण के वर्तमान युग में वृद्ध लोगों के प्रमुख कई समस्याएँ उत्पन्न हो
गई है और यह समस्या दिन प्रति दिन वर्तमान समाज के सामने विकराल बनते जा रही है।
जब से विश्व में नई अर्थव्यवस्था अपनाई गई है, तब
से वृद्ध चाहे-अनचाहे अपने परिवार से अलग किए जा रहे हैं। इसका प्रमुख कारण निजी
क्षेत्र की नौकरियों की बहुलता एवं सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों की अल्पता है।
निजी क्षेत्र का उद्धेश्य लाभ कमाना होता है। इसलिए ये अपने कर्मचारी को कम से कम
वेतन देकर ज्यादा से ज्यादा लाभ व काम कराना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में निजी
क्षेत्र के कर्मचारियों को इतना अवकाश नहीं मिलता है कि ये अपने परिवार के
बुजुर्गों की देखभाल कर सकें। वृद्धावस्था बचपन के समान होती है, जिसमें बच्चे के समान वृद्ध को सेवा
सुश्रुषा की आवश्यकता होती है ऐसा नहीं होने पर वृद्ध के सम्मुख कई प्रकार की
शारीरिक, मानसिक, आर्थिक
एवं सामाजिक समस्याएँ उठ खड़ी होती है। भारत वर्ष और विशेष कर मध्य प्रदेश के कुछ
जिलों का विकास अभी भी अधूरा है। इसलिए यहाँ के युवाओं को रोजगार प्राप्ति के लिए
शहर, देश-विदेश जाना पड़ता है जिसके कारण वे
अपने बुजुर्गों की देखभाल करने में पूर्णतः असमर्थ हो जाते हैं।
सभ्यतावादी देश चीन ने इस समस्या का
समाधान करने के लिए कठोर कानून बनाया है। वहाँ अब बच्चों के लिए यह अनिवार्य है कि
वे अपने बूढे़ माँ-बाप के पास जाएंगे और उनका ध्यान रखेंगे। ऐसा नहीं करने पर
माँ-बाप अपने बच्चों पर मुकदमा कर सकते हैं। भारत में भी चीन के समान परिवार की
संख्या का महत्व रहा है न कि अमेरिका या यूरोप के समान आत्मकेन्द्रीत लोगों की तरह
यहाँ की व्यवस्था है। अतः भारत की सरकारों को भी चीनी मॉडल को अपनाना होगा।
इस संसार में शाश्वत नियम है कि जिसने
भी इस धरती पर जन्म लिया है और अधिक वर्ष तक जीवित रहता है वह वृद्ध अवश्य अस्वस्थ
होता है। वृद्धावस्था बहुत ही भयावह अवस्था होती है। कोई वृद्ध नहीं होना चाहता
फिर भी होना पड़ता है क्योंकि यह शरीरधारियों की अपरिहार्य मृत्यु के निकट ले जाने
की सीढ़ी है और यह एक ऐसी सच्चाई है, जो
कोई भी इसे टाल नहीं सकता यह प्रकृति का नियम है। व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन चक्र
में अंतिम अवस्था, वृद्धावस्था ;व्सक ।हमद्ध की होती है, जो 65 वर्ष की आयु से प्रारम्भ होती है
और मृत्यु तक चलती है।
वृद्धावस्था
में वृद्धों की स्थिति उस समय और भी दयनीय हो जाती है जब उनके साथी या बच्चों की
मृत्यु हो जाती है या उससे सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। सामाजिक-सांस्कृतिक
मूल्यों के परिवर्तनों के साथ अपने को समायोजित कर पाना भी इनके लिए बहुत कठिन
होता है। जीवन पद्धति की इनकी आदते जीवन दर्शन को गहराई तक प्रभावित करती हैं।
आँकड़ों से यह पता चलता है कि भारत में कुल 40 प्रतिशत वृद्ध गरीबी रेखा के नीचे
जीवन व्यतीत कर रहे है और 70 प्रतिशत वृद्ध किसी न किसी प्रकार की बिमारी से
ग्रसित है।
पूर्व समय से चला आ रहा है कि वृद्धों
की देखभाल एवं उनकी सेवा, की जिम्मेदारी परिवार पर रहा है लेकिन
वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न घटकों के कारण इसका प्रभाव संयुक्त
परिवार पर भी पड़ा है, क्योंकि निरंतर संयुक्त परिवार एकाकी
परिवार में परिवर्तित होता जा रहा है जबकि एकाकी परिवार में वृद्धों को कोई स्थान
व मान सम्मान नहीं दिया जाता है। बहुत संख्या में संयुक्त परिवार स्वरूप की दृष्टि
से तो संयुक्त हैं परन्तु प्रकार्य की दृष्टि से इसमें पूर्व की अपेक्षा बहुत अंतर
हो गया है। प्राचीन काल से ही सभी परिवार में यह रीति चली आ रही है कि परिवार का
सबसे अधिक उम्र का व्यक्ति घर का मुखिया कि भूमिका में होता था जिसके द्वारा
परिवार के सभी महत्वपूर्ण निर्णय लिया जाता था जिसे परिवार के सभी सदस्य सहर्ष
मानते भी थ्ो। वृद्धों को परिवार व समाज, आदर
व सम्मान देता था साथ-साथ वृद्धों की सेवा व उनका देख-रेख घर के सभी सदस्य आपस में
मिल-जुल कर करते थे।
जबकि वर्तमान में एकल परिवार हो या
संयुक्त परिवार वृद्धों की स्थिति दोनों ही स्थानों पर दयनीय है, क्योंकि वर्तमान वैश्वीकरण के समय में
युवा व परिवार के सदस्य अत्यन्त व्यस्त है, उनकी
दिनचर्या व जीवनशैली भिन्न-भिन्न प्रकार की है तथा उनकी व्यक्तिवादी सोच के कारण
वृद्ध व्यक्ति परिवार में उपेक्षित जीवन व्यतीत करने के लिए विवश हो गये है।
वृद्धजन के लिए क्या करें (अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 2021)
वृद्धावस्था
एक बहुत ही नाजुक स्थिति वाली अवस्था होती है इसमें बिमारियों के होने की सम्भावना
अधिक से अधिक होती है क्योंकि इस अवस्था में वृद्धों की मानसिक व शारीरिक
क्षेत्रों में शिथिलता आ जाती है। मांसपेशिया सही से कार्य नहीं कर पाती है
तथा उनके कार्य क्षमता में ह्रास होता चला जाता है और शरीर भी उनका साथ नहीं देता।
जिसके कारण पहले से कमजोर महसूस करते है। और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती
जाती है यदि वृद्ध अपने रहन-सहन, खान-पान, व
दिनचर्या को सही से रखते है, तो वह बहुत हद तक बिमारियों से बच सकते
है, तथा स्वस्थ्य रह सकते है। इसलिए वृद्धों
को अपने स्वास्थ्य के प्रति हमेशा जागरूक व सचेत रहने की आवश्यकता है।
वृद्धावस्था
में वृद्ध बिमारियों से ज्यादातर ग्रसीत होते है क्योंकि उनकी प्रतिरोधक क्षमता कम
हो जाती है इसलिए बीमारी भी उन पर हावी होती जाती है यदि व्यक्ति को कोई ऐसी
बिमारी जो की लम्बे समय तक चलने वाली हो जैसे, रक्तचाप, कैंसर, एनीमिया, अस्थमा, मधुमेह, आदि तो इसका एक नियत समय के अंतराल में
चिकित्सीय परीक्षण करना आवश्यक है ताकि बिमारी कोई गंभीर रूप न ले सके।
वृद्धजनों को सशक्त कैसें करें (अंतरराष्ट्रीय वृद्धजन दिवस 2021)–
असहाय एवं बेबस वृद्धों की मदद जैसे बन पढ़े जरूर करनी चाहिए कुछ उपाया दीये गये हैं-
- ग्रामीण निर्धनों तक पूरक ऋण पहुँचाने
के लिए युक्ति रचना तैयार करना एवं वृद्धों को स्वयं के लिए आय के साधन का निर्माण
करना। - ग्रामीण निर्धनों, वृद्धों एवं बैंकों के बीच पारस्परिक
विश्वसनीयता एवं आत्मविश्वास कायम करना। - बैंकिंग कार्य-कलापों में बचत के साथ ऋण
को भी प्रोत्साहित करना जो कि कोई भी सदस्य समूह से निम्न दर पर ऋण भी ले सकता है
और बचत भी कर सकता है। - वृद्धों के कल्याण के लिए तथा उनकी
छोटी-छोटी समस्याओं को दूर करने के लिए स्व सहायता समूह का गठन करना। - वृद्धों को ज्यादा से ज्यादा प्रेरित
करना ताकि ग्रामीण क्षेत्र का प्रत्येक वृद्ध किसी न किसी समूह से जुड़ जाये और
अपनी एक नई पहचान बनाये। - वृद्धावस्था में अकेलेपन को दूर करना भी
एक मुख्य कार्य है। - आर्थिक रूप से वृद्धों को मजबूत बनाना
ताकि वह परिवार में भी छोटी-छोटी जरूरतों में आर्थिक मदद कर सके।
वृद्धजनों
को भारत सरकार द्वारा प्राप्त होने वाली सुविधाएँ एवं रियायतें
सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय, भारत सरकार वरिष्ठ नागरिकों के
कल्याणार्थ नोडल मिनिस्ट्री है। भारत सरकार के सभी मंत्रालय द्वारा वरिष्ठजनों के
समग्र कल्याण हेतु राष्ट्रीय नीति जारी की गयी है। उस नीति के तहत 60 वर्ष एवं
उसके अधिक आयु के व्यक्तियों को वरिष्ठ नागरिक के रूप में परिभाषित किया गया है।
मंत्रालय द्वारा वरिष्ठजनों के कल्याण
के लिए उक्त निम्न योजना को संचालित किया जा रहा है-
वरिष्ठ नागरिकों हेतु एकीकृत कार्यक्रम
इस योजना के अन्तर्गत अशासकीय संस्थाओं
को वृद्धाश्रम, डे-केयर सेन्टर, एवं असंस्थागत
सेवायें प्रदान करने संबंधी कार्यक्रमों में अनुदान देने का प्रावधान है, जिसमें 90 प्रतिशत केन्द्रीय अनुदान एवं
10 प्रतिशत संस्थाओं को स्वयं वहन करना होता है।
पंचायती संस्थाओं, अशासकीय संस्थाओं को वृद्धाश्रमों, के भवन निर्माण
हेतु अनुदान देने का प्रवधान है।
वित मंत्रालय
1.वरिष्ठ नागरिक (60 से 80 तक उम्र वालों
के लिए) हेतु-
|
शून्य
|
|
10
|
|
20
|
|
30
|
2.वरिष्ठजनों हेतु बचत योजना पर अधिकतम ब्याज का प्रदाय।
3.वरिष्ठ नागरिको हेतु बचत योजना जो
भारत सरकार द्वारा पोस्ट ऑफिस के माध्यम से संचालित है। पोस्ट ऑफिस में एक मुष्त
राशि जमा करने पर 9 प्रतिशत प्रतिवर्ष ब्याज दर का प्रदाय है।
सड़क मंत्रालय
बसों
में दो सीटें आरक्षित करने का प्रवधान है, जिस
पर केवल 60 वर्ष से अधिक का व्यक्ति बैठेगा, यह
सीट उनके लिए प्रत्येक बसों में सुरक्षित रखी जाती है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय
अस्पतालों
में स्वास्थ्य परीक्षण एवं रजिस्ट्रेशन हेतु वरिष्ठ नागरिकों की पृथक पंक्तियों का
प्रावधान है, जिसमें कितना भी भीड़ व कतार हो पर
वरिष्ठ नागरिक जो 60 वर्ष से अधिक है वह कतार से बाहर जा के सीधे खिड़की पर अपना
कार्य करा सकता है।
संचार विभाग
- वरिष्ठ नागरिकों की शिकायतें एवं दूरभाष
संबंधी गड़बड़ियों के निराकरण को सबसे पहले सुना जायेगा। उन्हें प्राथमिकता दी
जायेगी और वरिष्ठ नागरिक को वी.आई.पी. फ्लेग की श्रेणी प्रदान किये जाकर
प्राथमिकता की श्रेणी का निर्धारण किया है। - वरिष्ठ नागरिकों हेतु नवीन दूरभाष
कनेक्शन हेतु श्रेणी का सुविधा है।
रेल मंत्रालय
- भारत सरकार के रेल मंत्रालय द्वारा
वृद्धजनों को मेल/एक्सप्रेस ट्रेनों राजधानी तथा शताब्दी, जन शताब्दी रेलों के किराये में 30
प्रतिशत की रियायत का प्रवधान है। इस प्रकार की बड़ी छूट के बाद वृद्धों को आर्थिक
रूप से काफी सहयोग मिल जाता है। वहां पैसों का बचत भी होता है। वृद्धों के लिए
छोटी-छोटी बचत, महाबचत के बराबर होती है। - रेल मंत्रालय द्वारा वरिष्ठ नागरिकों
हेतु टिकट क्रय, बुकिंग, टिकट
निरस्तीकरण हेतु एक पृथक काउण्टर एवं अन्य काउण्टर पर पृथक कतार की व्यवस्था है।
वृद्धों को आराम करने के लिए कुर्सी, सीढ़ी
पर चलने के लिए रेलिंग की भी व्यवस्था है। - वरिष्ठ नागरिकों हेतु व्हील चेयर्स की
हर रेलवे स्टेशन पर, जंक्शन पर उपलब्धता है। जिसके लिए
वृद्धों को किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं देना पड़ता है और वह सरलता से इसका प्रयोग
कर सकते हैं। - प्रत्येक बड़े और महत्वपूर्ण स्टेशनों पर
व्हील चेयर्स की सुगमता के लिए रैम्प की व्यवस्था है। - रेल मंत्रालय में उन सभी वृद्धों के लिए
जो चलने में असमर्थ है, जिन्हें सरलता से यात्रा नहीं कर सकते व
सामान्य डिब्बे में यात्रा करने में कठिनाई होती है, उनके
लिए विशेष प्रकार के डिब्बे की व्यवस्था किया गया है, जिसमें व्हील चेयर्स की व्यवस्था तथा
निःशक्तजनांे हेतु विशिष्ट रूप से बनाए गये शौचालयों की व्यवस्था भी किया है।
बैंकों में सुविधा
वृद्धजनों
के लिए सभी काउन्टरों पर विशेष लाइन की व्यवस्था है। वह किसी भी काउण्टर पर जाकर
सीधा अपना कार्य करा सकते हैं। उनको सामान्य कतार में लगने की आवश्यकता नहीं है।
नागरिक उड्डयन मंत्रालय
- वरिष्ठ नागरिकों को के किराये में 50 प्रतिशत रियायत का प्रवधान है। एवं ऐसे
वरिष्ठजन पुरुष जिनकी आयु 65 वर्ष से अधिक व महिलाओं की आयु 63 वर्ष से अधिक है, किराये में 50 प्रतिशत की दर से रियायत
का प्रावधान है। - 60 वर्ष से अधिक आयु के वरिष्ठजनों को
न्ण्ज्ञ म्नतवचम जाने वाले एयर इंडिया विमानों में रियायत दिये जाने का प्रावधान
है। - सहारा एयर इण्डिया 50 प्रतिशत किराये
में रियायत दे रहा है। जिसमें 62 वर्ष की आयु से अधिक आयु वाले वरिष्ठ नागरिक
सम्मिलित है।
उपभोक्ता मामलें संबंधी वृद्धजनों को
मिलने वाली रियायतें
- अन्त्योदय योजना के तहत बी.पी.एल.
परिवार को जिसमें वरिष्ठजन भी सम्मिलित हैं, को
35 किलो खाद्यान प्रति परिवार दिया जाता है। खाद्यान रुपये किलो व 3 रुपये किलो की
दर से प्रदाय का प्रावधान है। - अन्नपूर्णा योजना के तहत राज्य सरकार
द्वारा 10 किलो अनाज प्रति हितग्राही को प्रति माह दिया जाता है। जो वरिष्ठजनों के तहत लाभान्वित नहीं होते हैं, राशन की दुकान से वरिष्ठजनों को राशन
कार्ड प्राथमिकता के आधार पर प्रदान किये जाने का भी प्रावधान है।
अन्य
योजनाएँ जो वृद्धजनों को लाभान्वित करती हैं-
- रिवर्स मॉटगेज
- स्वास्थ्य बीमा योजना
रिवर्स मॉर्टगेज
वृद्धावस्था
एक ऐसी स्थिति है, जिसमें कोई साथ नहीं देता जो अपने होते
हैं और यहाँ तक की सगे संबंधी भी साथ छोड़ देते हैं तथा शरीर भी साथ नहीं देता, ऐसे में वृद्धों की अचल संपत्ति बुढ़ापे
की लाठी बन सकती है। अपने आशियाने को अपना आखिरी सहारा कैसे बना सकते हैं ?- यह एक ऐसा तरीका है, जिससे वृद्ध अपनी वृद्धावस्था की समस्या
को दूर कर सकता है।
’’रिवर्स मॉर्टगेज’’ भारत में धीरे-धीरे पूरी तरह से फैल रहा
है। इसे अधिकंाश बुजुर्ग अपने उपयोग में ला रहे हैं। इस परियोजना से बुजुर्गाें
में सम्मानपूर्वक जीने का एक अच्छा जरिया बनता जा रहा है। इस परियोजना में
बुजुर्गाें को उस मकान के जरिए आय प्राप्त होती है, जिसे
वह अपने आय व नौकरी के समय में बनाये होते हैं। यदि कोई बुजुर्ग कार्यमुक्त हो
जाता है या किसी प्रकार का पेंशन मिलता है तो यह उतनी मात्रा में नहीं मिलता, जितना कि एक बुजुर्ग को उस महँगाई के
समय में जरूरत पड़ता है, इसलिए उस समय तो शरीर भी साथ छोड़ देता
है। जिसके कारण दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। उस समय वृद्ध अपने बनाये मकान के
द्वारा अपनी सारी जरूरतों को पूरा कर सकता है, जिसे
हम रिवर्स मॉर्टगेज कहते है। इसके द्वारा वृद्ध अपने मकान को गिरवी रख कर लोन ले
सकता है और वह गिरवी रखने और लोन लेने के बाद भी वह उस मकान में रह सकता है जब तक
कि उसकी मृत्यु ना हो जाए। वर्तमान समय में इसका प्रचलन दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा
है।
वृद्धजनों
द्वारा भारत में रिवर्स मॉर्टगेज का लाभ लेने हेतु प्रक्रिया
वृद्धजनों के लाभ हेतु रिवर्स मॉर्टगेज
योजना का चलन भारत में 5 वर्ष से अधिक हो गया है, लेकिन
यह योजना अभी भी यहाँ बहुत ज्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ है। इस योजना के बारे में
बहुत से लोगों को तो पता भी नहीं है। वित्तिय विशेषज्ञ और एसकेपी सिक्योरिटीज के
अधिकारी बताते हैं कि हमारे देश में लोग सम्पत्ति को लेकर स्वभाव से संकोचित होते
हैं। वो जमीन, सोना और ब्याज में निवेश करते हैं लेकिन
घर और ज्वैलरी मॉर्गेज नहीं करना चाहते हैं। क्योंकि यहाँ के लोगों में यह एक
अंधविश्वास है कि यदि लोन लेते हैं तो बैंक कभी भी उनका घर या गहना जब्त कर सकती
है। इसलिए लोग इन सभी योजना पर भरोसा नहीं करते हैं। इसलिए यह योजना हमारे देश में
ज्यादा लोकप्रिय नहीं हो पा रही है। यदि हम होम लोन कि बात करें तो रिवर्स
मॉर्टगेज के यह बिलकुल विपरीत है, इसमें मकान मालिक, पैसों के बदले बैंक के पास घर रखता है, बैंक मकान के मौजूदा हालत के आधार पर
बाजार मूल्य के हिसाब से कीमत लगाता है। इसके बाद बैंक द्वारा तय की गई रकम को
सहमति के मुताबिक किस्तों में तब तक बुजुर्ग को देता है जब तक की मकान मालिक की
मृत्यु ना हो जाए। इस प्रकार मकान मालिक को जिसकी आयु 60 वर्ष से अधिक है उसे जीवन
पर्यन्त आय प्राप्त होता है। उसके साथ-साथ मकान मालिक को अपने घर में रह भी सकते
हैं, उन्हें घर भी नहीं छोड़ना पड़ता है। इस
प्रकार की सुविधा सरकारी बैंक रिवर्स मॉर्टगेज योजना उपलब्ध कराते हैं।
और जब मकान
मालिक की मृत्यु हो जाती है, तब बैंक उस मकान को अपने अधिकार में ले
लेता है। सरकारी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक, भारतीय
स्टैट बैंक ऑफ इण्डिया के दिल्ली जोन के रीजनल विजनेस ऑफिस के क्षेत्रीय प्रबन्धक
अमृतेश मोहन का कहना है कि यह उन बुजुर्गों के लिए बेहद उपयोगी है, जिसके पास सेवा मुक्त होने के बाद आय का
कोई साधन नहीं है अथवा किसी भी प्रकार का कोई नियमित आय नहीं प्राप्त होता है।
इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि लोन चुकाने की चिन्ता नहीं रहता और न घर छोड़ने
का और प्राप्त रकम को अपने आवश्यकता के अनुसार खर्च कर सकते है इससे वृद्धावस्था
में होने वाले विभिन्न खर्च जैसे- प्रतिदिन व्यय, स्वास्थ्य
व शरीर का ध्यान रखने हेतु आदि खर्च कर सकते है। इससे प्राप्त रकम का केवल शेयर
कारोबार या दूसरी सम्पत्ति खरीदने में नहीं कर सकते हैं। यह रकम सिर्फ बुजुर्गाें
को उनको आवश्यक खर्च जो वृद्धावस्था में जरूरी हैं, उनके
लिए दिया जाता है।
रिवर्स मॉर्टगेज का लाभ उठाने के लिए
आवश्यक योग्यता होनी चाहिए। इस योजना का फायदा वृद्ध अकेले या दोनों दंपत्ति एक
साथ ले सकते हैं। इसके लिए आवश्यक है कि रिवर्स मॉर्टगेज के लिए आवेदन करने वाले
का उम्र 60 वर्ष और दंपत्ति का उम्र 58 वर्ष से कम नहीं होना चाहिए। यदि दोनोें
दंपत्ति साथ में इस योजना का लाभ लेना चाहते हो तो जिस सम्पत्ति का रिवर्स
मॉर्टगेज ऋण लिया जा रहा हो, उस सम्पत्ति का मालिकाना हक उस ऋण लेने
वाले व्यक्ति के पास होना चाहिए और वही सम्पत्ति उसका आवास व निवास होना चाहिए। यह
योजना लेने के बाद दोनो दंम्पत्ती में से यदि ऋणी की मृत्यु हो जाती है तो उस
स्थिति में ऋणी का पार्टनर उस मकान में आजीवन रह सकता है, यह उसका मालिकाना हक होगा और यदि दोनों
की मृत्यु हो जाती है तो उस स्थिति में मकान को बैंक अपने अधिकार में ले लेता है और
यदि बैंक द्वारा लिये गये लोन को चुका दिया गया हो तो उस स्थिति में मकान पर
मालिकाना हक दम्पत्ति या ऋण चुकाने वाले का रहेगा।
रिवर्स मॉर्टगेज लोन की
स्वीकृति के समय बैंक यह भी देखता है कि मकान की अवधि कितने समय तक है एवं उसका
वर्तमान मूल्य कितना है। बैंक मकान की अवधि कम से कम आगामी 20 वर्ष तक होनी चाहिए
तभी बैंक उस मकान पर रिवर्स मॉर्टगेज लोन देगा, अन्यथा
मना कर देगा। अंतिम समय में यदि ऋणी या उसके पार्टनर द्वारा यदि बैंक का लोन चुका
दिया जाता है तो वह मकान उस ऋण का ही रहेगा, अंतिम
समय तक चाहे ऋणी की मृत्यु क्यों न हो जाए।
वृद्धजनोें
के लिए स्वास्थ्य बीमा योजना
मेडीक्लेम भारत की लगभग सभी बीमा कम्पनी
द्वारा मेडीक्लेम की योजना संचालित है। सामान्यतः इस योजना के अंतर्गत 18 से 60
वर्ष के आयु वर्ग तक के व्यक्तियों का बीमा किया जाता है। अल्प आय वालों में यह
योजना लोकप्रिय नहीं है। यही इस योजना की सबसे बड़ी विसंगति है कि 60 वर्ष के बाद
कोई बीमा प्रारम्भ नहीं किया जा सकता। यदि कोई बीमा 60 वर्ष से पहले से चल रही है
तो उसे निरन्तर रखा जा सकता है। यहां तक कि कोई व्यक्ति बीमा लेता है तो उसके
माता-पिता को जो कि बुजुर्ग हैं, वो भी बीमा से लाभान्वित नहीं हो सकते।
जबकि उनको ज्यादा आवश्यकता है, इस बीमा का। इसलिए सरकार को वृद्धजनों
के लिए बीमा योजना करने का प्रयास करना चाहिए ताकि वृद्धों को पर्याप्त मात्रा में
लाभ मिल सके।