Osho Biography । ओशो की जीवनी ।
आचार्य
Osho का वास्तविक नाम चंद्र मोहन जैन है। समय काल (11 दिसम्बर
1931 से 19 जनवरी 1990)
Osho को 1960 के समय आचार्य रजनीश के नाम से जाना जाने लगा। आगे
चलकर उनको भगवान श्री रजनीश के रूप मेें एवं अंत में Osho
ओशो के नाम से विख्यात हुए। वे भारतीय गुरू उपदेशक, दार्शनिक थे।
Osho
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स्वयं
ओशो कहते है कि ओशो शब्द कवि विलयम जेम्स की एक कविता ‘ओशनिक
एक्सपीरियंस‘ के शब्द ‘ओशनिक‘ से लिया गया है, जिसका
अर्थ है ‘सागर में विलीन हो जाना।
ओशो
का जन्म एक कपड़ा व्यापारी के यहां हुआ उनके 10 भाई बहनों में वे सबसे बड़े थे।
उनका जन्म भारत के मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के एक छोटे से गांव कुचवाड़ा में
हुआ था। उनके माता पिता श्री बाबूलाल और सरस्वती जैन, जो कि
तारणपंथी दिगंबर जैन थे। वे बचपन का अपना समय नाना नानी के घर पर बिताया 7 वर्ष के
बाद वे अपने माता पिता के यहां आ गये।
सरकारी
स्कुल में पढ़ने के दौरान वे ऐक डिबेटर के रूप में स्कुल में मशहुर हुये। वे प्रतिभाशाली
छात्र थे। वह
न तो नास्तिक है और न ही आस्तिक। उनका मानना है कि आस्तिकता और
नास्तिकता दोनों विश्वास पर आधारित हैं।
1951 में, जब वे 19 साल के थे, तब
उन्होंने हितकारिणी अकादमी में अध्ययन किया। वहां पर अपने अध्यापक से विवाद के
कारण उन्हें वह अकादमी छोड़ना पड़ा। फिर उन्होंने जैन कॉलेज, जबलपुर
में दाखिला ले लिया । वे कुछ समय के लिए आज़ाद हिंद फ़ौज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में भी हुए
थे । स्कुल में उन्हें केवल परीक्षा देने आने की छुट मिल गई थी। उन्होंने अपने
खाली समय में स्थानीय अखबार में एक संपादकीय सहायक के रूप में कई महीने बिताए। 1951 में, उन्होंने
जबलपुर में आयोजित होने वाले वार्षिक सर्व धर्म सम्मेलन (सर्व धर्म सम्मेलन) में
सार्वजनिक भाषण दिया।
आचार्य
रजनीश 1955 में D.N. जैन कॉलेज से ग्रजुऐशन पूरी की और फिर मास्टर डिग्री के
लिए सागर विश्वविद्यालय में एडमिशन लिया । आगे चलकर वे रायपुर के संस्कृत
विश्वविद्यालय में एक शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए। लेकीन वहां भी विवाद होने
के कारण उन्हें विश्वविद्यालय चेंज करना पड़ा। 1958 से, उन्होंने जबलपुर विश्वविद्यालय में लेक्चरर के रूप में
दर्शनशास्त्र पढ़ाया और 1960 में प्रोफेसर पद पर प्रमोट हुए।1966 में
एक लेक्चर के बाद, उन्होंने अपने प्रोफेसर पद से इस्तीफा दे दिया।
1970 के एक सार्वजनिक ध्यान कार्यक्रम में, ओशो
ने पहली बार डायनेमिक मेडिटेशन का अपना तरीका प्रस्तुत किया। फिर 1970 में वे बंबई
वर्तमान मुंबई चले गये। और उन्होने अपने शिष्यों को “नव संन्यास” में शिक्षा
दिक्षा दिया और आध्यात्मिक मार्गदर्शक बन गये। आचार्य रजनीश ने अपने विचारों में
सम्पूर्ण देश में रहस्यवाद, दार्शनिकवाद,
एवं धार्मिक विचारधारा का नया आयाम बताया ।वहां से वे
1974 में पुणे आकर अपने खुद की “आश्रम” की स्थापना की जिसके बाद
विदेशियों की संख्या बढ़ने लगी, जिसे आज ओशो इंटरनॅशनल मेडिटेशन रेसॉर्ट के नाम से जाना जाता
है.
उस
समय जनता पार्टी की सरकार थी । जनता पार्टी सरकार के साथ मतभेद के बाद 1980 में
ओशो “अमेरिका” चले गए और वह पहले भारत में और फिर अन्य देशों में रहते
थे, जिनमें मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका था, जहाँ
उन्होंने “रजनीशपुर” नामक ओरेगन में एक आध्यात्मिक केंद्र की स्थापना
की।
1985
में इस आश्रम में मास फ़ूड पॉइज़निंग की घटना के बाद यु एस ए से देश निकाला कर
दिया गया। 21 अन्य देशों से वे बैन होकर वापस भारत लौटे और पुणे के अपने आश्रम में
अपने जीवन के अंतिम दिन बिताये।
सेक्स
के संबंध में उनके विचार धारा की बहुत आलोचना हुई एवं इस प्रकार के ज्ञान देने की
शैली के कारण संयुक्त राज्य अमेरिका में,
उन्हें “सेक्स गुरु” के नाम से संबोधीत भी
किया ।
autobiography of
osho
भगवान रजनिश ने अपनी autobiography नहीं लिखी उनके दिये उपदेश को शिष्य एवं भक्तों ने उनकी आवाज की रिर्काडि़ग के माध्यम से किताबों एवं विडियों बनाकर उनके आध्यात्म ज्ञान
का विस्तार दुनिया में किया जा रहा है।
- त्रोत– विकिपीडि़या https://en.wikipedia.org/wiki/Rajneesh
wild wild country webseries
2016
में नेटफ्लिस में wild wild country नामक डाक्यूमेंटरी में आचार्य भगवान रजनीश ओशो के जीवन
पर आधारित बातों को बताया गया हैं। wild wild country के अंतर्गत बताया गया है कि –
एक
भारतीय आदमी था, जो एक ख़ास पोशाक और एक असामान्य टोपी पहनता था, जिसके
पास कई सारी फैंसी विदेशी कारें थी, जिन्हें वह अपने द्वारा निर्मित रजनीशपुरम में चलाया
करता था। , जहां हर कोई लाल रंग पहना था, जहां
कोई पैसे के लिए नहीं बल्कि ध्यान पर आधारित दुनिया के प्रेम में डूब कर काम करता
था, जहां परिवार,
संपत्ति या किसी भी धर्म के लिए कोई स्थान नहीं था, और
जहां हर कोई शाकाहारी था।
विवादित
ओशो
कई
अमीर शिष्यों या शिष्यों के समूह ने रोल्स रॉयस को गिफ्ट में दिया था जिनकी संख्या
लगभग 91 थी। जिस कारण वे मिडिया में चर्चा का विषय बन गये थे। ओशो की मृत्यु होने
के समय उनकी संपत्ती $ 1 बिलियन आकी गयी।
आशो
की मृत्यु का रहस्य
ओशो
रजनीश की मौत अभी भी एक रहस्य बनी हुई है क्या उनकी हत्या हुई थी या स्वयं अपनी
इच्छा मृत्यु लिया था । इसके बारे में आज भी संसय बना हुआ है।
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The Book of Secrets, Vols. I – V
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