भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी निवारण तन्त्र ! भूत-प्रेत हटाने हेतु शक्तिशाली यन्त्र एवं मन्त्र
भूत-प्रेत
बाधानाशक मंत्र
”ओम नमो आदेश गुरू को ओम अपर के या कट मेष खम्ब प्रति
प्रहलाद राख पाताल राखे पांव देवी जंघा राखे काली का मस्तक राखे महादेव जी कोई या
पिण्ड प्राण को छोड़े-छोड़े तो देवदानव भूत-प्रत-डाकिनी-शाकिनी गण्डा ताप तिजारी
जूड़ी एक पहरू देा पहरू सांझ को सबेरे को किया को कराया को उलट वाही के पिण्ड परे
इस पिण्ड की रक्षा श्री नरसिंह जी करे शब्द सांचा पिण्ड कांचार
फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा ” ।
विधि– सूर्य या चन्द्र
ग्रहण अथवा दीपावली की महानिशा में इस मंत्र को सिद्ध कर लिया जाये । सिद्ध के समय
पूजा,
प्रसाद,धूप, दूप,फूल, नैवेद्य आदि का ध्यान रखना चाहिए।
आवश्यकता होने पर इस
मंत्र से सात बार जल से अभिमंत्रित करके रोगी को वह जल पिला दें साथ ही बाधाग्रस्त
व्यकित को मोरपंख से मंत्रोच्चारण करते हुए सात बार झाड़ दें।
प्रेत दोष नाशक मंत्र
‘ओम नमो आदेश गुरू
को, लड़गढी सों मुहम्मद पठाण,चढया श्वेत
घोड़ा, श्वेत पलाण, भूत बांधि,
प्रेत बांधि, चौसठ जोगिनी बांधि, अड़सठ स्थान बांधि,बांधि,बांधि
रे चोखी तुरकिनी का पूत, बेगि बांधि, जोतू
न बांधे तो अपनी माता की शैयया पर पांव धरे,मेरी भक्ति गुरू
की शकित् फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा। ‘
विधि– यदि किसी को
भूत-प्रेत – जिन्न इत्यादि उपरी बाधा का रोग लग गया हो तो इस गण्डे को रोगी के
बांध देने से समस्त उपरी बांधाओं का नाश होता है। परन्तु ध्यान रखें कि यह
प्रयोग आपमजानों या साधारण मनुष्य के करने के लिए नहीं अपितु किसी आमिल या
तांत्रिक द्वारा ही सम्पन्न किया जाना चाहिए।
इया प्रयोग को करते समय
आमिल (तांत्रिक) को अपने पास दीपक जलाकर रखना चाहिए, लोबान की
धूनी देवे तथा सीप में थोड़ी मिठाई अवश्य रखें।
अब रोगी के सिर से लेकर
पांव की लम्बाई का सात रंग वाला डोरा माप कर लेंवें और उक्त् मंत्र को पढ़ते
हुए उस सूत के डोरे में 31 गांठे लगाकर गण्डा तैयार कर लें।
इस प्रकार से तैयार गण्डे
को उस रोगी के गले में पहना देवें । गण्डे के प्रभाव से रोगी की समस्त उपरी
बाधाएं दूर हो जाती हैं।
ध्यान रखें कि पृथक-पृथक
रोगी के लिए पृथक–पृथक ही गण्डा तैयार किया जाता है।
इस चमत्कारी गण्डे को प्राप्त करने के लिए सिद्ध केंनद्र से संपर्क करें।
भूत-प्रेतों को भगाने का
तन्त्र
अन्य भूतों की अपेक्षा
प्रेत अधिक शक्तिशाली और दुष्ट होता है। अगर आपके घर में लोग बार -बार बीमार
पड़ते हो,
स्त्री–पुरूष भयानक स्वप्न देखकर भय से
चौंक उठते हों, कोई स्त्री पागल की तरह अनाप-शनाप बकती हुई
भूत खेलती हो अथवा घर के छप्पर और हाते में ढेले, रोड़े
अथवा हड्डियों के टुकड़े बरसते हो, तो समझना चाहिए कि आपके
घर में भूतों के साथ ही प्रेत की भी बाधा है। ऐसी हालत में इस भयंकर भूत-प्रेत
बाधा दूर करने के लिए निम्नलिखित तन्त्र का प्रयोग कीजिए।
सर्वप्रथम एक मरे हुए
कौंवे को तलाश कर ले आइए। फिर मंगलवार को एक कच्चा बांस काटकर ले आइए। उस बांस को
करची सहित आंगन में गाड़ दीजिए और उसकी चोटी पर उस मरे हुए कौवे को टांग दीजिए।
बांस गाड़ने के बाद चोटी पर टांगने में कठिनाई न पड़े।
इसके बाद अमावस्या की आधी
रात को किसी कौवे के घोंसले से सात लकडि़यां, पांच पंख और कुछ
बीट ले आइए, फिर आंगन के अन्दर तिकोना होम-कुंड खोदकर उसमें
बेल, आम और नीम की सूखी लकडि़यां, चिड़चिड़ी
, धूप गुग्गल, जौ, तिल और घी के योग से निम्नलिखित काक -मन्त्र का पाठ करते हुए होम कीजिए।
ओम काक – पच्यै नम- स्वाहा
श्री फट्।
उपयुक्त मन्त्र का पाठ
करते हुए एक सौ आठ बार आहुतियां देकर होम-यज्ञ समाप्त किजिए। याद रहे , होत के समय कौवे के घोंसले की लकडि़यां अन्यान्य लकडि़यों में मिला
देंगे और पंख एवं बीट साकल में । इस प्रकार होम-यज्ञ समाप्त करने पर घर की सभी
प्रेत-बाधाएं दूर हो जाएंगी।
इस हवन होम की भस्म उठाकर
मिट्टी के पके हुए पात्र में हिफाजत से रख दीजिए। जब कभी कोई स्त्री भूत-प्रेत
खेले,
तो कुछ भस्म उसके सिर पर छिड़कर जरा-सी भस्म उसे चटा दिया कीजिए।
उसी समय उसके शरीर से भूत-प्रेत की बाधा दूर हो जाएगी।
भूत प्रेत भगाने का मंत्र
एवं विधि
किसी उल्लू पक्षी को
पकड़कर उसके दांए डैने का एक बड़ा पंख निकाल लें तथा उल्लू को छोड़ दें । फिर उस
पंख को पानी से धोकर रख लें। अगले दिन प्रात: काल स्नानादि से पवित्र होकर पूर्व
की ओर मुंह करके मद्मासन लगाकर बैंठे और पंख को अपने सामने रखकर निम्नलिखित मंत्र
का 1008 बार जप करें-
ओम नम: रूद्राय , नम: कालिकायै, नम: चंचलाय, नम:
कामाक्ष्यै, नम: पक्षिराजाय, नम:
लक्ष्मीवाहनाय, भूतप्रेतादीनां, निवारणं
कुरू कुरू ठं ठं ठं स्वाहा।
हर बार मंत्र जप पूरा होने
पर पंख के उपर एक फुंक मारते जाना चाहिए। अथवा गंगाजल छिड़कना चाहिए। इससे पंख
अभिमंत्रित हो जाता है। जब मंत्र जप पूरा हो जाए तो अभिमंत्रित पंख को लकड़ी की
किसी पेटी के भीतर रेशमी वस्त्र में लपेटकर रख दें तथा आवश्यकता के समय उसे
निकालकर प्रयोग में लाएं। जिस स्त्री अथवा पुरूष केा भूत-प्रेत आदि लगा हो, उसे अभिमंत्रित पंख द्वारा 108 बार झाड़ते समय उपरोक्त मंत्र का उच्चारण
करते रहने से भूत -प्रेत आदि दूर भाग जाते हैं। इस अभिमंत्रित पंख को तावीज में
बंद करके भुजा अथवा कंठ में धारण करने से भूत -प्रेत कभी पास नहीं फटकते ।
रविवार की अमावस्या को
कहीं से एक उल्लू पकड़ लाएं।
ओम पूर्ति कुरू कुरू स्वाहा ।
फिर उस उल्लू के दाएं
डैने तथा पूंछ का एक एक पंख नोचकर अपने पास रखे लें और उल्लू को उड़ा दें । दूसरे
दिन प्रात: काल स्नानादि से निवृत्त होकर कुश के आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर उल्लू
के दोनों पंखो का अपने सामने रख लें। अब धूप, दीप ,गंध , अक्षत एवं पुष्प आदि से उनका पूजन करके निम्निलिखित
मंत्र का 1008 बार जप करें।
ओम नम: शिवाय, नम: कमलासनाय, नम: लक्ष्मी वाहनाय, नम: मनोभिलाषा पूर्ति करणाय, मम दूष्ट ग्रहं शान्तं
कुरू कुरू स्वाहा।
इस विधि द्वरा 21 दिनों तक
नित्य प्रात:काल उल्लू के पंखों का पूजन तथा तंत्र का जप करें। फिर उन पंखो को
लाल रंग के किसी रेशमी कपड़े में लपेटकर अपनी दाई भुजा में बांध लें। इस प्रयोग से
कुछ ही दिनों में अभिचार कम्र, दुष्ट ग्रहों ओर भूत-प्रेत
का प्रभाव दूर हो जाता है तथा मनोभिलाषा पूर्ण होती है।
स्वयं को भूत-प्रेत से
मुक्त करने का मंत्र
ओम नमो भगवते रूद्राय नम:
कोशेष्वराय नामा ज्योति: पतंगाय नमो रूद्राय नम: सिद्धाय स्वाहा।
भूत बाधा से पीडि़त व्यकित
द्वारा स्वयं इस मन्त्र का अपनी सामर्थ्य भर अधिक से अधिक संख्या में जप करने
रहने से ही भूत-प्रेत बाधा दूर हो जाती है।
भूत-प्रेत हटाने हेतु
शक्तिशाली यन्त्र एवं मन्त्र
रवि, पुष्य, रवि मूल नक्षत्र अथवा किसी शुभ मुहूर्त में
नीचे दिये यन्त्र को अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम द्वारा बनाएं और चांदी
के तावीज में बंद करके 12500 बार मन्त्र का जप करें।
ओम ह्लीं अ सि आ उ सा सर्व
दुष्टान् स्तम्भय स्तम्भय मोहय मोहय जंभय जंभय अंघय अंघय वधिरय वधिरय मूकवत्
कारय कारय कुरू कुरू हृीं दुष्टान्त् ठ: ठ: ठ: ।
फिर तावीज को काले डोरे की
सहायता से दाएं बाजू पर धारण कर लें। यदि शत्रु आक्रमण करने आए तो तावीज पर बायां
हाथ रखकर उपर्युकत मन्त्र को पढ़ना प्रारंभ कर दें। शत्रु भाग खड़ा होगा, अथवा पराजित हो जाएगा। किसी के भूत, पिशाच, प्रेत व चुडैल की छाया पड़ी हो, तो तावीज को दाएं,
हाथ की मुट्ठी में बंद करके, मन्त्र -जप करें
और तावीज से झाड़ा दे दें, भूतादि का उपद्रव शांत हो जाएगा।
यन्त्र को बाजू पर बांधकर और मन्त्र-जप करके किसी यात्रा पर जाएंगे, तो मार्ग में किसी प्रकार की कोई दुर्घटना नहीं होती है।
भूत-प्रेत-पिशाच-डाकिनी
निवारण तन्त्र
ऐ सरसो पीला सफेद और काला।
तू चलना- फिरना भाई – सा चाला। तोहरे बाण से गगन फट जाय। ईश्वर महादेव के जटा
कटाय।डाकिया, योगिनी व भूतपिशाच । काला , पीला ,श्वेत, सुसांच। सब
मार-काट करूं खेत खरिहान। तेरे नजर से भागे भूत लै जान। आदेश देवी कामरू कामाक्षा
माई। आज्ञा हाडि़ दासी चण्डी दोहाई।
थोड़ी – सी सरसों लेकर
उपर्युकत मन्त्र का 3 बार उच्चारण करके भूत-बाधा से ग्रस्त रोगी पर फूंके और
उसमें से थोड़ी सी बचाकर अग्नि में डाल दें।
ओं नमो भसाणं वरसिने
भूत-प्रेतनां पलायनं कुरू कुरू स्वाहा।
इस मंन्त्र का प्रयोग
करने सेपहले इसकी सिद्धि आवश्यक है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए इसका 1000 जप
करना चाहिए। उसके बाद ही इसके प्रयोग का अधिकार प्राप्त होता है। भूत-ग्रस्त
रोगी को 7 बार झाड़ना चाहिए।
जीरा जीरा महाजीरा जिरिया
चलाय। जिरिया की शक्ति से फलानी चलि जाय। जीये तो रमटले मोहे तो मशान टले। हमरे
जीरा मन्त्र से अमुख अंग भूत चले। जाय हुक्म पाडुआ पीर की दोहाई।।
उपयुक्त मन्त्र को
थेाड़ा-सा जीरा 7 बार अभिमंत्रित कर रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अगिन
में डाल दें। रोगी को इस स्थिति में बिठाना चाहिए कि उसका धुंआ उसके मुख के सामने
लगे। इस प्रयो से भूत-बाधा की निवृत्ति होगी।
भूत सबको भई काहे आमन्द
अपार । जिसको गुमान से अमुको को भार। हमरे संइको पउं करो सलाम हजार। जाते होय भूत
आवेश किनार। जितनी मेथी छोर बड़े और आदि से अन्त- तिसके ध्रुम ग्रन्थ ते जल में
भूत भगते । अमुक अंग भूत नहीं, यहमेथो के लाय । उठी के आगे
रत क्षण मे जाय पराय। आलेश देवी कामरू कामाक्षा माई। आज्ञा हाडि़ दासी चण्डी की
दोहाई।
थोड़ी -सी मेथी को 7 बार
अभिमंत्रित करके रोगी के शरीर से स्पर्श कराएं और उसे अग्नि में डाल दें। रोगी को
इस स्थिति में बिठाना चाहिए कि उसका धुंआ उसके मुख के सामने लगे। इस प्रयोग से
भूत-बाधा की निवृत्ति होती है।
तह कुठठ इलाही का बान।
कूडूम की पत्ती चिरावन । भाग भाग अमुक अंक से भूत । मारूं धुलावन कृष्ण वर पूत।
आज्ञा कामरू कामख्या हारि दासी चण्डी दोहाई।
एक मुट्ठी भर धुल लेकर उसे
3 बार अभिमंत्रित करें और भूत-बाधा ग्रस्त रोगी पर फेंकें । इससे भूत-बाधा की
निवृत्ति होती है।
ओं नम: आदेश गुरू को
हनुमंत बीर बीर बजरंगी वज्र धार डाकिनी शाकिनी भूत प्रेत जिन्न सबको अब मार मार, न मारे तो निरंजनि निराकर की दोहाई।
इस मंत्र के प्रयोग से पहले
हनुमानजी की पूजा-उपासना करना आवश्यक होता है। इसका शुभारमभ शनिवार से करना चाहिए।
निरन्तर 21 दिन तक श्रद्धापूर्वक पूजा, उपासना, व 221 मन्त्र नित्यप्रति जप करने के पश्चात किसी चौराहे की कंकड़ी लें,
उस कंकड़ी ओर उड़द को 7 बार अभिमंत्रित करके रोगी को झाड़ा दें।
हल्दी गीरी बाण बाण को लिया
हाथ उठाय। हल्दी बाण से लीनगिरी पहाड़ थहराया
। यह सब देख बोलत बीर हनुमान। डाइन योगिनी भूत प्रेत मुंड कोटौ तान। आज्ञा कमरू कामाक्षा
माई। आज्ञा हाडि़ की चंडी की दोहाई।
थोड़ी सी हल्दी लेकर उसे 3
बार अभिमंत्रित करके अग्नि में छोड़ें ताकि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए । इसे
हल्दी बाण मन्त्र कहते हैं।
डाइन-चुड़ैल दोष की निवृत्ति
के लिए मन्त्र 1
बैर बैर चुड़ैल पिशाचनी बैर
निवासी। कहूं तुझे सुनु सवं नासी मेरी गांसी। वर बैल करे तूं कितना गुमान । काहे नाहीं
छोड़ती यह जान स्थान। यदि चाहै तुं रखना अपना मान । पल में भाग कलाश लै अपनो प्रान
। आदेश देवी कामरू कामाक्षा माई। आदेश हाडि़ दासी चण्डी की दुहाई।
विधि-थोडी-सी हल्दी लेकर उसे 3
बार अभिमंत्रित करके अग्नि में छोड़े ताकि उसका धुआं रोगी के मुख की ओर जाए। इसे हल्दी
बाण मन्त्र कहते हैं।
डाइन-चुड़ैल दोष की निवृत्ति
के लिए मन्त्र 2
बैर बैर चुड़ैल पिशाचनी बैर
निवासी। कहूं तुझे सुनु सवं नासी मेरी गांसी। वर बैल करे तूं कितना गुमान । काहे नाहीं
छोड़ती यह जान स्थान। यदि चाहै तूं रखना अपना मान। पल में भाग कलाश लै अपनो प्रान
।। आदेश देवी कामरू कामाक्षा माई। आदेश हाडि़ दासी चण्डी की दुहाई।
विधि-डाइन, चुड़ैल व प्रेतनी आदि से प्रभावित रोगी को स्वस्थ करने के लिए 21 बार इस
मन्त्र का उच्चारण करते हुए फूंक मारनी चाहिए। स्मरण रहे इस मन्त्र का प्रयोग इसे
सिद्ध करने के बाद ही करना उपयुकत् रहेगा। दशहरे में 108 बार मन्त्र जप से इसकी सिद्धी
हो जाती है।
चुड़ैल भगाने की विधि 3
बैर वर चुडैल पिशाचनी बैर निवासी।
कहूं तुझे सुनु सर्वनामी मेरी मांसी।
विधि- इस मन्त्र को दीपावली, होली, दशहरा या ग्रहण के दिन सिद्ध करना चाहिए। आवश्यकता
पड़ने पर मन्त्र पढ़कर रोगी पर फुंक मारें । यह क्रम तब तक करें जब तक कि रोगी चुड़ैल
बाधा से पूरी तरह मुक्त न हो जाए।