Shiv image, status, wishes
शिव चालीसा shri shiv chalisa । शिव चालीसा पढ़ना है । शिव
चालीसा हिंदी में
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शिव चालीसा शिव जी को पूजने
का तरीका एवं विधि है जिससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। शिव चालीसा का चालीस बार
प्रतिदिन पाठ करने से भगवान मनोकामना पूर्ण करते है एवं आप पर कृपा बनाये रखते है।
आप यदि शिव चालीसा पढ़ना है तो नीचे शिव चालीसा पढ़कर पुजा कर सकते हैं। शिव
चालीसा हिंदी में पढ़कर आप भगवान की कृपा प्राप्त कर करते हैं शिव चालीसा shri shiv chalisa के
फायदे आपके जीवन में बिगड़ी बात सुधार देंगें।
सूयौदय से पूर्व स्नान कर
श्वेत वस्त्र धारण करें, तत्पश्चात मृगचर्म या कुश के आसन पर बैठकर, भगवान शंकर की मूर्ति या
चित्र तथा इस शिव यंत्र को ताम्र पत्र पर खुदवाकर सामने रखें। फिर चंदन, चावल, आग के सफेद पुष्प,धूप,दीप,धतुरे का फल,बेल-पत्र तथा काली मिर्च
आदि से पूजन करके शिवजी का ध्यान करते हुए निम्न श्लोक पढ़कर पुष्प फुल चढ़ाये
।
मंत्र-
कर्पूर गौंर करूणावतारं, संसार सारं भुजगेंद्रहारम।
सहा वसंतं ह्रदयारविंदे, भवं भवानी सहितं नमामि।।
इसके बाद पुष्प अर्पण
करें फिर चालिसा का पाठ करें। पाठ के अंत में ओम नम: शिवाय मंत्र का 108 बार तुलसी
या सफेद चंदन की माला से जप करें। जप के साथ अर्थ की भावना करने से कार्यसिद्ध जल्दी
होती है।
अर्थ- समस्त मंगलों के
ज्ञाता गिरिजा सुत श्री गणेश की जयहों। मैं अयोध्यादास आपसे अभय होने का वर
मांगता हूं।
जय गिरिजापति दीनदयाला।सदा
करत संतन प्रतिपाला।
भाल चंद्रमा सोहत नीके ।
कानन कुण्डल नागफनी के ।।
अर्थ-दीनों पर दया करने
वाले तथा संतो की रक्षा करने वाले, पार्वती के पति शकर भागवान की जय हो। जिनके मस्तक पर
चंद्रमा शोभायमान है और जिन्होने कानो में नागफनी के कुण्डल धारण किए हुए हैं।
अंग गौर सिर गंग बहाए। मुण्डमाल
तन क्षार लगाए।
वस्त्र खाल बाघंबर सोहै।
छवि को देखि नाग मुनि मोहै।
अर्थ- जिनके अंग गौरवर्ण
हैं सिर से गंगा बह रही है , गले में मुण्डमाला है और शरीर पर भस्म लगी हुई है।
जिन्होने बाघंबर धारण किया हुआ है। ऐसे शिव की शोभा देख कर नाग और मुनि भी मोहित
हो जाते हैं।
मैना मातृ कि हवै दुलारी।
वाम अंग सोहत छवि न्यारी।
कर त्रिशुल सोहत छवि भारी।
करत सदा शत्रुन क्षयकारी।।
अर्थ- महारानी मैना की
दुलारी पुत्री पार्वती उनके वाम भाग में सुशोभित हो रही हैं। जिनके हाथ का त्रिशुल
अत्यंत सुंदर प्रतीत हो रहा है वही निरंतर शत्रुओं का विनाश करता रहता है।
नंदि गणेश सोहैं तहं कैसे।
सागर मध्य कमल हैं जैसे।।
कार्तिक श्याम और गणराऊ।
या छवि को कहि जात न काउ।
अर्थ- भगवान शंकर के समीप
नंदी व गणेशजी ऐसे सुंदर लगते हैं जैसे सागर के मध्य कमल।श्याम, कार्तिकेय और उनके करोड़ों
गणों की छवि का बखान करना किसी के लिए भी संभव नहीं है।
देवन जबहीं जाय पुकारा।
तबहिं दुख प्रभु आप निवारा।
कियो उपद्रव तारक भारी।
देवन सब मिलि तुतहिं जुहारी।।
अर्थ- हे प्रभु। जब जब भी
देवताओं ने पुकार की तब तब अपने उनक दुखों का निवारण किया है। जब तारकासुर ने उत्पात
किया तब सब देवताओं ने मिलकर रक्षा करने के लिए आपकी गुहार की।
तुरत षडानन आप पठायउ । लव
निमेष महं मारि गिरायउ।।
आप जलंधर असुर संहारा।
सुयश तुम्हार विदित संसारा।
अर्थ- तब आपने तुरंत स्वामी
कार्तिकेय को भेजा जिन्होनें क्षणमात्र में ही तारकासुर राक्षस को मार गिराया ।
आपने स्वयं जलंधर का संहार किया , जिससे आपके यश तथा बल को सारा संसार जानता हैं।
त्रिपुरासुर सन युद्ध
मचाई। सबहिं कृपा करि लीन बचाई।
किया तपंहिं भागीरथ भारी।
पुरव प्रतिज्ञा तासु पुरारी।
अर्थ- त्रिपुर नामक असुर
से युद्ध कर आपने देवताओं पर कृपा की, उन सभी को आपने बचा लिया। आपने अपनी जटाओं से गंगा की
धारा को छोड़कर भागीरथ के तप की प्रतिज्ञा को पूरा किया था।
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दनिन महं तुम सम कोई नाहीं, सेवक स्तुति करत सदाहिं।
वेद माहि महिमा तब गाई।
अकथ अनादि भेद नहिं पाई।
अर्थ- संसार के सभी दानियों
में आपके समान कोई दानी नहीं है। भक्त आपकी सदा की वंदना करते रहते हैं। आपके
अनादि होने का भेद कोई बता नहीं सका। वेदों में भी आपके नाम की महिमा गाई गई है।
प्रकटी उदधि मथम ते ज्वाला।
जरत सुरासुर भए विहाला।।
कीन्ह दया तहं करी सहाई, नीलकंठ तव नाम कहाई।
अर्थ- समुद्र- मंथन करने
से जब विष उत्पन्न हुआ, तब देवता और राक्षसे दानों की बेहाल हो गए। तब आपने दया
करके उनकी सहायता की और ज्वाला पान किया। तभी से आपका नाम नीलकंठ पड़ा।
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा।
जीत के लंक विभीषण दीन्हा।
सहस कमल में हो रहे धारी।
कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी।
अर्थ- रामचंद्रजी ने लंका
पर चढ़ाई करने से पहले आपका पूजन किय और विजयी हो लंका विभीषण को दे दी। भगवान
रामंचद्र ने जब सहस्त्र कमल के द्वारा पूजन किया तो आपने फूलों में विराजमान हो
परीक्षा ली।
एक कमल प्रभु राखेउ गोई।
कमल नैन पूजन चहं सोई।।
कठिन भकित देखी प्रभु शकर।
भये प्रसन्न दिये इच्छित वर।
अर्थ- आपने एक कमलपुष्प
माया से लुप्त कर दिया तो श्रीराम ने अपने कमलनयन से पूजन करना चाहा। जब आपने
राघवेंद्र की इस प्रकार की कठोर भक्ति देखी तो प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित वर
प्रदान किया।
जय जय जय अनंत अविनासी।
करत कृपा सबके घटवासी।
दुष्ट सकल नित माहि
सतावैं। भ्रमत रहौं मोहि चैन व आवैं।
अर्थ- अनंत और अविनाशी शिव
की जय हो,
सबके
ह्रदय में निवास करने वाले आप सब पर कृपा करते हैं। हे शंकरजी। अनेक दुष्ट मुझे
प्रतिदिन सताते हैं । जिससे मैं भ्रमित हो जाता हूं और मुझे चैन नहीं मिलता।
त्राहि त्राहि मैं नाथ
पुकरौं। यहि अवसर मोहि आन उबारौं।
ले त्रिशुल शत्रुन को
मारो। संकट ते मोहि आन उबारो ।।
अर्थ- हे नाथ ! इन
सांसारिक बाधाओं से दुखी होकर मैं आपका स्मरण करता हूं। आप मेरा उद्धार कीजिए। आप
अपने त्रिशुल से मेरे शत्रुओं को नष्ट कर, मुझे इस संकट से बचाकर भवसागर से उबार लीजिए।
मात-पिता भ्राता सब होई।
संकट में पूछत नहिं कोई।
स्वामी एक है आस तुम्हारी।
आय हरहु मम संकट भारी।
अर्थ- माता-पिता और भाई
आदि सुख में ही साथी होते हैं, संकट आने पर कोई पुछता भी नहीं। हे जगत के स्वामी । आप
पर ही मेरी आशा टिकी है, आप मेरे इस घोर संकट को दूर कीजिए।
धन निर्धन को देत सदाहीं।
जो कोई जांचे सो फल पाहीं।
अस्तुति केहि विधि करौं
तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।
अर्थ- आप सदा ही निर्धनों
की सहायता करते हैं। जिसने भी आपको जैसा जाना उसने वैसा ही फल प्राप्त किया। मैं
प्रार्थना स्तुति करने की विधि नहीं जानता। इसलिए कैसे करूं? मेंरी सभी भूलों को क्षमा
करें।
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शंकर को संकट के नाशन।
विघ्न विनाशन मंगल कारन।
योगी यति मुनि ध्यान
लगावें। नारद सारद शीश नवावें।
अर्थ- आप ही संकट का नाश
करने वाले समस्त शुभ कायौ को कराने वाले और विघ्नहर्ता हैं। योगीजन यति व मुनिजन
आपका ही ध्यान करते हैं। नारद और सरस्वती जी आपको ही शीश नवाते हैं।
नमो नमो जय नम: शिवाय। सुर
ब्रह्मादिक पान न पाय।
जो यह पाठ करे मन लोई। ता
पर होत हैं शुभु सहाई।
अर्थ- ओम नम: शिवाय
पंचाक्षर मंत्र का निरंतर जप करके भी देवताओं ने आपका पार नहीं पाया। जो इस शिव
चालीसा का निष्ठा से पाठ करता है। भगवान शंकर उसकी सभी इच्छाएं पूरी करते हैं।
ऋनियां जो काई हो अधिकारी।
पाठ करे सो पावन हानी।
पुत्र होन कर इच्छा कोई।
निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई।
अर्थ- यदि ऋणी कर्जदार
इसका पाठ करे तो वह ऋणमुक्त हो जाता है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा से जो इसका पाठ
करेगा। निश्चय ही शिव की कृपा से उसे पुत्र प्राप्त होगा।
पण्डित त्रयोदशी को लावैं।ध्यान
पूर्वक होम करावै।
त्रयोदशी व्र करै हमेशा। तन
नहिं ताके रहै कलेशा।
अर्थ- प्रत्येक मास की त्रयोदशी
को घर पर पण्डित को बुलाकर श्रद्धापूर्वक पूजन व हवन करना चाहिए। त्रयोदशी का व्रत
करने वाले व्यकित के शरीर और मन को कभी कोई क्लेश दुख नहीं रहता।
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावै। शंकर
सम्मुख पाठ सुनावै।।
जन्म जन्म के पाप नसावै।
अंत धाम शिवपुर में पावै।।
अर्थ- धूप , दीप और नैवेद्य से पूजन करके
शंकर जी की मूर्ति या चित्र के सामने बैठकर यह पाठ करना चाहिए। इससे समस्त पाट
नष्ट हो जाते है और अंत में शिव लोक में वास होता है अर्थात मुक्ति हो जाती है।
कहत अयोध्या आस तुम्हारी
। जानि सकल दु-ख हरहु हमारी।
नित्य प्रेम कर प्राप्त
ही , पाठ करो चालीस, तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीस।
अर्थ- अयोध्यादास कहते
हैं, हे शंकरजी। हमें आपकी
ही आशा है यह जानते हुए मेरे समस्त दुखों को दूर करिए। इस शिव चालीसा का चालीस
बार प्रतिदिन पाठ करने से भगवान मनोकामना पूर्ण करेंगे।
मंगसर छठि हेमंत ऋतु , संवत चौसठ जान, ।
असतुति चालीसा शिवहिं, पूर्ण कीन कल्याण।।
अर्थ- हेमंत ऋतु
मार्गशीर्ष मास की छठी तिथि संवत 64 में यह चालीसा लोककल्याण के लिए पूण हूई।
शिव चालीसा और आरती सहित
शिवजी की आरती shiv aarti lyrisc hindi
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जय शिव ओंकरा, हर जय शिव ओंकरा।
ब्रम्हा विष्णु सदाशिव अर्द्धागी
धारा। टेक।
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे।
जय।
दो भुज चार चतुभुज दस भुज ते
सोहे।
तीनों रूप निरखता त्रिभुवन
जन मेाहे । जय।
अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला
धारी।
चंदन मृगपद सोहे भोले शुभकारी।
श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर
अंगे।
सनकादिक ब्रम्हादिक भुतादिक
संगे। जय।
कर के मध्य कमण्डल चक्र त्रिशुल
धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालनकर्ता।
ब्रम्हा विषणु सदाशिव जानत
अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये से तीनों
एका ।जय।
त्रिगुण शिवजी की आरती जो कोई
नर गावें।
कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित
फल पावे। जय ।