naxalwad essay: नक्‍सलवाद क्‍या है। नक्सलवाद (naxallism) को कैसे खतम
कर सकते हैं।

 Naksalwad
par nibhandh in hindi 
। Essay on naksalwad in hindi

 


नक्सलवाद (naksalwad)‘‘आंतरिक विद्रोही हैं नक्सलवादी’’ जो
अतिवादी के रूप
मे उभरे लेकिन माओवाद का चोला पहनकर गुरिल्ला गुरिल्ला कार्यवाही को आधार मानकर मनो वैज्ञानिक युद्धकर्म का
संचालन कर रहे हैं तथा घातक
, व्यापक, विनाशक रूप अख्तियार कर चुका है।

नक्सलवाद (naksalwad) का उदय सर्वा हारा वर्ग की गरीबी, विपन्नता, असमानता और अन्याय को दूर करने के लिये हुआ। नक्सलवादी गांव में सामन्तों के शोषण
के
खिलाफ
कुछ छोटे किसानो ने सशस्त्र विद्रोह कर सामंतों को सजा दी (
25 मई 1967)


भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजुमदार
और कानू सान्याल
के नेवृत्व
में इस विद्रोह का रंग गहरा होता है।
चारू मजूमदार की चीनी नेता माओत्सेतुंग की
विचारधारा में गहरा विश्वास था। उनका
मानना था कि भारत के दलित तथा शोषित
लाेगों को माओ उग्रनीतियों के सहारे
क्रांतिकारी आंदोलन को जन्म देना चाहिये।
माओ साम्यवादी सिद्धांत शास्त्री थे।
वे क्रांतिकारी
, कवि, इतिहासकार, दार्शनिक तथा सर्वप्रथम गुरिल्ला युद्धकला के
क्षेत्र में पूर्णतावादी थे।
1970
में कूल नक्सली
आंदोलन की विफलता के पश्चात् माओवादी विचारों में बिखराव हुआ। आंध्र
प्रदेश में
कोडापल्ली सीतारमैया के नेतृत्व में PG का गठन हुआ तथा कन्हाई चटर्जी ने नेतृत्व में MCC बना। इसके बाद कई ग्रुप बने और नक्सलवाद
(
naksalwad) का
प्रसार हुआ।
आज देश का 40% भू-भाग और 35% जनसंख्या नक्सल प्रभाव में आ चुकी है।

 

नक्‍सलवाद क्‍या है। nakshalwad
kya hai

परिचय- नक्सलशब्द की उत्पत्ति पं. बंगाल के एक छोटे
से गांव
नक्सलबाड़ी से हुई तथा बंगाली भाषा में किसी व्यक्ति के घर या संपत्ति
हेतु बारी
शब्द का उपयोग किया जाता है।

नक्सलवाद (naksalwad) कम्यूनिस्ट क्रांतिकारियों के उस
अनौपचारिक आंदोलन का नाम है
, जो
भारतीय कम्यूनिस्ट आंदोलन के फलस्वरूप उत्पन्न हुआ। भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी
के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्यल
ने
1967 में सत्ता के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरूवात की थी। चारू मजूमदार
चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्सेतुंग के
बहुत बड़े प्रशंसकों में से एक थे।

माओ के विचारों के अनुसार ‘‘क्रांति बंदूक की नली से जन्म लेती है’’

नक्सली नेता राज्य सत्ता को हथियाकर चीन के
नमूने पर एक दलीय शासन पद्धति
कायम करना चाहते थे जैसा कि कुछ समय
बाद चारू मजूमदार ने उद्घाटित किया।

 

nakshalwad in hindi । nakshalwad kya hai

एक सशस्त्र क्रांति – चारू मजूमदार का मानना था
कि भारतीय मज़दूर
ों और  किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी
नीतियाँ जिम्मेदार हैं। जिसकी वजह से उच्च वर्गों
का शासन और कृषि तंत्र पर दबदबा हो गया
है और यह सिर्फ सशस्त्र क्रांति से
 खत्म किया जा सकता है। 1967
में नक्सल वादियों ने कम्यूनिस्ट क्रांतिकारियों की एक
अखिल भारतीय समन्वय समिति बनाई और
सरकार के खि़लाफ भूमिगत होकर
सशस्त्र लड़ाई छेड़ दी।

 


नक्सलवादी क्रांति के परिणाम:-

  • 1. ग्रामीण
    क्षेत्रों पर कब्जा करने के लिये भारी रक्तपात हुआ
    , देखते ही देखते कई जिलों में फैला गया।
  • 2. तब
    के मुख्यमंत्री सिद्धार्थ शंकर रे ने कठोर पुलिस कार्यवाही की।
  • 3. अनेक
    नक्सलवादी मारे गए
    , बचे हुए नक्सलवादी अन्य राज्यों में
    भाग गए 
    विशेष रूप से बिहार में और नक्सलवादी आंदोलनों
    को चलाते रहे।
  • 4. अपना
    प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने हेतु अपनाए गए हिंसा
    , हत्या
    के कारणों से प्रशासन
    से टकराते रहे।
  • 5. इन
    नक्सलवादी संगठनों में आपसी वर्चस्व के लिये भी संघर्ष होता रहा।
  • 6. अनेक
    राज्यों में प्रतिबंध लगने के कारण ये भूमिगत रहे।

लेकिन नाम बदलकर अपनी गतिविधियों को अंजाम देते
रहे।
आज
का नक्सलवादी आंदोलन देशी तथा विदेशी समर्थकों के संरक्षण का
परिणाम है। विदेशी शक्तियाँ अपनी
सामरिक तथा कूटनीतिक रणनीतियों के अनुरूप

भारतीय लोकतंत्र को अस्थिर करने का प्रयास
नक्सलवादी आंदोलन को सैन्य आर्थिक
तथा वैचारिक मद्द प्रदान कर रहे हैं।

नक्सलवाद (naksalwad) का जनक

चारू मजुमदार – एक परिचय मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी  के एक नेता चारू मजुमदार की कहानी अमीर से फकीरहो जाने की तरह हैं। 1918 में प्रगतिवादी भू-स्वामी परिवार में
जन्म लेने वाले चारू
मजू़मदार को  CM के नाम से  जाना जाता था।

नक्सलवाद का विकास क्रम-

  • 1968 – खेतिहर मजदूरों के मद्देनजर 1968 के
    एतिहासिक नक्सलवादी आंदोलन की
    नींव (मजबूत) रखी।

ये
वर्ग भेद के खिलाफ थे तथा पेटी बुर्जुवा राष्ट्रीय क्रांतिकारियों से प्रभावित
थे।

अनुशीलन
दल वालों ऑन बंगाल स्टूडेंट्स एशोसिएशन में शामिल हो गए।

  • 1937-38 में कॉलेज में निकलने के बाद क्रांग्रेस में शामिल तथा बीड़ी मजदूरों को संगठित किया।

इसी
के पश्चात् भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी में शामिल।

जलपाईगुड़ी
में खेतिहर मजदूरी के लिये काम करना शुरू किया।

वामपंथी
कार्यकर्ता के रूप में गिरफ्तारी वारंट से भूमिगत होने पर मजबूर।

  • 1943 के
    भीषण अकाल के दौरान छेड़े गए फसल जप्ती आंदोलन को मिली सफलता
    से उनका कद ऊँचा हो गया।
  • 1946 उत्तर
    बंगाल के तेमांगा के सशस्त्र आंदोलन में शमिल होने के बाद सशस्त्र
    संघर्ष के दृष्टिकोण के प्रति उनमें
    बदलाव आया।
  • 1948 चाय
    बागान के मजदूरों के लिये संघर्ष करना आरंभ किया। लेकिन इसी साल
    में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उन्हें 3 साल जेल में बिताने पड़े।
  • 1952 जलपाईगुड़ी
    की पार्टी  सदस्य लीला मजूमदार सेनगुप्त से
    विवाह। सिलीगुड़ी में
    रहकर दोंनो ने अपनी कार्यवाही संचालित की। उनकी गरीबी क्रांतिकारी भावनाओं को आहत न कर सकी। अब उन्होंने
    चाय बागान के मज़दूरों और
    रिक्शाचालकों को संगठित करने का कार्य किया।
  • 1956 भारतीय
    कम्यूनिस्ट पार्टी की पालघाट कांग्रेस में भारतीय स्थितियो  में सशस्त्र
    क्रांति की विचारधारा परवान चढ़ी।
  • 1962 भारत
    चीन युद्ध के दौरान् उन्हें फिर जेल जाना पड़ा। यह तो वक्त था जब
    भारत में वाम आंदोलन करवट बदल रहा था।
  • 1964-65 में उनका स्वास्थ्य खराब हो गया और इस समय उन्हें आराम की सलाह दी गई। यही वो वक्त था जब उन्होंने जेल
    में मार्क्स-माओ के विचारों का गुढ़
    अध्ययन किया।
  • 1964 कैडर
    के बीच सैद्धांतिक मतभेदों के चलते
    CPI में दो फाड़ हो गया तभी चारू मजूमदार ने CPI से जुड़ गए। लेकिन चुनावी राजनीति में शामिल होने
    और सशस्त्र संघर्ष स्थगित करने (जब
    तक भारत में क्रांतिकारी परिस्थितियाँ
    विकसित न हों जाएं) से असहमत थे।
  • 1965-67 के दौरान उनके लेख और भाषण जो बाद में एतिहासिक आठ दस्तावेजो के ,नाम से जाने गए और नक्सलवाद (naksalwad) के आधार बने।
  • 1967  Cpi ने बंगाल में कांग्रेस के साथ मिलकर
    युनाइटेड फ्रंट बनाकर सत्ता में
    भागीदारी ली। चारू और उनके साथियों ने
    पार्टी पर आरोप लगाया कि पार्टी
    ने क्रांति के साथ विश्वासघात किया है।

25 मई
1967 दार्जलिंग जिले के नक्सलवादी में खेत
मजदूरों का एतिहासिक आंदोलन हुआ
, जिसे
राज्य सरकार ने बुरी तरह कुचल दिया। लेकिन नक्सलवादी विचारधारा
ने न केवल अपने अस्तित्व की रक्षा की
बल्कि उसका फैलाव भी किया। लेकिन
तमिलनाडू, केरल, उत्तरप्रदेश,
बिहार, कर्नाटक, उडीसा, तथा बंगाल के नक्सलवादी कामरेडो ने CPI से नाता तोड़कर ऑल इंडिया कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ कम्यूनिस्ट रिवाल्यूशनरी कर
दिया।


  • 2 april 1969 को इस CPI :MLN के नाम से जाना गया। चारू मजूमदार इसके
    सहसचिव
    बने।
  • 1971 के
    बांग्लादेश युद्ध के दौरान् उनके उग्र वामपंथी नेता मारे गए।
  • 1972 में
    चारू भूमिगत हो गए। इस वक्त वे भारत के डवेज
    Most wantedअपराधी थे।
  • 16 July 1972 को कोलकाता में चारू को गिरफ्तार कर
    लिया गया। गिरफ्तारी के बाद लाल
    बाजार थाने में दस दिनों तक उन्हें
    किसी से मिलने नहीं दिया गया। उसी
    समय प्रताड़ना के चलते बंदीग्रह में
    उनकी मृत्यु हो गयी। उनकी मौत से
    CPI का क्रेंद्रिय अधिकरण भंग हो गया और
    संघर्ष परास्त हो गया।
  • 1951 में
    आंध्रप्रदेश से आए कोंडापल्ली सीतारमैया और गुगनपुर उड़ीसा के ख्याति
    प्राप्त नक्सली नागभूषण पटनायक इनकी
    पहली मीटिंग बस्तर में उड़ीसा के
    सीमा प्रांत में हुई थी। उस समय इनका
    उद्देश्य था कि इस वनांचल में पैसे
    वाले राजनीतिज्ञों एवं प्रशासकीय
    अधिकारियों का जो शोषण हो रहा है।
     

उसके विरूद्ध जन आंदोलन खड़ा कर नक्सलवाद (naksalwad) का फैलाव किया जाए।

नागभूषण राष्ट्रीय स्तर के संगठन में कानू
सान्याल व चारू मजूमदार के साथ जुड़
गया। अतः यह कार्य आंध्रप्रदेश का
कार्य जिम्मा हो गया।

तदुपरांत वहां से बस्तरीय सीमा क्षेत्र में
नक्सली गतिविधियों संचालित होती
रहीं। उस वक्त बस्तर के चार स्प्ठ
सदस्य के के राव
, पटनायक, बद्री व अल्पिसियश ये चारों बस्तर में नक्सलियों की आंध्रप्रदेश से आने व
जाने की सूचना

रिपोर्ट तैयार कर मध्यप्रदेश शासन को देते रहे। इस वक्त बस्तर में मालिक मकबूजा के
सागौन
, नमक के बदले चिरौजी, गांव के लोगों को बेगारी कराकर सड़क तालाब
बनाया जाना
, राजस्व वन और तलॉक के कार्यों में विभागों के नौकरशाही ने
बस्तर में बेहिसाब कमाई की और नेता कमीशन
खोरी करते रहे। शासकीय योजनाओं के लिये
आबंटित राशि प्रशासकीय नौकरशाही
और तात्कालीन नेताओं के जेबों में जाते
रहे। बस्तर जनपद सहकारी बैंक
, बुनकर संघ नेताआं के लूट का माध्यम था।

अति नक्सल प्रभावित 9 राज्यों के 55 जिलों की सूची:-

राज्य अति नक्सल प्रभावित जिले

1. आंध्रप्रदेश-वारंगल, करीमनगर, आदिलाबाद, खम्मम, मेडक, नालगोडा, निजामाबाद ओर महबूबनगर।

2. बिहार-औरंगाबाद, गया, जहानाबाद, रोहतास, नालंदा, पटना, भोजपुर, कैमूर।

3. झारखण्ड-हजारीबागलोहरदगा, पलामू, चतरा, गढ़वा, रांची, तामला, सिमेडगा, लातेहर, गिरीडीह, कोडरमा, बोकारो और धनबाद।

4. उत्तरप्रदेश-सोनभद्र, मिरजापुर, चंदौली

5. मध्यप्रदेश-बालाघाट और डिंडोरी

6. छत्तीसगढ़-बस्तर, दंतेवाड़ा, कांकेर, राजनांदगांव,
सरगुजा, जशपुर, गरियाबंद, कोरिया, कोण्डागांव,
सुकमा, धमतरी, महासमुंद
नारायणपुर, बीजापुर,

7. उड़ीसा-मलकानगिरी, गंजाम, कोरापुट, गजपति, रायगढ़ा, नवरंगपुरा और मयूरगंज

8. महाराष्ट्र-गढ़चिरोली, चन्द्रपुर, भंडारा और गोंदिया।

9. पं.
बंगाल-
बाकुंडा, मिदनापुर, पुरूलिया

  


नक्सलियों का उद्देश्य:-

नक्सलवादियों
ने पहले शोषण और अन्याय के खिलाफ हथियार उठाये थे
, तब वे दबे कुचले को न्याय दिलाना अपना मकसद समझते थे। लेकिन आज उनका उद्देश्य बदल गया है –

  • 1. मुख्यधारा
    का विरोध
    , लोकतांत्रिक प्रणाली से परे अपनी
    एकमात्र विचारधारा
    लागू करना।
  • 2. सत्ता
    पर काबिज होना।
  • 3. भयाक्रांत
    माहौल बनाकर वित्त पोषण प्राप्त करना।
  • 4. लेवी
    वसूलना।

नक्सली दर्शन पूर्णतया अधिनायक वादी एवं
कट्टरवादी है
, इसके सानिन्ध्य में जो भी आता है, वह सम्मोहन की प्रभावपूर्ण अवस्था में
नरसंहार करने तत्पर ही
उठता है। नक्सल दर्शन में जन कल्याण होगा यह सोंचना भ्रामक है।

 

नक्सलवाद (naksalwad) का प्रमुख कारण:-

1. नक्सलवाद
(
naksalwad)
उपेक्षित वर्ग द्वारा चलाया जा रहा आंदोलन है।

2. नक्सलवाद
(
naksalwad) का
प्रसार उन्हीं ईलाकों में अधिक है
, जहां
सामाजिक असमानता

एवं समस्यायें यथा गरीबी, बेरोजगारी, भूखमरी, अशिक्षा आदि की मौजूदगी है तथा इसके साथ-साथ इसका प्रसार अबुझ दुर्गम व
समाज की मुख्य धारा से 
कटे क्षेत्रों में अधिक है।

3. इस
आंदोलन से जुड़े लोंगों में दो प्रकार के लोग हैं- 

पहले वे जो बुद्धिजीवी सत्ता के ख्वाहिशमंद हैं, एव् संचालनकर्ता है, Brain Powerके स्त्रोत है।

दूसरे वे जो गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी और बुनियादी सुविधाओं में कमी की वजह से इनके द्वारा संचालित हो रहे
हैं।

4. नक्सलवाद
(
naksalwad)
उन्मूलन में बल प्रयोग की तुलना में वार्तालाप
, सहानुभूति
एवं
सामाजिक
व आर्थिक सुधारात्मक उपाय अधिक कारगर सिद्ध होगें।

क्योंकि ये उपाय लोगों का मनोबल बढ़ाने में
सहायक सिद्ध होंगे। जिससे
नक्सलवाद (naksalwad) की विषबेल को समूल नष्ट किया जा
सकेगा।
 

नक्सलवाद (naksalwad) (नक्‍सली उन्‍मुलन) को कैसे खतम कर सकते हैं।

 

नक्सवाद को समाप्त करने के लिये सरकार को तत्‍काल
उपायों के साथ
दीर्घकाल  उपायों को भी अमल
में लाना होगा।

‘‘तत्‍काल
उपाय ऐलोपैथिक उपचार माध्यम की तरह है
, जिसमें
समस्या
का
निदान कम समय में हो सकता है
, लेकिन
उपचार के दौरान् अन्य अंग के
प्रभावित होने की संभावना भी रहती है।
जबकि दीर्घकाल  उपाय 
होम्योपैथिक उपचार माध्यम की तरह है, जिसमें किसी प्रकार के दुःस्प्रभाव का
प्रश्न
नहीं
होता अपितु समस्या को समूल नष्ट किया जाता है।
’’

इसी प्रकार मनोवैज्ञानिक समाधान ऐसा दीर्घकाल  उपाय है जिसमें लोंगो को मानसिक तौर पर सुदृढ़ बनाना, आत्मविश्वास जागृत करना तथा
सैनिक/असैनिक
दोनों पक्ष का मनोबल उच्च करना होता है।

 

नक्‍सल वाद उन्‍मुलन करने के तत्‍काल योजना:-

  • 1. सभी
    पड़ोसी राज्यों की पुलिस और सुरक्षा बलों को मिलाकर एक या दो घेरे
    बनाए जाए जिससे नक्सली एक राज्य में
    घटनाओं को अंजाम देकर भाग ना सकें।
    निश्चित ही यह घेरा करीब 40 से 50 हजार किलो मीटर की परिधि में बनेगा। इतनी बड़ी संख्या में सुरक्षा बल संभवतः
    उपलब्ध न हो परंतु यह नीति कारगर सिद्ध हो 
    सकती है।
  • 2- नक्सलियों
    का सप्लाई लाईन काटा जाए
  • 3-योजना
    क्रियान्वयन के दौरान् कड़ी सुरक्षा व्यवस्था एवं नियमित
    निरिक्षण अत्यंत आवश्यक है ताकि योजना
    अधिकारी (भयमुक्त) होकर योजना का
    क्रियान्वयन कर सकें।
  • 3- नक्सली
    समस्या को राष्ट्रीय चुनौती के रूप में पेश किया जाए
  • 4- भयाक्रांत
    आम जनता में जोश का संचार होगा
    , जो
    नक्सलियों का
    जनाधार तोड़ने में सहायक होगा।
     
  • 5- मीडिया
    की भूमिका निर्णायक होती है
    , मीडिया
    की सकारात्मक पहल
    और उत्कृष्ट पहल नक्सलियों के मनोबल को ध्वस्त कर सकती है।
  • 6- पुलिस
    मुख्यालय और जिला पुलिस से जारी होने वाले नक्सल संबंधी समाचारों
    पर भाषा के संबंध में भी निगरानी रखना
    जरूरी है।
  • 7- शहरी
    नेटवर्क को तोड़ना।

 

नक्सलवाद (naksalwad) को कैसे खतम कर सकते हैं। दीर्घकाल उपाय –

  • लोकतंत्र
    की मजबूती सबसे जरूरी ।
  • जन
    शिकायतों पर हो तुरंत कार्यवाही ।
  • हरेक
    योजना को लागू करने और उस  
    पर नजर रखने के लिये गांव में एक जनभागीदारी
    समिति बनाई जाए जिसमें पंचायत
    पदाधिकारी और स्कूल के शिक्षक सहित
    विभिन्न लोकतांत्रिक सामाजिक समूहों के
    स्थानीय प्रतिनिधियों को शामिल किया
    जाए। पैसे संबंधित मंजूरी के लिये यह समिति
    फैसला करेगी तो गड़बड़ियों पर रोक लगेगी।
     
  • भ्रष्‍टाचार
    पर रोक – भ्रष्टाचार के मामले पकड़ने वाले आम नागरिकों को सार्वजनिक तौर पर
    सम्मानित किया जाऐ जिससे भ्रष्ट लोंगों
    के हौसले कमजोर होंगे
    , सम्मानित नागरिक का हौसला और आमजन का सरकार के प्रति
    विश्वास बढ़ेगा।
     



  • देश
    को विकसित बनाने में शिक्षित युवा का योगदान
    , अहम
    होगा
  • स्थानीय
    बेरोजगारों को योग्यतानुसार काम दिया जाए
  • प्रभावित
    क्षेत्रों में
    ITI और polytechnic संस्था स्थापित कर युवाओं को प्रशिक्षण दे
  • वन
    विभाग को वन रक्षा के लिये आदिवासियों का सहयोग लेना चाहिये
    , इससे वे नक्सलियों को सहयोग देने से
    पीछे हटेंगे और सरकार से भावनात्मक रूप से
    जुड़ेंगे।
  • अधिकारियों
    को कार्य व्यवहार में सरलता व लोकसेवक की छवि बनानी
    होगी। जन समिति बनाकर आकस्मिक जांच
    आवश्यक हैं।


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