डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय ! dr sarvepalli radhakrishnan biography in hindi
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जीवन परिचय ! dr sarvepalli radhakrishnan in hindi-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन(Sarvepalli Radhakrishnan) एक महान आदर्श, प्रशासक, शिक्षक, दार्शनिक एवं राजनितिज्ञ
थे। इन्हीं योग्यताओं के आधार पर वे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति बने
तथा भारत के उपराष्ट्रपति तथा राष्ट्रपति पद पर आसीन हुए। वे एक मनीषी, शिक्षक और सच्चे
शिक्षाविद् थे। यही कारण है कि उनके नाम पर 5 सितम्बर को आज भी शिक्षक दिवस मनाया
जाता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर 1988 को
मद्रास से 64 किलोमीटर उत्तर पश्चिम में तिरूपति में हुआ था। वे अपने पिता की
दूसरी सन्तान थे। 8 वर्ष की आयु तक वे तिरूपति में रहें। उनकी अधिकांश शिक्षा
ईसाई मिशनरी संसथाओं में हुई थी। कई वर्षों तक तिरूपति उसके बंगलौर, और अन्त में 4 वर्ष
मद्रास में रहे। 20 वर्ष की आयु में मदा्रस विश्वविद्यालय में एम ए की परिक्षा पास
किया और अप्रैल 1909 में मद्रास प्रसीडेन्सी
कालेज में दर्शन विभाग में अध्यापक नियुक्त हुए और वहीं 1916 में प्रोफेसन का पद
प्राप्त किया ।
dr sarvepalli radhakrishnan in hindi ! dr sarvepalli radhakrishnan information in hindi
- डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म-5 सितम्बर 1888
- डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की मृत्यु– 17 अप्रैल 1975, (86वर्ष) चेन्नई
- डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन क्या थें -राजनीतिज्ञ, दार्शनिक, शिक्षाविद,
- डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का धर्म-हिन्दू
- डॉ॰ सर्वपल्ली राधाकृष्णन की वाइफ-शिवकामु
- भारत के उपराष्ट्रपति बने-1952
शिक्षक दिवस क्यों मनाते हैं-
- राष्ट्रपति डॉ॰ सर्वपल्ली
राधाकृष्णन के जन्म दिन (5 सितम्बर) को प्रतिवर्ष ‘शिक्षक
दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। - इस दिन समस्त देश में भारत सरकार द्वारा श्रेष्ठ शिक्षकों को
पुरस्कार भी प्रदान किया जाता है।
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सर्वपल्ली राधाकृष्णन की जीवनी । dr sarvepalli radhakrishnan in hindi
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) नास्तिक नहीं थे और न वे
अनीश्वरवादी ही रहे। वे आस्तिक थे और उनका अनन्त शक्ति सम्मपन्न ईश्वर में
पूर्ण विश्वास था।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन दर्शनिक भी हैं। उनका
दार्शनिक चिन्तन अद्वैत वेदान्त दर्शन पर आधारित है और उनके शिक्षा दर्शन में
उपर वर्णित दार्शिनिकों की विचारधाराओं की झलक मिलती हैं ।
महान शिक्षाविद् होने के नाते भारतीय शिक्षा प्रणाली के
उपर उनका चिन्तन बहुत ही मौलिक है। प्राध्यापक एवं कुलपति रह चुकने के कारण उन्होंने
भारतीय शिक्षा प्रणाली के दोषों को निकट से देखा और समय समय पर अपनी पुस्तकों और
शोधपत्रों में भारतीय शिक्षा प्रणाली की समालोचना भी की।
शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन की
उपलब्धियां-
- वे निरन्तर उच्चतर पदों पर
आसीन हुए। - 1918 में वे मैसूर विश्वविद्यालय में दर्शन शास्त्र के
प्रोफेसन नियुक्त् हुये। - 1921 में कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध किंग जार्ज चेयर
ऑव मेण्टल ऐण्ड मॉरल साइन्स पद रिक्त हुआ जिसपर उनकी नियुक्ती हुई। उन्हें
यह पद जीवन भर के लिए दिय गया था। - 1931 से 36 तक
आन्ध्र विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में भी उन्होने अपने गुणों की प्रतिष्ठा
की । शिक्षा के क्षेत्र में उनके विचारों और अनुभवों के कारण उन्हें कई बार अखिल
भारतीय शिक्षा सम्मेलन का सभापति निर्वाचित किया गया था। - 1932
में वे एशिया शिक्षा सम्मेलन के सभापति हुये। भारतीय विश्वविद्यालय सुधार कमीशन
के प्रधान के रूप में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) संस्तुतियां
शिक्षा जगत में मौलिक देन के रूप में समाई हुई हैं।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन आधुनिक शिक्षा प्रणाली में
परिवर्तन चाहते हैं।
उनका कहना था कि आधुनिक शिक्षा प्रणाली मनुष्य का
सर्वागीण विकास नहीं करती। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक ऐसी शिक्षा के समर्थक है
जो मस्तिष्क को उनमुक्त करे, चारित्रिक विकास करें और ह्दय को कुण्ठारहित करके उसे विश्वबन्धुत्व
की ओर ले जायें।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का कहना है कि हमारी शिक्षा
ने हमें बौद्धिक बन्धनों से स्वतंत्र नहीं किया है। वह मस्तिष्क को उत्तेजित
तो करती है परन्तु तृप्त नहीं करती। हम कविता पढ़ते है, विडियो देखते हैं, नोवेल उपन्यास पढ़ते है
और समझ लेते हैं कि हम साक्षर हो गये। हम सुसंसकृत हो गये। पर यह केवल दिखावा हैं।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन द्वारा शिक्षा पर सुधार
कार्य । सर्वपल्ली राधाकृष्णन का शिक्षा में योगदान
पाश्चात्य शिक्षा ने यूरोपिय विज्ञान था प्रोद्योगिकी
का वरदान भारतीय शिक्षा को प्रदान किया। पाश्चातय शिक्षा में अनेक त्रुटियां तथा
निर्बलताये थीं। वेदों तथा उपनिषदों की प्राचीन शिक्षा व्यवस्था को समाप्त करने
का शरारतपूर्ण कुचक्र किया गया । शिक्षा के प्राचीनतम आदर्शो तथा उदे्श्यों को
समाप्त करने की साजिश की गयी। शिक्षा को धीरे धीरे एक व्यवसाय का रूप दे दिया
गया । वैदिक शिक्षाको लगभग समाप्त प्राय कर दिया गया। अंग्रेजी भाषा की प्रधानता
के कारण भारतीय वांगमय तथा भाषाओं को धक्का लगा। शिक्षा संस्थाओं से धार्मिक
शिक्षा को समाप्त कर दिया गया।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) ने इन त्रुटियां में बदलाव किया
तथा ऐसी शिक्षा व्यवस्था का निरूपण किया जो भारत की जमीन को छूती हुयी प्रत्येक
भारतीवासी की शिक्षा बने।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दर्शन । सर्वपल्ली राधाकृष्णन के विचार-
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक आदर्श शिक्षक, दार्शनिक, एवं मौलिक चिन्तक थे। उन्होंने
अपनी पूर्व काल की शिक्षा की परिस्थितियों का गहरा अध्ययन किया । भारतीय दर्शन
में वे गहरी अर्न्तदृष्टि रखते थे। उनके ग्रन्थों में दो भागों में भारतीय दर्शन
नामक एक ग्रंथ विश्व में समादृत हैं। उनके दर्शन में सर्वागीण दृष्टिकोण , समन्वय, जनतंत्र का समर्थन, मानवतावाद तथा विशेष रूप में
अन्तर्राष्ट्रीयतावाद आदि तथ्य मिलते है। इसलिये उनको आधुनिक युग में मानवचेतना
का प्रतिनिधि दार्शनिक कहा जाता है।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को वर्तमान शिक्षा प्रणाली
पर तीन आरोप लगाये। –
- यह मानव आत्मा का संकुचन करती है और विद्यार्थी में
सृजन शीलता को कुण्डित करती है। - वर्तमान शिक्षा प्रणाली के द्वारा विद्यार्थी कोयह पता
नहीं चलता कि सबसे अच्छा चिन्तन क्या है? - वर्तमान शिक्षा प्रणाली स्वतंत्र चिन्तन का विकास
नहीं करती।
इस प्रकार का विचार डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को स्वत:
अध्ययन द्वारा प्राप्त हुआ तथा तत्कालीन विभिन्न परिस्थितियों ने उनके
असंतोष को प्रकट किया ।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नारी सम्मान । सर्वपल्ली राधाकृष्णन का दर्शन–
नारियों के प्रति राधाकृष्णन के मन में असीम उदारता का
भाव था । वे कहते थे जो देश और राष्ट्र स्त्रियों का आदर नहीं करते वे कभी बड़े
नहीं हो पाये हैं जो न भविश्य में कभी बड़े होंगे। शक्तिपूजक तो वही है जो यह
जानता है कि ईश्वर में सर्वव्यापी शक्ति है। और उसी शक्ति को वह स्त्रियों में
प्रकट रूप में देखता है। स्त्री शिक्षा की आवश्यकता का उन्होने स्वीकार किया
है। विधवा विवाह के प्रति उन्होंने ने तो सहानूभूति दिखलाई है और न उनकी निंदा की
किन्तु बहुपत्नी प्रथा के विषय में उन्होंने काहा है कि भारत में किसी भी कारण
तलाक की व्यवस्था नहीं थी किन्तु यदि 14 वर्ष के वैवाहिक जीवन के पश्चात भी परिवार
में संतान न हुई तो पत्नी की सहमति से पति दूसरा विवाह कर सकता था। किन्तु यदि वह
आपत्ति करती तो वह विवाह नहीं कर सकता था।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (Sarvepalli Radhakrishnan) ने आदर्श नारियां की कल्पना की और कहा कि ” हम भारत की आवश्यकता के लिए
महान निर्भीक नारियां तैयार करेंगे , नारियां जो संघ मित्रा , लीला, अहिल्याबाई और मीराबाई की
परम्पराओं को चालू रख सके नारियां जो वीरों की माताएं होने के योग्य हों। इस प्रकार
वे पवित्र चरित्रवान आत्मयोगी और शकितशली नारियां की भारत देश में आवश्यकता समझते
थें।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन राजनिति । sarvepalli radhakrishnan ka jeevan parichay–
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन पूर्व में न दार्शनिक थे और न
ही राजनीतिज्ञ। राजनीति मेंउनका कोई विश्वास नहीं था। उन्होंने राजनीति में कभी कोई
भाग नहीं लिया यद्यपि उनकी विद्या के कारण उन्हें राजदूत बनाया गया और बाद में उपराष्ट्रपति एवं राष्ट्रपति हुए।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा है कि –
स्वामी विवेकानन्द के जीवन ओर उपदेशों ने हमें आजादी के
इस नये युग के लिए तैयार किया है। उनसे हमकों यह शिक्षा मिलती है कि हाल में हमने जो
आजादी हासिक की है उसे हम अच्छे से अच्छे तरीके से कैसे पुष्ट करें।
जिस समय राष्ट्र उदासीनता, निष्क्रियता और निराशा में
डूबा हुआ था, उस समय राधाकृष्णन ने शक्ति तथा निर्भयता के सन्देश की
गणना की। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन लोगो को शक्तिशाली बनने की प्रेरणा दी। उनके दार्शनिक
विचार ही भारतीय राष्ट्र की वसीयत हैं।
डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग-
नेहरू सरकार ने परिषद और बोर्ड की सिफारिश को स्वीकार करके
4 नवम्बर 1948 को डॉ राधाकृष्णन की अध्यक्षता में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की
नियुक्ति की। अध्यक्ष के नाम पर इस आयोग को राधाकृष्णन कमीशन भी कहा जाता है। 18
अध्यायों व 747 पृष्ठों वाले इस आयोग का रिपोर्ट 25 अगस्त 1949 को सरकार की सेवा
में प्रस्तुत किया गया । इस रिपोर्ट को पढ़ने से हमें अपनी मूल सांस्कृतिक परम्पराओं
का भी ज्ञान होगा और युग युग का ज्ञान भी होगा। इस आयोग ने छात्रों से तथा समाज देश
और संसार से बड़ी बड़ी आशाए प्रकट की। – शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे ज्ञान की खोज
करें, मानव जीवन
का सार जाने, राष्ट्रीय विरासत में योग दें अपना आध्यात्मिक विकास करे, सभ्यता और संस्कृति का पोषण
करें, सामाजिक एकता
को बनाये रखें ।
विश्वविद्यालय शिक्षा का परीक्षण करने के लिए जितने भी आयोगों
और समितियों की नियुकित हुई उन सब में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग को सर्वश्रेष्ठ
स्थान प्रदान किया गया । राष्ट्रपति डा राजेन्द्र प्रसाद ने आयोग के कायौं की प्रशंसा
की और कहा देश की वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आधारभूत परिवर्तन की आवश्यकता का अनुभव
यह आयोग कराता है। यह शिक्षा संबंधी समस्याओं की विवेचना करता है।
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