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छत्तीसगढ़ में जनजाति आंदोलन 

छत्तीसगढ़ में जनजाति आंदोलन Tribal Movements in chhattisgarh हलबा विद्रोह 1774 भोपाल पट्टनम संघर्ष परलकोट विद्रोह तारापुर विद्रोह मेरिया विद्रोह लिंगा


छत्तीसगढ़ में जन‍जाति बहुल क्षेत्र बस्‍तर है बस्‍तर का इतिहास समृद्ध रहा हैं। जनजातियों की संस्‍कृति में कोई हस्‍तक्षेप या उन के सादगी
भरी दिनचर्चा में कोई गलत नीति थोपता है तो आदिवासी जनजाति  उसका विरोध करते हैं।
 यहां पर
हलबा विद्रोह से लेकर
भूमकाल विद्रोह घट चुके हैं बस्‍तर वन क्षेत्र होने के कारण
यहां के आदिवासीयों का अपने प्रकृति से अनुठा लगाव है यहां के विद्रोह का क्रम इस
प्रकार हैं-

  • हलबा विद्रोह 1774
  • भोपाल पट्टनम संघर्ष
  • परलकोट विद्रोह
  • तारापुर विद्रोह



  • मेरिया विद्रोह
  • लिंगागिरि विद्रोह
  • कोई विद्रोह
  • मुरिया विद्रोह
  • भूमकाल विद्रोह 1910

हल्‍बा विद्रोह Halba vidroh-

समय-1774 से 1777

स्‍थान-जगदलपुर डोंगर क्षेत्र

क्‍या है हल्‍बा विद्रोह-

राजा दलपतदेव जगदलपुर के राजा हुआ करते थे उनकी पटरानी
का पुत्र अजमेंर सिंह एवं बड़ी महारानी के बड़े पुत्र दरियादेव के मध्‍य उत्‍तरा‍धिकार
के लिए युद्ध हुआ।

इसमें अजमेर सिंह जिता वह 1774 में राजा बना। दरियादेव
जैपुर के राजा विक्रमदेव
, नागपुर भोंसला शासन एवं अंग्रेज जॉनसन से मिलकर गुप्‍त
संधि कर लिया।

अजमेंर से युद्ध शुरू हुआ अजमेर हारा वह जगदलपुर भागा।

दरियादेव सिंहासन पर बैठा। इससे परेशान होकर हल्‍बा समाज
ने  विद्रोह कर दिया।

लम्‍बे संघर्ष के बाद अजमेर सिंह पुन : राजा बना।

दरियादेव जैपुर राजा के यहां शरण लेकर जैपुर राजा से
संधि कर राजा को 5 गढ़ देने की बात किया- कोटपाड़
, चुरूचुंडा, पोडागढ़, ओमरकोट, रायगढ़ा
का देवालय। साथ ही मराठा शासन के त्रयंबक अवीर राव से संधिपत्र मे हस्‍ताक्षर कर
आगे बस्‍तर को मराठा में शामिल करने की भी बात कही।

इस प्रकार अंत में अंग्रेज से भी मिलकर  अजमेर से युद्ध किया। अजमेंर जगदलपुर छोड डोंगर
की ओर भागा। वहां अजमेर सिंह की हत्‍या कर दिया गया। और हल्‍बाओं की नरसंहार (1776
में) किया गया।

वादा के अनुसार दरियादेव कोटपाड़ संधि कर मराठा(भोंसला)
में शामिल हो गया।

भोपाल पट्टनम का संघर्ष Bhopalpatnum ka
sanghars-

समय-1795

स्‍थान– दक्षिण बस्‍तर (वर्तमान बीजापुर)




क्‍या है भोपाल पट्टनम का संघर्ष- 

इस संघर्ष में किसी
प्रकार का कोई युद्ध या विद्रोह नहीं हुआ।

कैप्‍टन ब्‍लंट जमींदार (भोपालपट्टनम) के यहां जाना
चाहता था।

गोंडो ने हमला कर बस्‍तर से इंद्रावती नदी पार नही करने
दिया।

इस प्रकार कैप्‍टन ब्‍लंट वापस चला गया।

परलकोट का विद्रोह Paralkot ka vidroh

समय1824

स्‍थान– उत्तर पश्चिम बस्‍तर (पखांजुर क्षेत्र) कांकेर

परलकोट सबसे पुरानी जमींदारी क्षेत्र था जो कि कोटरी
निबरा गुडरा नदी के संगम में स्थित है

परलकोट जमींदार का उपाधि – भुमिया था।

पं केदार नाथ के अनुसार वहां का जमींदार माडि़या गोंड
था।

डॉ वाल्‍यार्णी शोध के अनुसार जमींदार हल्‍बा जाति का
था।

क्‍या है परलकोट का विद्रोह- 

मराठों एवं अंग्रेजों की
शोषण नीति से अबुझमाडि़या जनजाति लोग तंग आ चुके थे1 विरोध करनें के लिए गेंदसिंह
24 दिसम्‍बर 1824 को परलकोट में एकत्रित हुए।

उन्‍होंने मराठों की रसद लूट लिया। धावड़ा वृक्ष टहनि को
विद्रोह का संकेत चिन्‍ह बनाया गया। पत्ती सुखने से पहले क्रांतिकारियों के पासे
जाने की हिदायत दी जाती थी। यह सारी प्‍लांनिंग रणनीति घोटूल में किया जाती थी।

मराठों एवं अंग्रेजो में दहशत फैल गयी। इस कारण मिस्‍टर
एगेन्‍यु 4 जनवरी 1825 को पुलीस अधीक्षक केप्‍टन पेव के नेतृत्‍व में सेना का गठन
किया गया।

विद्रो‍हियों ने छापामार युद्ध प्रणाली का प्रयोग किया।

10 जनवरी 1825 को मराठा एवं अंग्रेजों ने परलकोटा में
घेरा बं‍दी कर गेंद सिंह को गिरफ्तार कर 20 जनवरी 1825 को गेंद सिंह को फांसी उनके
महल के सामने दी गई।

गेंद सिंह बस्‍तर का नहीं सम्‍पूर्ण छत्तीसगढ़ का प्रथम
शहीद माना जाता हैं।

तारापुर का विद्रोह Tarapur ka vidroh

समय1842-54

स्‍थान-जगदलपुर से 80 किमी दक्षिण पश्चिम परगना में।

क्‍या है तारापुर का विद्रोह-

नागपुर भोंसला के आदेश पर
तारापुर परगने का कर बढ़ा दिया गया। जिसके कारण बस्‍तर क्षेत्र में दलगंजन सिंह
मांडी आदिवासी के साथ मिलकर कर कम करने व्रिद्रोह शुरू कर दिया गया । दलगंजन सिंह
तारापुर के प्रशासक थे।

वहां के दीवान जगबंधु को हटाने का भी निर्णय लियागया।
इसकारण आदिवासीयों ने दीवन को 1 दिन कैद कर लिया।

भूपालदेव जो कि बस्‍तर के राजा थे उनके हस्‍तक्षेप के
कारण दीवान को रिहा कर दिया गया।

दीवान गुस्‍से में आकर नागपुर सेना बुलाकर आदिवासी पर
हमला कर दिया । दलगंजन को जेल में डाल दिया गया।

6 माह कैद केबाद नागपुर के मेजर विलयम्‍स ने जांच के
दौरान उन्‍हें रिहा कर दिया। जगबंधु दीवान को हटाया गया।

आदिवासी की असन्‍तोष दूर हुई एवं नया कर लागू।

मेरिया विद्रोह Meriya vidrohe

समय-1842-1863

स्‍थानदंतेवाड़ा

क्‍या है मेरिया विद्रोह- 



दंतेश्‍वरी मंदिर में प्रचलित
नरबलि संस्‍कार पर विद्रोह
(मेरिया-नरबलि)

ब्रिटिश सरकार ने बस्‍तर राजा भूपालदेव को मेरिया प्रथा
को समाप्‍त करने का आदेश दिया।। इस कार्य को करने के लिए नागपुर भोंसला राजा  ने सुरक्षा सेना को 22 वर्षेां के लिए मंदिर
में नियुक्‍त किया।

इस सेना को देखकर आदिवासी बाहरी हमला समझ कर विद्रोह कर
दिया।

इस घटना के कारण अग्रेजों ने तत्‍कालीन दिवान दलगंजन को हटाया।
एवं वामन राव को नया दिवान बनाया गया।

वामन राव रायपुर तहसीदार शेरखां को नियंत्रण के लिए
नियुक्‍त किया गया।

स्‍थानीय आदिवासी हिड़मा मांझी द्वारा सेना को हटाने की
मांग कि गयी।

वामनराव एवं शेरखां ने आदिवासी पर जुल्‍म किया। घरो को
जलाया गया। महिलाओं का यौग शोषण कियागया। ……..पूरी कहानी विस्‍तृत से पढ़े

इस विद्रोह को अंग्रेजो ने दबा दिया। इस विद्रोह के कारण
अंग्रेज हमेशा के लिए अंग्रेज के शत्रु बन गये।

लिंगागिरी का विद्रोह Lingagiri ka vidroh-

समय1856-57

स्‍थान– बीजापुर के भोपालपट्टनम जमींदारी के लिंगागिरी
ताल्‍लुका क्षेत्र में।

नेतृत्‍वकर्त्ता- धुर्वाराम तालुकेदार और दोरला आदिवासी।

क्‍या है लिंगागिरी का विद्रोह- 

ब्रिेटिश शासन के दमन
नीति का पालन राजा भैरमदेव एवं दीवान दलगंजन सिंह ने शोषण व दमननीति शुरू कर दिया।

आदिवासी परेशान होकर धुर्वाराम (तालुकदार) के नेतृत्‍व
में विद्रोह शुरू किया गया।

3 मार्च 1856 को चिन्‍तलनार में अंग्रेजों एवं धुर्वाराम
के मध्‍य युद्ध हुआ।

धुर्वाराम को गिरफ्तार कर 5 मार्च 1856 को फांसी दे दी गई।

  • धुर्वाराम विद्रोह को बस्‍तर का महान मुक्ति संग्राम
    कहते हैं।
  • धुर्वाराम बस्‍तर का दूसरा शहीद था। प्रथम- गेंदसिंह था।
  • धुर्वाराम विद्रोह-1857 महान क्रांति के एक वर्ष पहले
    शहीद हुआ । द्वितीय शहीद।

कोई विद्रोह KOI VIDROH-

स्‍थान– दक्षिण बस्‍तर

समय-1859

क्‍या है कोई विद्रोह-

 वन रक्षा हेतु आन्‍दोलन, किया
गया। कोई (दोरली आदिवासी) वनों एवं पहाड़ी में निवासरत करने वाली आदिवासी प्रजा
थी।

नेतृत्‍व कर्ता– नागुल दोरला फोतकेल का
जमींदार………विस्‍तृत में पढ़े

कोई विद्रोह बस्‍तर का पहला विद्रोह था जिसमें अंग्रेजों
ने अपनी हार मानी और विद्राहियों के साथ समझौता किया।

मुरिया विद्रोह Muriya vidroh‑

बस्‍तर का स्‍वाधीनता संग्राम

समय-1876

स्‍थान-बस्‍तर क्षेत्र में

कारणबस्‍तर में ब्रिटिश द्वारा भूराजस्‍व में वृद्धि ।

अंग्रेजों का  राजा भैरमदेव के व्‍यक्तिगत जीवन में हस्‍तक्षेप

तत्‍कालीन दीवान
गोपीनाथ और नौकरशाही का आदिवासियों पर जुल्‍म ।

अंग्रेजों की फुट डालो शासन करो नीति ।

अंग्रेज मुंशी द्वारा आदिवासियों का शोषण।

बेगारी की प्रथा और मांझियों के अधिकारों में कमी।

क्‍या है मुरिया विद्रोह-




 जगदलपुर के मारेंगा राजा
भैरमदेव को प्रिंस ऑफ वेल्‍स को सलामी देने बम्‍बई जाना था। लेकिन मुरियाओं ने उन्‍हें
रोकने की कोशिश की क्‍यों कि उनकी गैर हाजरी में दिवान जुल्‍म करेगा यह जानकर।

उन पर दिवान ने गोली चलाने का आदेश दिया और 18 आदिवासि
गिरफ्तार किए गए।  कुरंगपाल में 500 मुरिया
आदिवासियों ने उन्‍हें रिहा करवाया।

राजा भैरमदेव के आदेश पर आरापुर के पास गोली चलाने का
आदेश दिया गया जिसमें 6 मुरिया मारे गए। इस प्रकार विद्रोह और बढ़ गया।

विद्रोह चिंह में आम वृक्ष की डालिया का प्रयोग। 3000से
5000 एकत्रित हुए। 2मार्च 1876 में काला दिवस मनाया गया।

जगदलपुर महल को घेरा गया। महल में दीवान गोपीनाथ ने
सिरोंचा ब्रिटिश अधिकारी को गोपनीय तरीके से पत्र भेजा । इसप्रकार उसने अपनी जान
बचाई।

मई 1876 में अंत: सिरोंचा डिप्‍टी कमीश्‍नर मैक जार्ज, रायपुर,जैपुर, विशाखापटनम,सेना
द्वारा मिलकर विद्राहियों को पूर्ण रूप से दबाया।

मुरिया दरबार- 

8 मार्च 1876 में मैक जार्ज जगदलपुर में आये

असन्‍तोष आदिवासियों को खुश करने।

मुरिया दरबार के माध्‍यम से सौगात दिया- अनेक प्रशासनिक सुधार

नया 10 वर्र्षीय भूराजस्‍व बन्‍दोबस्‍त लागू।

पहाड़ी क्षेत्र में पेछा, मैदानी
-गायला
, खालसा क्षेत्र- दीवान, नेगा तथा
थानेदार को भू राजस्‍व वसूली अधिकृत किया गया।

दीवान गोपीनाथ कपड़दार को बन्‍दी बनाकर सिरोंचा भेजा।

भूमकाल विद्रोह Bhumkal vidroh-

समय1910

स्‍थान– सम्‍पूर्ण बस्‍तर में।

नारा– बस्‍तर,
बस्‍तर वासियों का है।

नेतृत्‍व कर्ता– गुंडाधूर

भूमकाल का अर्थ– भुमक अथवा भूकम्‍प

क्‍या है भूमकाल विद्रोह- 

आदिवासी बस्‍तर में मुरिया राज
स्‍थापित करना चाहते थे।

कारण– अंग्रेजों द्वारा सत्‍ता राजा………विस्‍तृत रूप में पढ़े

निष्‍कर्ष– विद्रोह का दमन अंग्रेजो ने किया।

दीवान बैजनाथ पंडा को हटाया गया।

ब्रिटिश शासन की निवं हिल गई।

अंग्रेजों द्वारा आदिवासी संस्‍थाओं को सम्‍मान दिया।

नोट- इस विद्रोह में समूचा बस्‍तर क्षेत्र शामिल थे मगर बस्‍तर
राजा रूद्रप्रताप देव  एवं कांकेर राजा कोमल
देव शामिल नही हुए।


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