छत्‍तीसगढ़
में वन। वर्गीकरण, वनों का महत्‍व

छत्तीसगढ़ के वन । forest in Chhattisgarh ! important of forest

छत्तीसगढ़ के वन का परिचय-




❂1952
में राष्‍ट्रीय वन नीति की घोषणा की गई।

घोषित नीति के अन्‍तर्गत देश में कुल क्षेत्रफल के एक तिहाई भाग में वन होना चाहिए। 

इस दृष्टिकोण से छत्‍तीसगढ़ का सौभाग्‍य
है कि इसके कुल 135191 वर्ग कि0मी0 भौगौलिक क्षेत्रफल के 44
.12% क्षेत्र वना‍च्‍छादित है। 

यह सकल भूभाग का 44.21 % होता है। 

जो देश के कुल वन क्षेत्र का 7.82 % है। 

छत्‍तीसगढ़
में मई 2001 में वन विकास निगम अस्तित्‍व में आया।


    वनों
    का वर्गीकरण-Types of forests in Chhattisgarh


    प्रदेश
    में मानसूनी हवाओं से वर्षा होती है अत: यहां के वनों को मानसूनी वन भी कहते हैं।


     प्रदेश
    के वनों को पादपी विशेषताओं के आधार पर दो भागों में विभाजित करते हैं।


    1 .उष्‍ण कटिबंधी आर्द्र पर्णपाती वन – इस प्रकार के वन लगभग पूरे प्रदेश में मिलते है
    2 .उष्‍ण कटिबंधीय शुष्‍क पर्णपाती वन – यह वन प्रदेश के छोटे-छोटे खण्‍डों में मिलते
    हैं।

    प्रशासनीक
    आधार पर वनों का वर्गीकरण

    1.
    आरक्षित वन

    प्रदेश
    के 25782.167 वर्ग किमी में आरक्षित वन हैं। जो कुल वन भूमि का 43.15
    % है । 


    इस वन का सर्वाधिक विस्‍तार 5179.792 वर्ग किमी क्षेत्र में सर्वाधिक दन्‍तेवाड़ा क्षेत्र में हैं जबकि सबसे कम विस्‍तार कोरबा जिले में है। 


    आरक्षित वन क्षेत्रों में कटाई एवं
    चराई निषिद्ध होती है। 


    प्रदेश में ये वन जलवायु, मृदा संरक्षण
    व बाढ़ के नियंत्रण के लिए महत्‍वपूर्ण होते हैं। 


    आरक्षित वन सघन उंचे-उंचे वृक्ष वाले
    होते हैं अधिकांश साल और सागौन के वन आरक्षित हैं।


    2.
    संरक्षित वन

    प्रदेश
    में 24036.1वर्ग किमी क्षेत्र अर्थात 40.22
    % पर
    संरक्षित वन हैं। 


    संरक्षित वनों में प्रशासकीय नियंत्रण होता है।


    इस वन भूमि में स्‍थानीय
    निवासियों को वनोपज
    , संग्रहण, मवेशियों
    को चराने तथा घरेलू उपयोग की लकड़ी का उपयोग करने की छूट होती है।


    इन वनों का उपयोग मानव
    द्वारा अपने उपयोग  के लिए किया जाता है जिसके
    कारण इस वन भूमि का निर
    न्‍तर ह्रास होता जा रहा है। दूसरी ओर इसकी
    पूर्ति हेतु सामाजिक वानिकी द्वारा वन रोपण का कार्य किया जा रहा है। 


    इस तरह के वनों
    का सर्वाधिक विस्‍तार 4836 वर्ग किमी क्षेत्र में सरगुजा जिले में है। 


    जांजगीर चांपा
    जिले में सबसे कम 26 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्‍तार है।


    3.
    अवर्गीकृत वन


    इसे
    स्‍वतंत्र वन भी कहते है। प्रदेश में इसका विस्‍तार 9954.122 वर्ग किमी क्षेत्र में
    है। 


    जो कुल वन भूमि का 16.65% है। इस वन क्षेत्र
    में लकड़ी काटना एंव पशु चराने का कार्य होता है। इसके बदले में सरकार शुल्‍क लेती
    हैं। 


    ऐसे वनों का ठेका होता हे। 


    दन्‍तेवाड़ा जिले में इस प्रकार वनों का सर्वाधिक 4079
    वर्ग किमी क्षेत्र में विस्‍तार है धमतरी
    , सरगुजा और कोरिया जिलों
    में इस प्रकार के वनों का विस्‍तार है।




    पादपी
    संघटन के आधार पर वनों का विभाजन

    • 1.साल
      वन
    • 2.सागौन
      वन
    • 3.मिश्रित
      वन

    1.साल वन– 

    साल मूल्‍यवान वृक्ष होता है। इसकी लकड़ी मजबूत होती हैं। 


    प्रदेश के
    वन क्षेत्रफल्‍ का 24244.878वर्ग किमी अर्थात 40.56
    % भू-भाग
    पर साल के वन हैं।


     रेलवे के स्‍लीपर तथा रेलवे के डिब्‍बे बनाने में इस‍का उपयोग होता
    है।


     मकान की कड़ी, दरवाजे, खिड़की और खम्‍बे
    बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है।


     प्रदेश के पर्वतीय भागो, पठारों एवं घाटियों में साल के वनों का विस्‍तार है। 


    मिश्रित वनों में भी साल
    के वृक्ष मिलते हैं।


    प्रदेश में रायपुर की उच्‍च भूमि, राजनांदगावं,
    दुर्ग की उच्‍च भूमि, मैकल पर्वत श्रेणी,
    पेन्‍ड्रा और लोरमी पठार, उदयपुर और छुरी की पहाडि़यों,
    जशपुर पाट क्षेत्रों एवं दण्‍डकारण्‍य के अबूझमाड़ और बैलाडीला की पहाडि़यों  तथा पठारी भागों मेंसाल के वन बहुतायत में मिलते
    हैं।


    2
    सागौन
    – 

    इसका उपयोग फर्नीचर बनाने मे होता है। 


    इस लकड़ी में दीमक नही लगता। 


    निर्माण
    में इसका उपयोग किया जाता है। 


    रेल के डिब्‍बों के निर्माण में सागौन की लकड़ी का उपयोग
    होता है।


    इनकी पत्तियों से छाते तथा दोना बनाते हैं। 


    प्रदेश के कुल वन क्षेत्र के 9.42% भाग पर अर्थात 5633.131 वर्ग किमी क्षेत्र में पाया जाता है।


    3.मिश्रित
    वन


    इस वन का विस्‍तार प्रदेश के 43.52% एवं
    कार्य अयोग्‍य वन 6.50
    % कुल वन भूमि 50.02% अर्थात 29894.945 वर्ग किमी क्षेत्रफल पर है। 


    इस वन में एक विशेष प्रकार का
    वृक्ष न होकर विविध प्रकार के वृक्ष सम्मिलित रूप से मिलते हैं।
    यहां साजा,
    बीजा, खम्‍हार, तेन्‍दू,
    हर्रा, सेमल, अर्जून,
    बांस और साल के वृक्ष पाये जाते हैं।

     

    ये वन रायगढ़, दुर्ग, बालोद, बेमेतरा,
    राजनांदगांव, कवर्धा, रायपुर,
    बलौदाबाजार, गरियाबंद, दंतेवाड़ा
    जिलों में मिलते हैं। 


    मिश्रित वनों के घासों की चराई होती है तथा लकड़ी की कटाई जलाऊ
    लकड़ी एवं फर्नीचर के रूप में होती है।



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