गणेश चतुर्थी 2021 –ganesh chaturthi in hindi! ganesh chaturthi 2021 date
सर्वविघ्न
विनाशय, सर्व कल्याण हेतवे।पार्वती प्रिय
पुत्राय, श्री गणेशाय नमो नम:।।
Ganesh chaturthi 2021 date: Shubh Muhurat
गणेश पूजा का
शुभ मुहर्त 10 सितम्बर 12:17 बजे शुरू होकर और रात 10 बजे तक रहेगा। गणेश पूजा
करते समय ऊं गं गणपतये नम: मंत्र का उच्चारण
करना चाहिए । प्रसाद के रूप में पंजीरी, पंचामृत,
मोदक ,लड्डू वितरित करें।
Ganesha Visarjan करने के लिए anant chaturdhashi 19 सितंबर 2021 को है। इस दिन गणेश जी को जल में विलीन कर दिया जाएगा।
- गणेश चतुर्थी कब
है– 10 सितम्बर 2021 - ganesh chturthi kab
hai 2021 mein– 10 septmber 2021
गणेश पूूूजा का विधि-
भाद्रपद माह में गणेश चतुर्थी में पूज करने का विशेष महत्व हैं।
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हमारे सनातन
हिन्दू धर्म के अनुसार कार्यो के शुभारम्भ के लिए श्री गणेश का नमन तथा स्तवन
किया जाता हैं।
सृष्टि के उत्पादन
में राक्षसो द्वारा जो विपत्ति बाधायें शुरू की जाती है उनका निवारण करने के लिए
स्वयं गणेश के रूप में प्रकट होकर ब्रम्हा जी के कार्य में सहायक रहे हैं। ऋग्वेद और यजुर्वेद आदि के मन्त्रों
में भगवान गणेश का उल्लेख मिलता
हैं। प्राचीन काल से श्री गणेश का पूजा होता रहा है।
किसी भी शुभ काम
को करने के लिए श्री गणेश का नाम लिया जाता है।
वक्रतुण्ड महाकाय
सूर्यकोटि समप्रथ:।निर्विघ्नं कुरूमें
देव, सर्वकार्येषु सव्रदा।।
भातरीय संस्कृति
में गणेश का स्थान सर्वोपरि है हिन्दू धर्म का कोई भी धार्मिक कार्य हो उसका प्रारम्भ
श्री गणेश नमम से ही प्रारम्भ होता है। श्री गणेशाय नम: हिन्दू धर्म में तैंतीस कोटि
देवता है। परन्तु प्रत्येक देवता की पूजा में अग्रस्थान श्री गणेश देवता का ही है।
भगवान गणेश का
महत्व –
यजुर्वेद में आपको गणपति प्रियपति और निधिपति के रूप में आहूत किया गया है।
ये प्रथम पूज्य है गणेश हैं विघ्नेश है साथ ही विद्या, वारिधि और बुद्धि विधाता धन लाभ पुत्र आदि प्राप्ति दाता
भी है। स्वास्तिक चिन्ह श्री गणेश का स्वरूप है।गणेश जी चतुभुर्ज है क्योंकि वे
देवता, नर ,असुर, और नाग इन चारों की स्थापना करने वाले है एवं चतुवर्ग चतुर्वेदादि के भी स्थापक
है। वे भक्तों के अनुग्रह से अपने चारों भुजाओं में क्रमश: पाश , अंकुश वर मुद्रा तथा अभय मुद्रा धारण करते हैं। पाश और अंकुश अस्त्र हैं।
दुष्टों का नाश करने वाला ब्रह्म दन्त तथा सर्वकामनाओं को पूर्ण करने वाला ब्रहृम
स्वर है। भगवान गणेश लम्बोदर हैं क्यों कि उनके पेटा या उदर में ही समस्त प्रपंच
स्थिति है और वे स्वयं किसी के उदर में नहीं है। गणेश सूर्पकर्ण है सूर्प के समान
मायामय पाप पुण्य रूप रज को दूर करके शुद्ध ब्रह की प्राप्ति करवा देते हैं।
श्री गणेश के प्रमुख
अवतारों का वर्णन निम्न है-
- वक्रतुण्ड- जो
सिंह वाहन तथा मत्सरासुर के हन्ता है। - एकदन्त– जो मूषक
वाहन तथा मदासुर के हन्ता है। - महोदर– जो मूषक, वाहन, ज्ञानदाता तथा मोहासुर के नाशक है।
- गजानन– जो मूषक
वाहन , सांख्यों की सिद्धि देने वाले एवं लोभासर हन्ता है। - लम्बोदर– जो मूषक
वाहन तथा क्रोधासुर के हन्ता है। - विकट– जो मयुर
वाहन तथा कामासुर के हन्ता हैं। - धूम्रवर्त-जो मूषक
वाहन और अहंतासूर के हन्ता है। - विध्नराज-जो शेषवाहन
तथा मायासुर के प्रहर्न्ता हैं।
श्री गणेश का बीज
मन्त्र-
अनुस्वार युक्त ”ग” अर्थात ”ग” इसा ” ग” बीज मंत्र है चार संख्या को मिलाकर एक आकार देने
से स्वास्तिक चिन्ह बन जाता है। इस चिन्ह में चार बीज मन्त्रों (ग+ग=-) का संयुक्त होना ही गणपति को जन्मतिथि चतुर्थी
का घोतक है । श्री गणपति बुद्धि प्रदाता हैं।
हिन्दु देवताओं में गणेश की एक विशेष प्रतिष्ठा है। गणपति और गणेश का शाब्दिक
अर्थ गुणों का अधिपति और गणों का ईश एवं नायक है। इनको विनायक, गणेश्वर, गजानन,एकदन्त लम्बोदर,शूर्पकर्ण,विघ्नराज आदि नामों से जाना जाता है।
हिन्दी धर्म
में गणेश का पूजन सर्वप्रथम किया जाता है- प्रत्येक काम को मंगलमय बनाने के लिए
श्री गणेश उन्हें 12 नामों का उल्लेख किया गया-
सुमुख, कपिल, एकदन्त, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्ननाशक, धूम्रकेतु ,गणाध्यक्ष, कालचन्द्र, गजानन, विनायक।
श्री गणेश प्रार्थना-
श्री मत्परमहंसपरिव्राजकाचार्य श्री श्रीधरस्वामिकृत
आनन्दरूप करूणाकर विश्वबन्धो
संतापचन्द्र भववारिधिभद्रसेतो।
हे विध्रमृत्युदलनामुतसौक्ष्यसिन्धो
श्री मन विनायक
तवाड्ध्रियुंग
नता: स्म:।
यस्मिन्न जीवजगदाक
मोहजालं
यस्मिन्न जन्ममरणादिभयं
समग्रम्।
यस्मिन सुखंकधनभूमि
न द:खभीषत्
तद् ब्रह्म मंगलवद
तब संश्रयाम:।।
आनन्द स्वरूप
श्रीमन विनायक। आप करूणा की निधि एवं सम्पूर्ण जगत के बन्धु है। शोकसंताप का शमन
करने के लिए परमाह्दक चन्द्रमा है भव सागर से पार होने के लिए कल्याणकारी सेतु है
तथा विध्ररूपी मुत्यु का नाश करने के लिए अमूतमय सौख्य के साग है हम आपके युगल चरणों
में प्रमाण करते है। जिसमें जीव जगत इत्यादि मोह जाल का पूर्णत: अभाव है। यहां जन्म
मरण आदि का सारा भय सर्वथा है ही नहीं जिस अद्वितीय आनन्दधन भूमा में किंचिन्मात्र
भी दु:ख नही है। उस ब्रह्म स्वरूप आपके मंगलमय चरण की शरण लेते है।