कोई विद्रोह पूरी जानकारी  । छत्‍तीसगढ़ प्रमुख विद्रोह

 

कोई विद्रोह पूरी जानकारी  । छत्‍तीसगढ़ प्रमुख विद्रोह


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बस्‍तर का पहला युद्ध जिसमें अंग्रेजों ने अपनी हार मानी। इस विद्रोह को कोई विद्रोह कहा जाता है।

बस्‍तर
में हमेशा से शांति प्रिय अंचल रहा है लेकिन अपनी क्षेत्र और अपनी अस्‍मिता की बात
आती है तो बस्‍तर वासी किसी के सामने झुकते नहीं है। बस्‍तर के वनों को समय से
पूर्व कटने से बचाने का कोई विद्रोह बस्‍तर का ही नहीं वरन छत्‍तीसगढ़ का अपने किस्‍म
का अनोखा विद्रोह था।


 



कोई
विद्रोह
के पीछे आदिवासियों की आटविक मानसिकता का परिचय मिलता है सालद्वीप के मूल
प्रजाति साल की रक्षा के लिए सभ्‍य समाज से दूर कहे जाने वाले आदिवासियों ने जो
अनोखा संघर्ष किया है। वह उनके पर्यावरण जागृति को दर्शाता है इस तरह की जागृति और
चौकन्‍नापन आज की पीढ़ी में दिखाई नहीं देता। यह विद्रोह आज के शिक्षित समाज के
लिए एक प्रेरणा है इस विद्रोह में जनजातियों की वैचारिक दृढ़ता के दर्शन होते है
कोई विद्रोह बस्‍तर का पहला विद्रोह था जिसमें अंग्रेजों ने अपनी हार मानी और
विद्रोहियों के साथ समझौता किया था। यह बात 19वीं सदी के अंत की है।


कोई
विद्रोह पूरी जानकारी  । छत्‍तीसगढ़ प्रमुख
विद्रोह

 

वररक्षा
हेतु आन्‍दोलन – बस्‍तर की दोरली की उपभाषा बोली में कोई का अर्थ होता है। वनों और
पहाड़ों में रहने वाली आदिवासी प्रजा
प्राचीन समय में वन बस्‍तर रियासत का महत्‍वपूर्ण
संसाधन रहा है दक्षिण बस्‍तर में अंग्रेजों की शोषण व गलत वन नीति से आदिवासी काफी
असन्‍तुष्‍ठ थे। 


फोतकेल के जमींदार नागुल दोरला ने भोपालपटटनम के जमींदार राम भोई
और भेजी के जमींदार जुग्‍गाराजू को अपने पक्ष में कर अंग्रेजों द्वारा साल वृक्षों
के काटे जाने के खिलाफ 1859 ई
, में विद्रोह कर दिया।

 

विद्रोही
जमींदारों और आदिवासी जनता ने सर्वसम्‍मति ने निणर्य लिया कि अब बस्‍तर के एक भी
साल वृक्ष को काटने नहीं दिया जाएगा। अपने इस निर्णय की सूचना उन्‍होनें अंग्रेजों
एवं हैदराबाद
के ब्रिटिश ठेकेदारों को दे दी। ब्रिटिश सरकार ने नागुल दोरला और
उनके समर्थकों और उनके समर्थकों के निर्णय को अपनी प्रभुसत्‍ता को चुनौती मानकर
वृक्षों की कटाई करने वाले मजदूरों की रक्षा करने के लिए बन्‍दूकधारी सिपाही भेजे।

 

 दक्षिण बस्‍तर के आदिवासियों को जब यह खबर लगी
तो उन्‍होनं जलती हूई मशालों को लेकर अंग्रेजो के लकड़ी के टालों को जला दिया और
आरा चलाने वालों का सिर काट डाला। आन्‍दोलनकारियों ने एक साल वृक्ष के पीछे एक व्‍यक्ति
का सिर का नारा दिया
। कोई विद्रोह  जनआंदोलन से हैदराबार का निजाम और अंग्रेज घबरा उठे। बाध्‍य
होकर निजाम और अंग्रेजों ने नागुल दोरला और उसके साथियों के साथ समझौता किया।

 

कैप्‍टन
सी ग्‍लासफर्ड
जोकि सिंरोचा का डिप्‍टी कमिश्‍नर था ने विद्रोहियों की भयानकता को
देखते हुए अपनी हार मान ली और बस्‍तर में उसने लकड़ी ठेकेदारों की प्रथा को समाप्‍त
कर दिया।



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