cgpsc
mains syllabus history paper 3 part 3
mains syllabus history paper 3 part 3
history of chhattisgarh from vadic age to gupta period
छत्तीसगढ़ का इतिहास वैदिक काल से गुप्त काल तक
वैदिक काल vedic age of chhattisgarh
शुरूआती वैदिक या पूर्व वैदिक सभ्यता की जानकारी देने
वाले ग्रन्थ ऋग्वेद में छत्तीसगढ़ से सम्बन्धित कोई जानकारी नहीं मिलती ।
इसमें
विन्ध्य पर्वत एवं नर्मदा नदी का उल्लेख भी नहीं है।
उत्तर वैदिक काल में देश के
दक्षिण भा ग से सम्बन्धित विवरण मिलने लगते है शतपथ ब्राम्हण में पूर्व एवं पश्चिम में स्थित
समुद्रों का उल्लेख मिलता है।
कौशीतिक उपनिषद् में विन्ध्य पर्वत का नामोल्लेख
है
परवर्ती वैदिक साहित्य में नर्मदा का उल्लेख रेवा के रूप में मिलता है।
महाकाव्यों में इस क्षेत्र का पर्याप्त उल्लेख मिलता है।
रामायण काल ramayan age of chhattisgarh
रामायण काल में पता चलता है कि राम की माता कौशल्या
राजा भानुमन्त की पुत्री थी। कोसल खण्ड नामक एक अप्रकाशित ग्रन्थ से जानकारी
मिलती है कि विन्ध्य पर्वत के दक्षिण में नागपत्तन के पास कोसल नामक एक
शक्तिशाली राजा था। इनके नाम ही पर इस क्षेत्र का नाम कोसल पड़ा ।
राजा कोसल के
वंश में भानुमन्त नामक राजा हुआ। जिसकी पुत्री का विवाह अयोध्या के राजा दशरथ से
हुआ था। भानुमन्त का कोई पुत्र नहीं था। अत: कोसल छत्तीसगढ़ का राज्य राजा दशरथ
को प्राप्त हुआ।
इस प्रकार राजा दशरथ के पूर्व ही इस क्षेत्र का नाम कोसल होना
ज्ञात होता है। ऐसा माना जाता है कि वनवास के समय सम्भवत: राम ने अधिकांश समय
छत्तीसगढ़ के आस पास व्यतीत कियाथा ।
स्थानीय परम्परा के अनुसार शिवरीनारयण
खरौद आदि स्थानों को रामकथा से सम्बद्ध माना जाता है। लोक विश्वास के अनुसार
श्री राम द्वारा सीता का त्याग कर देने पर तुरतुरिया सिरपुर के समीप में स्थित
महर्षि वाल्मीकि ने अपने आश्रम में शरण दी थी और यही लव और कुश का जन्म हुआ माना
जाता है।
श्री राम के पश्चात उत्तर कोसल के राजा उनके ज्येष्ठ पुत्र लव हुए
जिनकी राजधानी श्रावस्ती थी और अनुज कुश को दक्षिण कोसल मिला जिसकी राजधानी कुशस्थली
थी।
महाभारत काल mahabharat age of chhattisgarh
महाभारत काल में
इस क्षेत्र का उल्लेख सहदेव द्वारा जीते गए राजयों में प्राक्कोसल के रूप
में मिलता है। बस्तर के अरण्य क्षेत्र को कान्तार कहा गया है।
कर्णद्वारा की गई
दिग्विजय में भी कोसल जनपद का नाम मिलता है।
राजा नल ने दक्षिण दिशा का मार्ग
बनाते हुए भी विन्ध्य के दक्षिण में कोसल राज्य का उल्लेख किया था।
महाभारत कालीन नरेशों का इस क्षेत्र से संबंध भी बताया
गया है। यथा शिशुपाल ,बभ्रुवाहन, मोरध्वज इत्यादि।
राजा रूक्म की राजधानी गोदावरी तट पर स्थित प्रतिष्ठानपुर
पैठन में थी।
महाभारत कालीन ऋषभतीर्थ भी बिलासपुर जिले में सक्ती से
निकाट गुंजी नामक स्थान से समीकृत किया जाता है।
स्थानीय परम्परा के अनुसार भी
मोरध्वज और ताम्रध्वज की राजधानी मणिपुर का तादात्म्य वर्तमान रतनपुर से किया
जाता है इसी प्रकार यह माना जाता है अर्जुन के पुत्र वभ्रुवाहन की राजधानी सिरपुर
थी।
इस क्षेत्र के पर्वत एवं नदियों का उल्लेख अनेक पुराणों
में उपलब्ध है इस क्षेत्र में राज्य करते हुए इक्ष्वाकुवंशियों का वर्णन मिलता
है। इसके साथ ही यह भी माना जाता है वैवस्वत मनु के पौत्र तथा सुद्युम्न से
पुत्र विक्स्वान को यह क्षेत्र प्राप्त हुआ था।
महाभारत के भीमसेन के नाम पर बिलासपुर जिलांतर्गत
जांजगीर में एक विशाल भीम्मा तालाब अद्यावधि प्रमाण स्वरूप है जो संभवत: भीम्मा
का ही अपभ्रंश हो सकता है। रायपुर जिला का भीमखोज भी इसका उदाहरण है।
महाजनपद काल या बुद्ध काल छठवीं शताब्दी ईसा पूर्व mahajanpad age and buddha age
छत्तीसगढ़ का वर्तमान क्षेत्र भी कोसल के नाम से एक पृथक
प्रशासनिक इकाई था । मौर्यकाल से पूर्व के सिक्कों की प्राप्ति से इस अवधारणा की पुष्टि
होती है
अवदान शतक नामक एक ग्रन्थ के अनुसार महात्मा बुद्ध दक्षिण कोसल आये थे
तथा लगभग तीन माह तक यहां की राजधानी में उन्होंने प्रवास किया था । ऐसी जानकारी
बौद्ध यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृत्तांत से मिलती है।
नन्द मौर्य काल nand maurya age of chhattisgarh
दक्षिण कोसल का क्षेत्र सम्भ्वत: नन्द मौर्य साम्राज्य
का अंग था। इसकी पुष्टि चीनी यात्री युवान-च्वांग (ह्वेनसांग) के यात्रा विवरण से
होती है। जिसके अनुसार सम्राट अशोक ने यहां बौद्ध स्पूप का निर्माण कराया था।
अशोक के साम्राज्य के अन्तर्गत आन्ध्र, कलिंग एवं रूपनाथ
(जबलपुर) के होने ही जानकारी यहां प्राप्त उसके अभिलेखों से होती है।
अत: मध्य
का यह भाग भी उनके साम्राज्य के अन्तर्गत रहा होगा। रायपुर जिले के तारापुर आंरग
उड़ेला आदि स्थानों से कुछ आहत मुद्राएं प्राप्त हुई है। जिनका वजन 12 रत्ती का
है। अत: इन्हें तकनीकी दृष्टि से प्राक् मौर्य काल का माना जाता है
मौर्यकाल के
सिक्के मुख्यत: अकलतरा ,ठठारी ,बार एवं बिलासपुर से प्राप्त हुए हैं।
रायपुर जिले के तुरतुरिया नाम स्थान में बौद्ध
भिक्षुणियों का विहार था । वहां बुद्ध देव की विशाल मूर्ति अद्यावधि विद्यमान है।
डॉ रमेन्द्र नाथ मिश्र ने 1969 -70 में आरंग तथा गुजरा
गांव में आहत सिक्कों की खोज की थी कि जो गोनगल श्रेणी के हैं।
इसी काल के पुरातात्विक स्थल सरगुजा जिले के रामगढ़ के
निकठ जोगीमारा और सीताबेंगरा नामक गुफाएं हैं।
डॉ संतलाल कटारे ने इसका अध्यययन किया था कि –जोगीमारा
से अशों कालीन लेख्, भाषा एवं लिपि पाली एवं ब्राम्ही में सुतनुका नामक
देवदासी एवं उसके प्रेमी देवदत्त का उल्लेख है सीताबेंगरा विश्व की प्राचीन
नाट्यशाला मानी गई है।
बिलसापुर – अकलतरा के पास कोटगढ़ की बनावट और प्राचीनता
भी हमें इस प्राचीन युग की विशेषता से आभासित कराता हैं।
सातवाहन काल satvahan age in chhattisgarh
मार्य साम्राज्य के पतन के पश्चात दक्षिण भारत में
सातवाहन राज्य की स्थापना हुई । पूर्वी क्षेत्र में चेदिवंश का उदय हुआ। दक्षिण
कोसल का अधिकांश भाग सातवाहनों के प्रभाव क्षेत्र में था। इसका पूर्वी भाग सम्भवत:
चेदिवंश के राजा खारवेल के अधिकार के अन्तर्गत रहा होगा। सातवाहन राजा अपीलक की
एक मात्र मुद्रा रायगढ़ जिले के बालपुर नामक स्थल से प्राप्त हुई है। अपीलक का
उल्लेख सातावाहन वंश के अभिलेखों में नहीं मिलता
किन्तु पौराणिक विवरणों से इसके सातावाहन राजा होने की पुष्टि होती है।
सक्ती के निकट गुंजी ऋष्भतीर्थ से प्राप्त शिलालेख
में कुमार वरदत्श्री नामक राजा का उल्लेख है जो सम्भ्वत: सातवाहन राजा था। इसी
काल का एक काष्ठस्तम्भ लेख जांजगीर जिले के किरारी चन्द्रपुर नामक स्थान से
प्राप्त हुआ है
अंचल के अनेक स्थलों से तांबे के आयताकार सिक्कें प्राप्त हुए
हैं जिनमें एक ओर हाथी तथा दूसरी ओर स्त्री अथवा नाग का अंकन है जो सातवाहन कालनी
है ।
बुढीखार नामक स्थान में लेख युक्त एक प्रतिमा प्राप्त हुई है जो इसी काल
की है
मल्हार में उत्खनन से दूसरे स्तर पर (जो मौर्यसातवाहन -कुषाण काल का माना
गया है) प्राप्त मिट्टी की मुहर में वैदसिरिस
लेख अंकित मिलता है।
प्रसिद्ध चीनी यात्री युवान-च्वांग ने उल्लेख किया
है कि दक्षिण कोसल की राजधानी के निकट एक पर्वत पर सातवाहन राजा ने एक सुरंग
खुदवाकर प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु नागर्जुन के लिए एक पांच मंजिला भव्य संघाराम
बनवाया था।
सातवाहनों के समकालीन कुषाण राजाओं के तांबे के सिक्कों
की प्राप्ति भ्रम उत्पन्न करती हैं क्योंकि यहां कुषाण राज्य के विषय में किसी
भी स्त्रोत से कोई जानकारी नहीं मिलती । इसी काल में रोमन की स्वर्ण मुद्राएं भी
मिलती हैं जो संभवत: व्यापारियों द्वारा लायी गयी थीं।
मेघवंश megha vansh of chhattisgarh
सातवाहनों के पश्चात सम्भवत: दक्षिण कोसल में मेघ नामक
वंश ने राज्य किया । पुराणों के विवरण से ज्ञात होता है कि गुप्तों के उदय के
पूर्व कोसल में मेघ वंश के शासक राज्य करेंगे। सम्भवत: इस वंश ने यहां द्वितीय
शताब्दी ईस्वी तक राज्य किया।
वाकाटक काल vakatak age of chhattisgarh
सातवाहन के पतन के पश्चात वाकाटकों का अभ्युदय हुआ ।
डॉ मिराशी के अनुसार वाकाटक प्रवरसेन प्रथम ने दक्षिण कौसल के समूचे क्षेत्र पर
अपना अधिकार स्थापित कर लिया था। इस शासक की मृत्यु के बाद राज्य क्षीण होने
लगा और गुप्तों ने दक्षिण कोसल पर अधिकार कर लिया।
यह घटना 3-4 वीं सदी के बीच के
काल की है। वाकाटक नरेश पृथ्वीसेन द्वितीय के बालाघाट ताम्रपत्र से ज्ञात होता है
कि उसके पिता नरेन्द्रसेन ने कोसल के साथ मालवा और मैकल में अपना अधिकार स्थापित
कर लिया था।
नरेन्द्र सेन और पृथ्वीसेन द्वितीय का संघर्ष बस्तर कोरापुट
क्षेत्र में राज्य करने वाले नल शासकों से होता रह ।
नल शासक भवदत्त वर्मा ने
नरेन्द्रसेन की राजधानी नंदीवर्धन नागपुर पर आक्रमण कर उसे पराजित किया था किन्तु
उसके पुत्र पृथ्वीसेन द्वितीय ने इसका बदला लिया और भवदत्त के उत्तराधिकारी
अर्थपति को पराजित किया। सम्भवत: इस युद्ध में अर्थपति की मृत्यु हो गई थी।
कालान्तर
में वाकाटकों के वत्सगुल्म शाखा के राजा हरिसेन ने दक्षिण कोसल क्षेत्र में अपना
अधिकार स्थापित कर लिया। इसके समय वाकाटक साम्राज्य अपने चरमोत्कर्ष पर था।
सम्भवत:
त्रिपुरी के कल्चुरियों ने वाकाटकों का
अन्त कर दिया किन्तु दक्षिण कोसल में सम्भवत: नल राजा स्कंदवर्मन द्वारा नल
वंश की पुन-स्थापना कर बस्तर के पुष्करी भोपालपटनम को राजधानी बनाया।
वाकाटक
प्रवरसेन केआश्रम में कुछ समय भारत के प्रसिद्ध कवि कालिदास ने व्यतीत किया था।
गुप्तकाल gupta period in chhattisgarh
भारतीय इतिहास में गुप्तवंश के राज्य काल को सुख
समृद्धि और सम्पन्नता का युग मानाज जाता है। कला संस्कृति और साहित्य की इस
युग में सर्वतो मुखी उन्नति हुई इसलिए इस युग को स्वर्णयुग भी कहा जाने लगा।
बालचंद जैन के शब्दों में – मगध के गुप्तवंश का प्रभाव
छत्तीसगढ़ पर उस समय पड़ा जब उपर्युक्त समुद्रगुप्त ने आर्यावर्त के राजाओं को
जीतकर दक्षिणापथ की विजय यात्रा की ।
गुप्त वंश के सम्राट समुद्र गुप्त की प्रयाग प्रशस्ति
से ज्ञात होता है कि इसके दक्षिणापथ की दिग्विजिय के समय सर्वप्रथम दक्षिण कोसल के
राजा महेन्द्र को पराजित किया था। इसके पश्चात महाकान्तार के व्याघ्रराज का
उल्लेख है ।
उत्तर भारत में शुंग एवं कुषाण सत्ता के पश्चात गुप्त
वंश ने राज्य किया तथा दक्षिण भारत के सातवाहन शक्ति के पराभव के पश्चात वाकाटक
राज्य की स्थापना हुई।
साक्ष्य
दक्षिण कोसल के गुप्तों के राजकीय संबंधो का आधार एम
दीक्षित ने खैरताल रायपुर नामक स्थान में नामक स्थान में महेन्द्रादित्यस्य
अंकित 54 उत्पीडि़तांक सिक्के को माना है।
महेन्द्र के
उत्तराधिकारियों के विषय में जानकारी नहीं मिलती किन्तु दुर्ग जिले के बानबरद
नामक स्थान से गुप्त कालीन 20 स्वर्ण मुद्राओं की प्राप्ति तथा यहां के
अभिलेखों में गुप्त संवत के प्रयोग से स्पष्ट है कि यहां गुप्तों की अधिसत्ता
स्थापित हो गई थी।
आरंग से पांचवी शताब्दी का रजत जडि़त एक तांबे का सिक्का
मिला है। इस अंचल में इसके पूर्व कुमार
गुप्त प्रथम के सिक्कें की प्राप्ति का उल्लेख नहीं मिलता।
डॉ. विष्णु सिंह
ठाकुर के अनुसार आरंग से प्राप्त सिक्के पर निम्न अंश अंकित है-परमभगवत
महाराजधिराज श्री कुमार गुप्त महेन्द्रादित्यस्य यह संभवत: गलत तर्जुमा है क्योंकि
कतिपय शब्द छूटे हुए प्रतीत होते हैं। इसी प्रकार अशुद्ध तर्जुमा महेन्द्रसिंह
कुमार के अन्य सिक्कों में पाए गए हैं।
निष्कर्स-
<
इन्हें भी देखें प्रागेतिहासिक काल CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें छत्तीसगढ़ का इतिहास वैदिक युग से लेकर गुप्त काल तक
इन्हें भी देखें नल वंश CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें शरभपूरीय वंश CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें पांडु वंश CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें रतनपुर कलचुरी वंश CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें रायपुर कलचुरी वंश CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें कलचुरी एवं उनका प्रशासन CGPSC MAINS HISTORY NOTES
इन्हें भी देखें छत्तीसगढ़ मेंं सामंती राज व्यवस्था CGPSC MAINS NOTES
इन्हें भी देखें हिस्ट्री ऑफ बस्तर
इन्हें भी देखें छग की पूर्व रियासतें एवं जमींदारियां
इन्हें भी देखें छग में 1857 की क्रांति Revolt of 1857
इन्हें भी देखें श्रमिक आंदोलन छग workers movement
इन्हें भी देखें कृषक आंदोलन छग peasant
movement
movement
See More नर्सिंग कॉलेज लिस्ट एवं जानकारी छग में l Nursing college in chhattisgarh full list ! gnm nursing college in chhattisgarh
See More डेंटल कॉलेज लिस्ट एवं जानकारी छग में Dental College In Cg ! List Of All Chhattisgarh Dental College
See More होमियोपैथी कॉलेज लिस्ट एवं जानकारी BHMS college in Chhattisgarh All list homeopathy college in bilaspur, raipur
See More आर्युर्वेद कॉलेज लिस्ट छग cg ayurvedic college list ! BAMS college in Chhattisgarh
See More नौकरी के लिए बेस्ट IGNOU कोर्स । 12 वीं के बाद
See More स्टेनोग्राफर कोर्स प्राइवेट कॉलेेज ITI stenography course ! private college in chhattisgarh
See Moreप्राइवेट आईटीआई कॉलेज Private iti college in raipur chhattisgarh
See More ड्राप्टमेंन ट्रेड की जानकारी एवं कॉलेज छग में ITI college cg ! iti Draughtsman (Civil) & Draughtsman (Mechanical) trade details!
भारत का भूगोल !! ncert pattern !! bharat ka bhugol hindi notes !! indian geography
- भारत की भौगौलिक संरचना ।। चट्टानें ।। दक्षिण का प्रायद्वीपीय पठार ।। उत्तर की पर्वत मालाएं ।। उत्तर का विशाल मैदान ।।