cgpsc mains syllabus history
paper 3 part 3
सोमवंश l somvansis
सोमवंशी एवं कांकेर के सोमवंशी छत्तीसगढ़ का इतिहास
सोमवंशी परिचय
पाण्डुवंशी सोमवंशी भी कहलाता था
,किन्तु
पश्चात वर्ती काल में एक ऐसे राजवंश की स्थापना हुई जो सोमवंशी होते हुए स्वयं
को पाण्डुकुल का नहीं मानते थे।
इस वंश के सोमवंशी राजाओं की उपाधि त्रिकलिंगाधिपति की थी
अर्थात वे स्वयं को कोसल, कलिंग और उत्कल , इन तीनों
क्षेत्रों का स्वामी मानते थे। इनकी राजमुद्राओ पर पाण्डुवंशीयों के विपरीत किन्तु
शरभपुरियों के समान गजलक्ष्मी की प्रतिमा पाई जाती है।
अर्थात वे स्वयं को कोसल, कलिंग और उत्कल , इन तीनों
क्षेत्रों का स्वामी मानते थे। इनकी राजमुद्राओ पर पाण्डुवंशीयों के विपरीत किन्तु
शरभपुरियों के समान गजलक्ष्मी की प्रतिमा पाई जाती है।
सोमवंशी राजा एवं शासन काल
इनके प्रथम राजा का नाम शिवगुप्त था,
फिर
भी यह ज्ञात नहीं हो सका है कि इनका पूर्ववर्ती पाण्डुवंशियों से कोई संबंध था
अथवा नहीं।
फिर
भी यह ज्ञात नहीं हो सका है कि इनका पूर्ववर्ती पाण्डुवंशियों से कोई संबंध था
अथवा नहीं।
केसरी या महाशिवगुप्त ययाति राजदेव के कटकस्थ
ताम्रपत्र में उनका विरूद्ध परममाहेश्वर, परम भट्टारक,
महाराजाधिराज,
सोमकुल
तिलक त्रिकलिंगाधिपति श्री महाशिवगुप्त कुशली दिया गया है।
इस वंश की राजधानी
सिरपुर थी तथा वंश में राजाओं के दो ही नाम चलते थे अर्थात महाशिवगुप्त और
महाभवगुप्त ।
सिरपुर थी तथा वंश में राजाओं के दो ही नाम चलते थे अर्थात महाशिवगुप्त और
महाभवगुप्त ।
पिता यदि शिवगुप्त हुआ तो पुत्र भवगुप्त होता था। प्रत्येक के
जन्म नाम व्यक्तिगत होते थे परन्तु गद्दी पर बैठते ही राजकीय नाम धारण करन
पड़ता था।
जन्म नाम व्यक्तिगत होते थे परन्तु गद्दी पर बैठते ही राजकीय नाम धारण करन
पड़ता था।
वासुदेव विष्णु मिराशी महोदय ने अनुमान किया है कि
शिवगुप्त प्रथम के समय में त्रिपुरी के कल्चुरी राजा मध्य तुंग ने कोसल पर
आक्रमण करके शिवगुप्त से पाली (जिला बिलासपुर) छीन लिया था।
शिवगुप्त के बाद उसका पुत्र जनमेजय महाभव गुप्त प्रथम
सिंहासन पर बैठा। उसका दूसरा नाम धर्मकंदर्प था। महाभव गुप्त् प्रथम का उत्तराधिकारी
उसका पुत्र माहशिवगुप्त हुआ जो ययाति भी कहलाया था उसका राज्य काल 970 से 1000
ई0 माना गया है।
संभवत- राज्य के पिछले भाग में ययाति ने अपने नामपर
ययातिनगर बसाकर वहां अपनी राजधानी स्थापित की हो, किन्तु कुछ
विद्वानों के अनुसार उसने नए नगर की रचना न कर विनीतपुर का ही नाम ययातिनगर कर दिया
था ।ययाति दानपत्रों में दक्षिण कोसल के ग्रामों के दान करने का उल्लेख है। इससे
स्पष्ट है कि कोसल के भू-भाग पर उसका अवश्य ही स्वामित्व रहा होगा।
11वीं शताब्दी में महाशिवगुप्त का पुत्र भीमरथ,
द्वितीय
महाभव गुप्त के नाम से राज्य का उत्तराध्किारी
बना। उसका राज्य काल 1000 से 1015 माना जाता है। उसकी राजधानी ययाति नगरथी।
भीमरथ
का उत्तराधिकारी उसका पुत्र धर्मरथ था जिसका शासन काल सन 1015 से 1020 तक माना
जाता है । वह राजमल्ल तथा महाशिवगुप्त ,द्वितीय भी
कहलाता था। उसका शासनकाल अल्पकालीन था। वह नि:संतान मृत्यु को प्राप्त हुआ।
का उत्तराधिकारी उसका पुत्र धर्मरथ था जिसका शासन काल सन 1015 से 1020 तक माना
जाता है । वह राजमल्ल तथा महाशिवगुप्त ,द्वितीय भी
कहलाता था। उसका शासनकाल अल्पकालीन था। वह नि:संतान मृत्यु को प्राप्त हुआ।
धर्मरथ का उत्तराधिकारी उसका भाई नहुष था जो महाभवगुप्त
तृतीय भी कहलाया था।उसका शासन कठिनाइ्यों से पूर्ण था। शत्रुओं के आक्रमण के कारण
उसक राज्य के कुछ भागों पर शत्रुओं का अधिकार हो गया था।
ऐसी परिस्थिति में ययाति
चंडीहर महशिवगुप्त तृतीय राजा बना। ययाति चंडीहर प्रतापी राजा था। उसने राज्य
शासन को संभाल कर कोसल उत्कल प्रदेशों को शत्रुओं से मुक्त कर लिया। संभवत: कल्चुरियों
द्वारा उसके अधिकृत दक्षिण कोसल के कुछ भाग को छीन लिया गया था।जिसे उसने वापस ले लिया।
चंडीहर महशिवगुप्त तृतीय राजा बना। ययाति चंडीहर प्रतापी राजा था। उसने राज्य
शासन को संभाल कर कोसल उत्कल प्रदेशों को शत्रुओं से मुक्त कर लिया। संभवत: कल्चुरियों
द्वारा उसके अधिकृत दक्षिण कोसल के कुछ भाग को छीन लिया गया था।जिसे उसने वापस ले लिया।
चंडीहर के बाद उसका पुत्र उघोतकेसरी महाभवगुप्त चतुर्थ
1055 ई0में राजा बना।
वह इस वंश क अंतिम शासक था जिसने डाहल,
ओड्र
तथा गौड़नरेशों पर विजय प्राप्त की थी।
ओड्र
तथा गौड़नरेशों पर विजय प्राप्त की थी।
उसका युद्ध कल्चुरियों के साथ
हुआ जिसमें उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा और कोसल सदा के लिए सेामवंशियों के
हाथों से निकल गया। क्योंकि उस समय तक त्रिपुरी के कल्चुरी वंश की एक लहुरी शाखा
छत्तीसगढ़ में स्थापित हो चुकी थी, जिसकी राजधानी तुम्मान थी।
हुआ जिसमें उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा और कोसल सदा के लिए सेामवंशियों के
हाथों से निकल गया। क्योंकि उस समय तक त्रिपुरी के कल्चुरी वंश की एक लहुरी शाखा
छत्तीसगढ़ में स्थापित हो चुकी थी, जिसकी राजधानी तुम्मान थी।
उद्योग केसरी महाभवगुप्त चतुर्थ के भव्य शासन काल के
पश्चात सोमवंशी राजवंश का पतन हुआ । एक ओर तो अनंतवर्मन चोड़गंग ने उड़ीसा छीन
लिया तो दूसरी ओर तुम्माण के कल्चुरियों ने धीरेधीरे सम्पूर्ण कोसल को अपने को
अपने अधिकार में कर लिया।
कांकेर के सोमवंशी
परिचय
बस्तर जिले में स्थित कांकेर प्राचीन काकरय से प्राप्त
कुछ अभिलेखों से यहां राज्य करते हुए सोमवंशी राजाओं का पता चलता है जो रात्नपुर
के कल्चुरि नरेशों का प्रभुत्व मानते थे। यहां से प्राप्त भानुदेव के शासन
कालीन शक संवत 1242 -1320 के अभिलेखों में भानुदेव के पूर्वजों की वंशावली दी गई।
कुछ अभिलेखों से यहां राज्य करते हुए सोमवंशी राजाओं का पता चलता है जो रात्नपुर
के कल्चुरि नरेशों का प्रभुत्व मानते थे। यहां से प्राप्त भानुदेव के शासन
कालीन शक संवत 1242 -1320 के अभिलेखों में भानुदेव के पूर्वजों की वंशावली दी गई।
कांकेर का सोमवंशी शासक
इस सोमवंश का प्रथम राजा सिंह राज था।
उसके पश्चात जो राजा हुए वे थे सिंहराज का पुत्र व्याघ्रराज,
व्याघ्रराज
का पुत्र बोपदेव, बोपदेव का पुत्र कृष्ण , कृष्ण का पुत्र
जैतराम, जैतराम का पुत्र सोमंचद्र जो भानुदेव का पिता था।
तहनकापार से इसी वंश के पम्पराज देव नामक राजा के कल्चुरि
संवत 65 तथा 966 में उत्कीर्ण दो और ताम्रपत्र लेख प्राप्त हुए हैं ।
कल्चुरी
संवत 966 के ताम्रपत्र में पम्पराज के पिता सोमराज तथा सोमराज के पिता बोपदेव का
नामोल्लेख है ।
संवत 966 के ताम्रपत्र में पम्पराज के पिता सोमराज तथा सोमराज के पिता बोपदेव का
नामोल्लेख है ।
इस अभिलेख से विदित होता है कि बोपदेव के समय कांकेर के सोमवंशी
राज्यकी दो शाखाएं हो गई थी, जिसमें से एक पम्पराज हुआ और दूसरी शाखा में चार-पांच
पीढि़यों बाद भानुदेव हुआ।
राज्यकी दो शाखाएं हो गई थी, जिसमें से एक पम्पराज हुआ और दूसरी शाखा में चार-पांच
पीढि़यों बाद भानुदेव हुआ।
भानुदेव के शासन काल के शिलालेख में नायम वासुदेव द्वारा
तीन मंदिर, एक भवन तथा दो तालाब निर्माण करवाये गये थे।
गुरूर दुर्ग में काकरय के शासक राणक बाधराज के शासनकाल
का स्तंभ लेख प्राप्त हुआ जिसमें एक नायक द्वारा काल भैरव के मंदिर नाम कुछ
भूमिदान तहनकापारा बस्तर से प्राप्त शासक महामाण्डलिक पम्पराज देव ताम्रपत्र
दानपत्र में ब्राम्हण लक्ष्मीधर को जैपरा एवं चिखली नामक ग्राम दान का उल्लेख
है
कर्णराज की जानकारी 1114ई0अर्थात 1191से92 से ज्ञात होता
है कि कर्णराज ने देवहद में पांच मंदिरों का निर्माण कराया था और छठे मंदिर का
निर्माण अपनी रानी भोपाल्ला देवी के नाम पर कराया था। इससे सिहावा का समीकरण देवह्रद
से किया जा सकता है।
महत्वपूर्ण तथ्य
- कांकेर के सोमवंशी शासक कल्युरि शासकों से अधीन थे।
- इनके शासनकाल में निर्माण कार्य तथा मंदिर निर्माण,
भवन
निर्माण, तालाब निर्माण सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था के परिचायक
हैं। - कर्णराज और भानुदेव के शिलालेखों में शक संवत तथा
पंपराज के ताम्रपत्रों में कलचुरि संवत का अंकन कांकेर के सोमवंशी शासकों की स्वतत्र
एवं कलचुरियों के आंशिक प्रभाव को परिलक्षित करता है। - कांकेर के सोमवंशी शासकों ने सिहावा क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण
सांस्कृतिक विकास के कार्य किये थे।
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