पाण्‍डु वंश pandu vansh 丨मेकाल के पांडुुवंश  

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पाण्‍डु वंश एवं मेकल के पाण्‍डुु वंश छत्तीसगढ़ का इतिहास
पाण्‍डु वंश एवं मेकल के पाण्‍डुु वंश छत्तीसगढ़ का इतिहास 


पाण्‍डु वंश पृष्‍ठभूमि

शरभपुरीय शासकों के पश्‍चात दक्षिण कोसल में सोमवंशी या
पाण्‍डुवंशी शासकों का राज्‍य
हुआ।
अभिलेखों में उन्‍हें पाण्‍डुवंश का भी कहा गया है। सोनपुर बलांगीर क्षेत्र में
राज्‍य करने वाले सोमवंशियों  से अलग इनका
उल्‍लेख पाण्‍डुवंश के रूप में किया गया है।

पाण्‍डु वंश के शासक

उदयन

भवदेव रण केसरी के भांदक शिलालेख में पांडुवंशी प्रथम
शासक उदयन का उल्‍लेख मिलता है।

इसका पुत्र इन्‍द्रबल था, जिसका विवरण
शरभपुरीय शासकों के संदर्भ में दिया जा चुका है।  यह शरपूरीय राजाओं  को हटाकर राजा बना था। 

मेकाल के पाण्‍डुवंशी नरेश
भरतबल उर्फ इन्‍द्र
के बहानी ताम्रपत्र में इस वंश का प्रथम शासक जयबल निरूपित हुआ
है। जिसके पुत्र का नाम वत्‍सराज था जो वत्‍सेश्‍वर उदयन के समान था। उदयन
और वत्‍सराज एक ही व्‍यक्ति के दो नाम हैं। 

मेकल के पाण्‍डुवंशी राजाओं ने ही आकर
दक्षिण कोसल पर अपना आधिपत्‍य स्‍थापित किया जिसका प्रधानराज नरेन्‍द्र का गुणगान
किया गया है। इन्‍द्रबल की लोकप्रकाशा दक्षिण कोसल के अमरार्य कुलीन नरेन्‍द्र की
बहिन
थी। वत्‍सराज की पत्‍नी द्रोण भट्ठारिका थी
, जिससे नागबल नाम
का पुत्र हुआ। नागबल की पत्‍नी का नाम इन्‍द्रभट्टारिका था। नागबल का पुत्र भरतबल
हुआ जो इन्‍द्र के समान बली होने के कारण इन्‍द्रबल नाम से पुकारा जाता था।

इन्द्रबल के चार पुत्र हुए नन्‍नराज प्रथम ईशान देव ,
सुरबल
तभा भवदेव
भांदक शिलालेख का भवदेव रणकेशरी ही चौथा पुत्र था।

संबलपुर डिस्ट्रिक्‍ट गजेटियर 1971 में नन्‍नराज प्रथम
के पुत्र तीवरदेव
और चंद्रगुप्‍त का उल्‍लेख किया गया है। उपयुक्‍त किया गया है।
उपर्युक्‍त तीवरराज संभवत: यही नन्‍नराज का ज्‍येष्‍ठ  पुत्र तीवरदेव था जो एक साथ दक्षिण कोसल एवं
मेकल क्षेत्र
का आधिकशासक था। कदाचित इसीलिए वह सकलकोसलाधिपति विशेषण से विभूषित
है।

अड़भार ताम्रपत्र से विदित होता है तीवर देव पश्‍चात
उसका पुत्र नन्‍नदेव उत्‍तराधिकारी हुआ।

उसके नि:संतान मृत्‍यु के कारण उसका चाचा,
तीवरदेव
का अनुज चंद्रगुप्‍त राजा  हुआ
। 

! पाण्डु वंश छत्तीसगढ़ ! 

हर्षगुप्‍त-

वासटा के
लक्ष्‍मण मंदिर
स्थिर सिरपुर शिलालेख में राजा चन्‍द्रगुप्‍त का उल्‍लेख किया गया
है। इसका पुत्र हर्षगुप्‍त
, जिसके साथ मगध के राजा सूर्य वर्मा की पुत्री वासटा का
विवाह हुआ था।

हर्षगुप्‍त के मरणोपरांत उसकी रानी वासटा ने अपने पति की स्‍मृति में
हरि विष्‍णु के एक मंदिर का निर्माण कराया था। 

सिरपुर में ईंट का निर्मीत यह मंदिर
लक्ष्‍मण मंदिर के नाम से विख्‍यात तथा भारतीय शिल्‍पकला का अद्वितीय उदाहरण है।

महाशिवगुप्‍त बालार्जुन –

हर्षगुप्‍त के दो पुत्र थे महाशिवगुप्‍त बालार्जुन एंव
रणकेसरी।
म‍हाशिवगुप्‍त बालार्जुन हर्ष के बाद उत्‍तराधिकारी हुआ। इसके अनेक प्रस्‍तराभिले
एवं ताम्रपत्र अभिलेख प्राप्‍त हुआ हैं। पाण्‍डुवंश के इस वंशज का शासन अत्‍यंत
वैभवशाली रहा। 
 महाशिवगुप्‍त बालार्जुन लगभग 70 वषौं तक शासन किया। यह शैव धर्मावलंबी होने के बावजूद
अन्‍य धर्मौ के प्रति उदार और सहिष्‍णु था। इसकी राजधानी श्रीपुर में एवं अन्‍य स्‍थलों
में शैव
, वैष्‍णव, बौद्ध धर्म के महत्‍वपूर्व केन्‍द्र के रूप में प्रख्‍यात हो चुकी थी। सिरपुर उत्‍खनन से विशाल बौद्ध प्रतिमाएं,
विहार
एव शिलालेख प्राप्‍त हुए इस काल की धातु प्रतिमाएं कला की दृष्टि से अद्वितीय की
जा सकती हैं। 

 महाशिवगुप्‍त बालार्जुन के कार्यकाल में चीनी यात्री ह्वेनसांग यहां आया था।
उसका कथन की यहां का राजा क्षत्रिय है तथा बौद्ध धर्म में श्रद्धा रखता है। राज्‍य
में 100 संघम थे
, जहां 10,000 महायान बौद्ध भिक्षु
निवास करते थे । यहां 70 देव मंदिर भी थे। महाशिवगुप्‍त बालार्जुन के कार्यकाल को
दक्षिण कोसल के इतिहास का स्‍वर्णकाल कहा जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी। 

प्रतापी
नरेश पुलकेशिन द्वितीय के ऐहोल शिलालेख के अनुसार कोसल नरेश 634ई0 के पूर्व दक्षिण
विजेता द्वारा पराजित किय गया था और संभवत: उसने उसकी अधीन स्‍वकार कर ली थी। एक अन्‍य
पुरालेखीय प्रमाण के आधार पर आर0सी0 मजुमदार ने लिखा है कि यहक्षेत्र संभवत: 7वीं
शताब्‍दी में बालार्जुन के पश्‍चात नल राजा के अधिकार मेंचला गया।

महाशिवगुप्‍त बालार्जुन के कार्यकाल को दक्षिण कोसल के
इतिहास का स्‍वर्णकाल
कहा जाय तो अतिशयोक्ति नही होगी।

महाशिवगुप्‍त बालार्जुन के नौछल्‍लों में लगे हुए 27
ताम्रपत्र सिरपुर
में एक व्‍यक्ति को घर के बाड़ी में खुदाई के समय मिले जिसे
तुमगांव थाने में प्रो0जे0आर0 काम्‍बले एवं विजया श्रीवास्‍तव
,
आई0ए0एस
के सहयोग से डा0 रमेन्‍द्रनाथ मिश्र ने सर्वप्रथम अध्‍ययन किया था
छत्तीसगढ़ के
इतिहास की यह एक महत्‍वपूर्ण उप‍लब्धि है।

 

मेकाल का पाण्‍डुवंश

आधुनिक अमरकंटक के पास का क्षेत्र प्राचीन काल में मेकल
के नाम से जाना जाता था। यहां पाण्‍डुवंशियों की एक शाखा के राज्‍य करने की
जानकारी भरतबल के बहानी ताम्रपत्र से मिलती है।

प्रारंभिक दो राजाओं जयबल और वत्‍सराज
के साथ कोई राजकीय उपाधि प्रयुक्‍त नहीं हुई है। नागबल के लिए महाराज उपाधि का
प्रयोग किया है। इसके पुत्र भरतबल के समय का उल्लिखित ताम्रपत्र है। इसमें इसकी रानी
लोकप्रकाशा
का उल्‍लेख है जो नरेन्‍द्र की बहन थी। इस नरेन्‍द्र का अभिज्ञान
शरभपुरीय शासक नरेन्‍द्र
से किया जाता है। मल्‍लार से प्राप्‍त एक अन्‍य ताम्रपत्र
से भरतबल के पुत्र शुरबल का उल्‍लेख मिलता है।

पुराणों में मेकल के राजाओं के संबंध में उल्‍लेख किया
गया है इस क्षेत्र के प्राचीन इतिहास के संबंध में कोई जानकारी नहीं मिलती।
अभिलेखों के आधार पर ज्ञात होता है कि 5वीं सदी ईस्‍वी में इस क्षेत्र में पाण्‍डव
वंशियों की एक शाखा राज्‍य करती थी।

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